कविता कथनी औ करनी का अन्तर बढ़ता ही जा रहा निरन्तर, बड़े बड़े नेताओं का भी हुआ निम्नतम नैतिक स्तर।
राजनीति में इधर हुआ है धनिक वर्ग अतिशय ताकतवर, और उधर बढ़ती जाती है कृषक आत्महत्याओं की दर।
बाहुबली दबंग अपराधी राजनीति में बना चुके घर, थोड़ा सा जो बचा हुआ था अब तो वह भी नहीं रहा डर।
जिनका कुछ न कभी बिगडता ऐसे भ्रष्टाचारी अफसर, उच्च पदों पर जमे हुए हैं नेताओं के चरण दबा कर।
आम आदमी तो बेचारे समझे जाते मक्खी मच्छर, जब कि उनके ही वोटों से नेता काबिज सिंहासन पर।
पांच साल में एक बार जब चलता है चुनाव का चक्कर, ग्रेट इंडियन सर्कस में तब एक्टिव हो जाते हैं जोकर।
पता नहीं कब तक ये चलेगा कब जागेगी जनता सो कर, अब तो भारत का भविष्य है जनता के जगने पर निर्भर।