फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) सेक्टर 11 में सोमवार रात बिजली के खंभे में करंट उतरने से उसकी चपेट मेें आकर एक गाय गंभीर रूप से घायल हो गई। गोरक्षा के नाम पर दंगे और हत्या करने तक उतारू हो जाने वाले कथित गोरक्षकों में से कोई भी इस तड़पती गाय की सुध लेने नहीं पहुंचा। स्थानीय लोगों ने उसे बचाने की कोशिश की लेकिन करीब एक घंटे बाद उसकी मौत हो गई। सूचना दिए जाने के बावजूद मंगलवार दोपहर बाद तक कोई बिजलीकर्मी लाइन काटने नहीं आया, मानो वह किसी बड़े हादसे या किसी व्यक्ति को करंट लगने का इंतजार कर रहे थे।
घटना सेक्टर 11 अग्रवाल धर्मशाला के सामने स्थित एंकर रोडलाइंस कार्यालय के पिछवाड़े हुई। सोमवार रात करीब साढ़े नौ बजे एक गाय करंट की चपेट में आ गई। उस समय कार्यालय में काम कर रहे लोगों ने बिजली निगम को घटना की सूचना देकर गाय को किसी तरह खंभे से अलग किया। गंभीर रूप से घायल गाय को बचाने के लिए इन लोगों ने मालिश करने से लेकर हर प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली। दो बिजलीकर्मी मौके पर पहुंचे लेकिन यह कहते हुए चलते बने कि कल सुबह आकर खंभे की लाइन काट कर करंट बंद करेंगे। गाय की करंट लगने से मौत की जानकारी कुछ देर में सारे इलाके में फैल गई। इस इलाके में कई ‘गोरक्षक’ और मोदी-खट्टर भक्त भी रहते हैं। क्योंकि गाय की मौत करंट लगने से हुई थी न कि किसी पशु चोर द्वारा, इसलिए इन कथित गोरक्षकों को दुख नहीं हुआ, यहां तक कि मंगलवार दोपहर बाद तक कोई गोरक्षक मरी गाय को उठवाने नहीं आया, न ही नगर निगम का दस्ता पहुुंचा।
कोई कार्रवाई न होने पर मंगलवार दोपहर सेक्टर वासियों ने मज़दूर मोर्चा को फोन किया। जिस पर इस संवाददाता ने पुलिस चौकी सेक्टर 11 को मामले में उचित कार्रवाई करने को कहा। पुलिस ने तुरंत मौके पर पहुंच कर जेसीबी द्वारा मरी गाय को उठाया और बिजली कर्मियों को आवश्यक कार्रवाई हेतु तलब किया तब कहीं जाकर उन्होंने खंभे में आ रहे करंट को रोका। बिजली नहीं काटे जाने से लोगों में रोष था। लोगों का कहना था कि क्या बिजली निगम किसी व्यक्ति या अन्य पशु के करंट की चपेट में आकर मरने के बाद ही बिजली काटता है।
बिजली निगम की लापरवाही का यह कोई नया मामला नहीं है। बीते डेढ़ साल में करंट उतरने से एक महिला गांधी कॉलोनी में और दूसरी सेक्टर दस में अपनी जान गंवा चुकी हैं। इसके बावजूद बिजली निगम के नाकारा अधिकारियों ने ऐसी घटनाओं पर काबू पाने के लिए कोई ठोस काम नहीं किया। काम तो दूर खंभे में करंट उतरने की सूचना के बावजूद तुरंत बिजली काट कर उसे ठीक करवाने की भी जहमत नहीं उठाई जाती। जहां तक इस मामले में बिजली अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का सवाल है उसकी कोई संभावना इसलिए नजर नहीं आती कि जब सडक़ चलती दो महिलाओं की करंट लगने से मौत होने पर भी किसी अधिकारी के खिलाफ आज तक कोईै कार्रवाई नहीं हुई तो इस बेचारी गाय की कौन सुनेगा।
गाय की मौत के लिए बिजली निगम के लापरवाह अधिकारी जितने दोषी हैं उतना ही दोष गाय के मालिक का भी है जिसने फायदा उठाने के बाद उसे भोजन तलाशने के लिए इधर उधर मुंह मारने के लिए सडक़ों पर छोड़ दिया।
सवाल तो उन कथित गोरक्षकों पर भी उठता है जिन्हें आवारा घूमती और सडक़ हादसों की वजह बनती ये गायें नहीं दिखतीं। दरअसल इन गायों की सेवा करने में खर्च होता है, और उतना नाम भी नहीं होता जितना गोरक्षा के नाम पर दंगा करने, लोगों को मारने पीटने और पशु पालकों के पशु लूटने से होता है। इसीलिए ये लोग वहां नहीं पहुंचते जहां गायें भूखी मर रही हों।
चार सौ करोड़ रुपये के भारी भरकम बजट वाले गोसेवा आयोग ने भी अपने गठन के बाद आज तक सडक़ों घूमती भूखी-बेसहारा गायों के लिए कुछ नहीं किया। हां, गायों के नाम पर पंचायतों की जमीन पर कब्जा करना और गायों से होने वाली आय पर इनकी गिद्ध दृष्टि लगी रहती है। लगता है आयोग का गठन गोसेवा के लिए नहीं बल्कि संघ-भाजपा के पदाधिकारियों को मलाई बांटने की नीयत से किया गया है, इसीलिए आयोग में संघियों को ही जगह दी गई है।
गोसेवा और गोरक्षा के नाम पर काऊ सेस व अन्य कर-उपकर लगाकर जनता से करोड़ों रुपये लूटने वाली मोदी-खट्टर सरकार से भी सवाल पूछा जाना चाहिए कि इतना धन खर्च करने के बावजूद गायें सडक़ों पर क्यों भटक रही हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि काऊ सेस व अन्य उपकर के रूप में वसूला गया करोड़ों रुपया गोसेवा के नाम पर संघ-भाजपा पोषित संगठनों पर खर्च किया जा रहा हो और गायों को सिर्फ राजनीतिक-धार्मिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। यदि ऐसा नहीं है तो सरकार को बताना चाहिए कि अभी तक गाय के नाम पर कर, उपकर के रूप में वसूले गए धन का इस्तेमाल कहां-कहां किया गया, सच्चाई सामने आ जाएगी।