“संयुक्त राज्य अमेरिका के इस्पात और तेल के सम्राटों और बाकी सम्राटों ने मेरी कल्पना को हमेशा तंग किया है. मैं कल्पना ही नहीं कर सकता कि इतने सारे पैसेवाले लोग सामान्य नश्वर मनुष्य हो सकते हैं! मुझे हमेशा लगता रहा है कि उनमें से हर किसी के पास कम से कम तीन पेट और डेढ़ सौ दाँत होते होंगे. मुझे यकीन था कि हर करोड़पति सुबह छ: बजे से आधी रात तक खाना खाता रहता होगा. यह भी कि वह सबसे महँगे भोजन भकोसता होगा: बत्तखें, टर्की, नन्हे सूअर, मक्खन के साथ गाजर, मिठाइयाँ, केक और तमाम तरह के लज़ीज़ व्यंजन. शाम तक उसके जबड़े इतना थक जाते होंगे कि वह अपने ‘नीग्रो’ नौकरों को आदेश देता होगा कि वे उसके लिए खाना चबाएँ ताकि वह आसानी से उसे निगल सके. आखिरकार जब वह बुरी तरह थक चुकता होगा, पसीने से नहाया हुआ, उसके नौकर उसे बिस्तर तक लाद कर ले जाते होंगे; और अगली सुबह वह छ: बजे जागता होगा अपनी श्रमसाध्य दिनचर्या को दुबारा शुरू करने को. लेकिन इतनी ज़बरदस्त मेहनत के बावजूद वह अपनी दौलत पर मिलने वाले ब्याज का आधा भी खर्च नहीं कर पाता होगा. निश्चित ही यह एक मुश्किल जीवन होता होगा. लेकिन किया भी क्या जा सकता होगा? करोड़पति होने का फ़ायदा ही क्या अगर आप और लोगों से ज़्यादा खाना न खा सकें?….. करोड़पति की जेबें एक विशाल गड्ढे जैसी होती होंगी, जिनमें वह समूचा चर्च, संसद की इमारत और अन्य छोटी-मोटी ज़रूरतों को रख सकता होगा.” – गोर्की (कैसे होते हैं करोड़पति? का अंश)