डॉ. रामवीर
तुम ने बनाया है नियम नहीं कर सकते तुम्हें अपमानित हम पर कभी कभी तुम अपना अपमान करवाते हो स्वय:। जब तुम्हारा वह वकील दोस्त जो तुम्हारे जज बनने से पहले तुम्हारा हमप्याला था निभाता है अब भी दस्तूरे दोस्ती उसी ने दिया है संकेत कि कैसे और कितने में तुम कर सकते हो मेरा अभिप्रेत। तुम ठहरे न्याय के अधीश अपने कार्यस्थल को कहते हो न्याय का मन्दिर यह जानते हुए भी कि क्या होता है इस के अन्दर बने रहते हो बापू का बन्दर और मैं बोलूं तो डराते हो कर देंगे अन्दर शायद तुम्हारा टैम्पर है शोर्ट झट चिल्ला उठते हो कंटैम्प्ट ऑव कोर्ट कंटैम्प्ट ऑव कोर्ट पता नहीं क्या होता है ला ऑव टोर्ट और कंटैम्प्ट ऑव कोर्ट हां इतना पता है कि तुम ने दे दे कर तारीख पर तारीख मुझे कर दिया है मजबूर मांगने को भीख और किया है मेरे अधिकार का हनन। सम्मान से जीने का सस्ता और शीघ्र न्याय पाने का हर नागरिक का है अधिकार न्यायालय हो या सरकार जो भी करे इस का तिरस्कार वह है मक्कार धिक्कार है उसे धिक्कार। जो बेच कर अपना जमीर बनना चाहते हैं अमीर वे कृपा कर छोड़ जाएं न्याय का धन्धा एक तो कानून पहले ही है अन्धा उस पर भ्रष्ट जजों और वकीलों का खेल यह गन्दा बन कर रह गया है निरीह जनता के गले का फन्दा। सुन कर अपनी आलोचना अन्यथा न सोचना जब न देखा जाए न्याय का शीलहरण तो स्वाभाविक है व्यवस्था को कोसना जानता हूं तुम्हें है आदत बात बात में मांगने की गवाह और सबूत आखिर यही तो हैं धन्धे के दो आधार मजबूत और दुर्भाग्य से दोनों ही हो सकते हैं झूठे बना सकते हैं न्याय का ताबूत अन्यायपीडित हारे हुए वादी के दुखी दिल की आह भी तो है एक गवाह आह की गवाही झूठी नहीं हो सकती यह तो तुम्हारी ही है दुर्बलता जो तुम्हारी श्रवणेन्द्रिय उसे नहीं सुन सकती। और सबूत न्याय करने वालों की दौलत अकूत अपने आप में ही है सबूत कि इतनी दौलत केवल न्याय से नहीं न्याय में अन्याय की मिलावट से ही जुट सकती है।