खट्टर के भ्रष्टाचार मुक्त हरियाणा में गबन की आरोपी डीईओ मुनीष कुर्सी पर कायम है

खट्टर के भ्रष्टाचार मुक्त हरियाणा में गबन की आरोपी डीईओ मुनीष कुर्सी पर कायम है
September 24 13:50 2022

फरीदाबाद ( म.मो.) पिछले कुछ दिनों से जिला शिक्षा अधिकारी मुनीष चौधरी को लेकर काफी बहसें चल रही है, तरह-तरह के तर्क-वितर्क सामने आ रहे हैं। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश पर 14 सितम्बर को उनके विरुद्ध एफआईआर नम्बर 244 थाना सेक्टर 17 में दर्ज कर ली गई है।

इसमें लगाई गई धारायें बहुत ही संगीन हैं। पहली धारा है 201 याखूर्द-बूर्द करना, दूसरी धारा है 402, जिसकी व्याख्या की गई है कि कोई डकैती या बड़ा गुनाह करने की योजना बनाने को लेकर जो काम किया जाय। इसके बाद है धारा 420, 467, 468, 471,यानी धोखाधड़ी व फोर्जरी। 506 जान से मारने की धमकी। इसके बाद ज्यादा गंभीर है प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट की धारायें। धारा 7 व 10 इत्यादि हैं। जिस तरह का मुकदमा दर्ज किया गया है उसका ट्रायल कोई छोटी कोर्ट में नहीं होता सीधे सेशन कोर्ट में ही होता है। इसमें डीएसपी स्तर से कम का कोई अधिकारी तफ्तीश नहीं कर सकता।

इस केस की तफ्तीश एसीपी ओल्ड फरीदाबाद को दी गई है। 14 तारीख को मुकदमा दर्ज होने के बावजूद भी आरोपी अभी तक अपनी कुर्षी पर कायम है। न केवल कायम हैं धड़ाधड़ काम को खैंच रही हैं।

पता चला है कि पिछले साल यतीन्द्र शास्त्री नाम के जिस अध्यापक को निलम्बित किया गया था। उनके ऊपर आरोप था कि उन्होंने सेहतपुर स्कूल में 70 लाख का कोई निर्माण कार्य किया था। इस कार्य को लेकर कुछ शिकायतें हुई थी। इसकी जांच करने के लिये कुरूक्षेत्र इंजीनियरिंग कॉलेज का सिविल इंजीनियरिंग विभाग से विशेषज्ञ आये थे। उन्होंने कहा था कि यह बिल्डिंग इस्तेमाल के लायक नहीं है। इसके बाद शायद दो-चार-छ: महीने पहले वो बिल्डिंग ध्वस्त कर दी गई थी और आदेश दिया गया था कि उस अध्यापक के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाय और उससे रिकवरी की जाय। रिकवरी व मुकदमा तो गये ऐसी-तैसी में, उसे नौकरी पर बहाल कर दिया गया है। ये प्रक्रिया इस देश में चल रही है। अब इन महोदया डीईओ मुनीष चौधरी को ऐसा लग रहा कि मेरे खिलाफ, मेरे स्कूल का स्टाफ व उनके विभाग के द्वारा षड्यंत्र रच कर फसाया जा रहा है जिसको इन्होंने खतरनाक गैंग का नाम लिया है।

करीब हफ्ते भर पहले इन्होंने मुजेसर के स्कूल में बिजिट किया। वहां इन्होंने न कमरे देखे, न ही शौचालयों की दुर्दर्शा, न हीं वह जनरेटर देखा जो 10-15 साल से बेकार खड़ा है, ये सब इन्हें नजर नहीं आये। इन्हें सिर्फ नजर आया तो केवल स्कूल के एक साइंस टीचर का कमरा। जिसमें लगे स्मार्ट बोर्ड को उन्होंने अपने पल्ले से खर्च करके काम के लायक बना रखा है। जिसमें विद्यार्थियों को पढाया जा सके और उसमें बच्चों को पढ़ा रहें हैं। इसी बात को लेकर मुनीष चौधरी ने अध्यापक पर कमरा कब्जाने का आरोप लगाते हुए बकायदा मीमो जारी कर दिया। कोई पूछे इस डीईओ महोदया से कि क्या उस अध्यापक ने उस कमरे में अपना परिवार बसा रखा है या कोई और निजी धंधा चला रखा है? स्कूल के कमरे में, स्कूल के बच्चों को ही तो पढ़ा रहे हैं।

विदित है कि मौजूदा मामला वर्ष 2004-2005 से सम्बन्धित है। उस समय मुनीष चौधरी सर्व शिक्षा अभियान में तैनात थी। उस दौरान सरकार की ओर से 25 लाख 89 हजार रुपये का एक सरकारी चेक मुनीष के पास आया। जिसके द्वारा उन्हें विभिन्न स्कूलों के बच्चों के लिये कई तरह के काम कराने थे। इन्होंने वह चेक सीधे अपने व्यक्तिगत खाते में जमा करा दिया। इसमें से कुछ रकम भी इन्होंने खर्च कर ली। कुछ माह बाद शिकायतें होने पर इन्होंने पूरी रकम सरकारी खाते में जमा करा दी।

इसके बाद इन्होंने वे फर्जी बिल बनाकर पूरी रकम को ठिकाने लगा दिया जिनका आज तक कहीं अता-पता नहीं है। यानी कि रकम आई भी और गई भी लेकिन कहां गई और कहां पर खर्च हुई उसका कोई बही-खाता उपलब्ध नहीं है। सर्वविदित है कि सरकारी पैसे को एक दिन भी अपने निजी खाते में रखना न केवल सेवा नियमों का उल्लंघन है बल्कि संगेय अपराध है। इसी अपराध को लेकर तुरंत मुनीष पर कार्रवाई हो जानी चाहिये थी। लेकिन राजनीतिक एवं प्रशासनिक संरक्षण के चलते मामले को दबा दिया गया।

उस वक्त हुई शिकायतों की जांच पर पर्दा डालने का काम तत्कालीन अतिरिक्त उपायुक्त संजय जून ने किया। जिला सर्व शिक्षा अभियान के चेयरमेन होने के नाते जब ये मामला उनके पास पहुंचा तो उन्होंने अपने मातहत एक कर्मचारी से रिपोर्ट लेकर मुनीष चौधरी को दोष मुक्त कर दिया था।

शिकायत कर्ताओं ने कहा कि यह जांच गलत हुई है और अगली जांच कराई जाय। जांच के दौर चलते रहे। यहां हर तरफ से जांच को दबा दिया गया। सुधी पाठक जो इस बात को समझना चाहें, उनकी सुविधा के लिये उन्हें ‘मज़दूर मोर्चा’ के न्यूज पोर्टल पर जितनी भी मुनीष चौधरी के खिलाफ शिकायतें हुई हैं और जांच रिपोर्ट आई हैं सब अपलोड है। किस अधिकारी ने क्या रिपोर्ट दी और किसने दोषी बताया व किसने निर्दोष बताया ये सभी बातें खुलकर सामने आ जायेगी।

उसके बाद ये जांच विजिलेंस में भी गई। वहां भी दबा दिया गया उसके बाद सीएम बिंडो पर भी घूमती रही। फिर मामला लोकायुक्त में गया तो वहां से विभाग में ही जांच हेतु भेज दिया गया। इस दौरान सीएम सेल के लॉ ऑफीसर बुद्धि प्रिया के सामने जब ये केस आया तो उन्होंने इसे विभागीय लेखा-शाखा से इसकी रिपोर्ट मंगवाई जिसमें मुनीष को दोषी ठहराया गया। इसी रिपोर्ट के आधार पर स्थानीय अतिरिक्त सेशन जज ने एफआईआर दर्ज कराई है।

लेकिन ये महोदया शिक्षा अधिकारी अभी भी कह रही है कि, हम तो निर्दोष हैं मुझे फसाया जा रहा है। अब देखने वाली बात यह है कि इतना सब कुछ होने के बावजूद जो दोषी अधिकारी है वह कायम है। यहां यही दर्शाता है कि इनकी राजनीति और अफसरशाही में कितनी गहरी पैठ है, कि मुकदमा दर्ज होने के बावजूद भी अपनी कुर्सी पर कायम है। यही मुकदमा अन्य किसी पर होता तो अभी तक रेल बन जाती, उसके घर पर छापे पड़ जाते।

‘मज़दूर मोर्चा’ के जानकारी के अनुसार इस इलाके के 6 में से तीन विधायक सीमा त्रिखा, नरेन्द्र गुप्ता, मूलचंद शर्मा, व सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री कृष्णपाल गूजर के समर्थन से इनकी नियुक्ति हुई है और पहले भी जो मंत्री रहे हैं उनकी भी इनके ऊपर ऐसी ही कृपा-दृष्टि बनी रही है जिससे ये अपने गृह जिले में बनी रहीं। कभी बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ी। हो सकता है चार-छ: महीने के लिये कभी पलवल चली गई हों ये अलग बात है। इनकी टीचर से लेकर सारी नौकरी यहीं कायम रही हैं। अभी भी इसी प्रयास में हैं कि कैसे इस मुकदमें को ठंडे बस्ते में डाला जाय। लेकिन अब ठंढे बस्ते में रहने वाला मामला नहीं है।

संदर्भवश पाठक समझ लें कि जिले में चाहे वह शिक्षा विभाग हो, या स्वास्थ्य विभाग हो, चाहे पुलिस विभाग हो चाहे कोई भी सरकारी विभाग हो, कोई भी अधिकारी अपने बल-बूते पर भ्रष्टाचार नहीं कर सकता। जब तक उसको राजनीतिक संरक्षण प्राप्त न हो। ये इसी से साबित होता है कि कितने राजनीतिक दल बल के साथ यहां मुनीष चौधरी कायम हैं और यही इनकी ताकत है।

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Mazdoor Morcha
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