मज़दूर मोर्चा ब्यूरो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे खट्टर ने संघ की असली फासीवादी विचारधारा का आखीर सार्वजनिक प्रदर्शन कर ही दिया। संघ की शाखाओं में नन्हें बालकों के कोमल दिमागों में साम्प्रदायिक एवं फासीवादी जहर घोलने वाले खट्टर हरियाणा के मुख्यमंत्री भले ही बन गये परन्तु जहरीला प्रचार कार्य छोडऩे को तैयार नहीं।
दिनांक 3 अक्टूबर को खट्टर ने अपना एक वीडियो वायरल किया। इसमें उन्होंने आन्दोलनकारी किसानों से निपटने के लिये अपने अनुयायिओं को लाठी-डंडे उठा कर किसानों से निपटने का आह्वान किया। संघी रंग में आकर संस्कृत में बोलते हुए खट्टर ने कहा, ‘शठे-साठयं समाचरेत्’ यह श्लोक उन्होंने आन्दोलनकारी किसानों के संदर्भ में कहा यानी किसान दुष्ट हैं, उनके साथ दुष्टतापूर्ण व्यवहार करना चाहिये। अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए अपने बुद्धिहीन अंधभक्तों को समझाया कि दक्षिण हरियाणा में तो कोई समस्या नहीं है। लेकिन उत्तर एवं पश्चिम हरियाणा में ‘दुष्ट उपद्रवियों’ से निपटने के लिये अपने स्थानीय स्तर पर सौ-दो सौ-हजार पांच सौ वालंटियर तैयार करें और उठा लो हाथों में लाठी डंडे; भिड़ जाओ उनसे। दो-चार छ: महीने की सज़ा भी होगी तो जेल में वह ज्ञान प्राप्त होगा जो पढ़ाई करने से भी नहीं होता। जेल काटकर ही तो नेता बनते हैं। यहां ‘उपद्रवियों’ से फिलहाल उनका मतलब आन्दोलनकारी किसानों से है और भविष्य में जो कोई भी आन्दोलन करेगा वह उपद्रवी ही कहलायेगा।
खट्टर द्वारा अपना व अपने संघ का असली चेहरा प्रकट कर देने के लिये जनता को उन्हें धन्यवाद करना चाहिये और राज्य के सुखद एवं शान्तिपूर्ण भविष्य के लिये समय रहते सोच-विचार कर लेना चाहिये।
रही बात लठैतों की तो जब भारी संख्या में खाकी लठैत घरोंडा में उनका हेलिकॉप्टर नहीं उतरवा सके, हिसार में उन्हें बुरी तरह से खदेड़े जाने से नहीं बचा पाये और अभी हाल ही में करनाल के किसानों को लघुसचिवालय का घेराव करने से नहीं रोक पाये तो उनके सपनों में बसने वाले वालेंटियर कहां तक बचा पायेंगे? ऐसे तो उनके संघ के पास लाखों करोड़ों की संख्या में वालेंटियर बताये जाते हैं, जो रोज़ाना पुलिसिया खाकी चड्डी पहन कर लाठी घुमाने का प्रदर्शन करते हैं तथा दशहरे के दिन शस्त्र पूजा करते हुए हवा में फायरिंग करते हैं। इतना ही नहीं आम जनता को आतंकित करने के लिये उस दिन ड्रम बजाते हुए लाठियां लेकर शहरों में परेड निकालते हैं। आखिर ये सब संघी कब काम आयेंगे?
दरअसल ये संघी बहादुर केवल सत्ता की छाया में ही लाठी घुमा सकते हैं। पिछले दिनों जब सिंघू बार्डर पर इन्हें ‘स्थानीय लोग’ बनाकर किसानों को खदेडऩे भेजा था तो भारी संख्या में दिल्ली पुलिस इनको पूरा कवर दे रही थी। लेकिन उसके बावजूद भी जब किसानों ने दहाड़ मारी तो वहां न पुलिस टिकी और न ही वे तथाकथित ‘स्थानीय लोग’ तो इतने जंग बहादुर हैं ये चड्डीधारी संघी। लगता है कि शायद अपने बछड़ों के दांत पहले से ही जानने वाले खट्टर ने नये वालेंटियर पैदा करने की सोची है।