डॉ. रामवीर
ठंडा लोगे या गरम पूछते ही हैं अभ्यागत से हम सोचता हूं इसी अंदाज में पूछ लिया जाए सच सुनोगे या झूठ पर खतरा है इससे तो वह जाएगा रूठ और रूठे को मनाने में फिर बोलना पड़ेगा झूठ सच से आप बच सकते हैं पर झूठ से नहीं मिल सकती छूट वैसे भी सच सीधा सादा है एक सा है और झूठ के हैं प्रकार अपार उद्योग हो या व्यापार राजनीति हो या सरकार सर्वत्र झूठ की ही बहती है बयार और कोर्ट कचहरी झूठ की पक्की सहचरी सच को झूठ और झूठ को सच बनाने की फैक्टरी यही है बाजार यही है बाजार की शक्ति प्रभो ! बहुत कर चुके भक्ति अब और नहीं हो सकती और हां यदि तू अब भी है जगदाधार तो अब कोई नई दुनिया रच जिसमें झूठ कम हो ज्यादा हो सच।