रोहतक करनाल (म.मो.) खट्टर की जनविरोधी, विशेषकर मेडिकल शिक्षा विरोधी नीति के विरोध में छात्रों का आन्दोलन एक माह की सीमा पार कर चुका है। छात्रों द्वारा दी गई चेतावनी के अनुसार ओपीडी तथा वार्डों की सेवायें भी करीब दो सप्ताह से ठप्प पड़ी हैं। इसके बावजूद खट्टर अपनी मूर्खतापूर्ण तथाकथित बांड पॉलिसी पर अड़े हुए हैं। ‘मज़दूर मोर्चा’ कई बार लिख चुका है कि यहां बांड शब्द का गलत इस्तेमाल हो रहा है। इसे बांड न बता कर सीधे-सीधे फीस बढोत्तरी कहा जाना चाहिये।
डॉक्टरी पढाई से सम्बन्धित छात्रों को अपने से अधिक मूर्ख समझने वाले खट्टर ने वीरवार को, छात्रों से हुई वार्ता में नया प्रस्ताव रखते हुए कहा कि बांड राशि को घटा कर 30 लाख तथा सात साल की सरकारी नौकरी की जगह पांच साल की शर्त रखी है। इसके साथ-साथ एक साल के भीतर सरकार उन्हें नौकरी में भर्ती कर लेगी। अजीब मजाक है। पासआउट होकर डॉक्टर साहब एक साल तक खाली बैठ कर खट्टर साहब द्वारा भर्ती किये जाने का इंतजार करेंगे और उसके बाद पांच साल की नौकरी करने पर उनके बैंक लोन का भुगतान सरकार करेगी।
झूठ के पहियों पर चलने वाली इस सरकार का विश्वास भला कौन कर सकता है? एक साल की कह कर ये दो-तीन साल भी भर्ती न करें तो कोई इनका क्या बिगाड़ लेगा? छात्रों का स्पष्ट कहना है कि वे इस झांसे में कतई फसने वाले नहीं हैं। सीधी स्पष्ट दो टूक बात यह है कि बांड राशि घटाने की बजाय सरकार नौकरी की गारंटी दें और जो कोई नौकरी करने से इनकार करे, उससे बांड राशि वसूली जाय। पूरी दुनियां में बांड का यही मतलब होता है। इसी देश में ईएसआई कार्पोरेशन एक साल की सेवा शर्त न मानने वालों से पांच लाख (जो पहले 10 लाख थे) की वसूली करती है।
खट्टर व मोदी जैसे संघ प्रशिक्षित प्रचारकों को जनआन्दोलनों की भाषा जल्दी से समझ नहीं आती। कई बार तो साल भर से भी अधिक समय लग जाता है। इस बीच देश का कितना भारी नुक्सान हो जाता है, वह इनकी समझदानी में नहीं घुस पाता। राज्य के चारों मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा सेवायें पूरी तरह से ठप्प होने के चलते आम जनता पर क्या बीत रही है, उसे समझने एवं महसूस करने की योग्यता एवं रूचि खट्टर में कहीं से भी नजर नहीं आती।