कविता/कोई कितना भी समझाए…

कविता/कोई कितना भी समझाए…
June 08 15:25 2024

डॉ. रामवीर
कोई कितना भी समझाए
वे न कतई समझने वाले,
जो अपनी बुद्धि कर बैठे
स्वार्थी नेताओं के हवाले।

नेता अगर नहीं है सच्चा
अपने दिए वचन का पक्का,
तो आने वाले चुनाव में
उचित है उसको देना धक्का।

जिन्हें हमारी बात न जंचती
उनका भी कुछ नहीं है दोष,
फेक न्यूज औ गोदी मीडिया
देख देख वे हुए बेहोश।

जब सरकारें दुष्प्रचार में
खर्चेंगी सरकारी कोष,
तो जनता भी प्रकट करेगी
अपना तीव्र यथोचित रोष।

सरकारी धन से सरकारें
जब करतीं अपना विज्ञापन,
तो जाहिर होता है उनके
तौर तरीकों का नंगापन।

आत्ममुग्ध नेता हो जाता
जब अपने मुंह मियां मि_ू,
तो समझो वह समझ रहा है
जनता को ही निरा निखट्टू।

प्रजातन्त्र में प्रेस का काम
होता है जनता को जगाना,
अगर प्रेस ही बिक जाए तो
कवियों को पड़ता है गाना।

हमने बाल्यकाल से अब तक
अपने सब कर्तव्य निभाए,
हम से नहीं होता कि रात को
दिन औ दिन को रात बताएं।

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