जुमलेबाजी से नहीं बन जाते सैनिक स्कूल

जुमलेबाजी से नहीं बन जाते सैनिक स्कूल
October 25 17:14 2023

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा)। मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर भी प्रधानमंत्री मोदी की तरह जुमलों से हवाई किले बनाने में माहिर हो चुके हैं। राज्य के हर जिले में मेडिकल कॉलेज ‘खोल चुकने’ के बाद वे अब हर जिले में सैनिक स्कूल खोलेंगे। प्रदेश के प्राथमिक, माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक और मॉडल संस्कृति स्कूलों की खराब हालत तो खट्टर से सम्हल नहीं रही है और उन्होंने हर जिले में सैनिक स्कूल खोले जाने की घोषणा कर दी, वह भी पीपीपी मॉडल पर। लगता है जैसे मोदी ने फौज में ठेके के अग्निवीर भरने की योजना चलाई है उसी तरह खट्टर भी ठेके के सैनिक स्कूलों में अग्निवीर तैयार करेंगे।

खट्टर जानते हैं कि जुबान चलाने में कुछ खर्च तो होता नहीं है, हां, भाड़े की भीड़ और चापलूसों की तालियां जरूर मिलती हैं। इन्ही तालियों की चाहत में उन्होंने करनाल के कुंजपुरा सैनिक स्कूल में जुमलेबाजी करते हुए हर जिले में सैनिक स्कूल खोलने की घोषणा कर डाली। उनकी घोषणा जुमला ही है इस बात से समझा जा सकता है कि वह 1970 से लंबित झज्जर का सैनिक स्कूल तो बनवा नहीं पाए, आज तक उसकी नींव का पत्थर भी नहीं रखा जा सका है। 1970 से बनता आ रहा ‘झज्जर का सैनिक स्कूल तो बन ही चुका है बेशक वो ढूंढे से कहीं मिलता नहीं, वो अलग बात है, ऐसे ही लाजवाब स्कूल बाकी जिलों में भी बन कर तैयार हो जाएंगे’।

बताते चलें कि शिक्षा संविधान की सातवीं अनुसूचि की समवर्ती सूची का विषय है। इसके तहत राज्य सरकारें अपने भी स्कूलों का संचालन करती हैं। इसके तहत केंद्र सरकार सैनिक स्कूल, नवोदय विद्यालय, केंद्रीय विद्यालय चलाती है।

सैनिक स्कूल रक्षा मंत्रालय द्वारा संचालित होते हैँ। इनमें शिक्षा व्यवस्था रेजिडेंशियल होती है न कि डे बोर्डिंग, यानी इसमें दाखिला लेने वाले विद्यार्थी इसी विद्यालय स्थित हॉस्टल में ही रहते हैं। सामान्य विद्यार्थियों की तरह ही इन्हें भी कक्षा पांच से 12 तक सभी विषय पढ़ाए जाते हैं, इसके अतिरिक्त उन्हें एनसीसी ट्रेनिंग अनिवार्य रूप से दी जाती है, उच्च कक्षाओं में उन्हें हथियारों की हल्की फुल्की जानकारी देने के साथ उन्हें सैन्य कॅरियर अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। खास बात यह कि सैनिक स्कूलों में सारे मानक कठोरता से लागू किए जाते हैं चाहे वह विद्यार्थी शिक्षक अनुपात हो, विद्यार्थियों का भोजन, हर प्रकार के स्टाफ की उपलब्धता सब मानक के अनुरूप होता है। सैनिक विद्यालय का प्रबंधन और संचालन आसान नहीं है इसीलिए प्रत्येक राज्य में ये गिने चुने स्कूल ही होते हैं।

सवाल है कि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मोड पर यदि ये सैनिक स्कूल खोल भी दिए गए तो रक्षा मंत्रालय का इनमें क्या रोल होगा खट्टर जी को इसका कोई ज्ञान नहीं है। दूसरे सैनिक स्कूल से पासआउट अधिकतर छात्र सेना में अधिकारी रैंक में भर्ती होते हैं लेकिन खट्टर उन्हें ठेका सैनिक यानी अग्निवीर बनाने पर उतारू हैं। इन स्कूलों से पासआउट हुए अनेकों छात्र वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं और वर्तमान में भी सेना की कमान संभालने वालों में शामिल हैं। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्ड़ा भी सैनिक स्कूल की देन हैं।

सैनिक स्कूलों पर बात करने के साथ ही प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की तस्वीर देख लें। प्रदेश में 2304 सीनियर सेकेंडरी, 1027 हाई स्कूल, 2122 मिडिल स्कूल और4184 प्राइमरी स्कूल हैं। अगस्त 2022 में मुख्यमंत्री खट्टर ने खुद स्वीकार किया था कि इन स्कूलोंं में शिक्षकों के स्वीकृत पदों में से लगभग 30 हजार पद खाली हैं। हालांकि उन्होंने इन खाली पदों को अनावश्यक करार देते हुए बताया था कि प्रदेश में 80 हजार शिक्षक हैं और केवल 15 हजार अतिरिक्त शिक्षक और चाहिए। संभवता खट्टर भी मोदी की तरह ही उच्च शिक्षा प्राप्त हैं तभी उन्हेंं शिक्षकों के खाली पड़े 30 हजार पद अनावश्यक प्रतीत हुए। उनकी ही मानें तो 15 हजार शिक्षकों की आवश्यकता है लेकिन अभी तक उनकी भी भर्ती नहीं हो पाई है।
खट्टर ने मॉडल संस्कृति सीनियर सेंकेंडरी स्कूलों का भी ढिंढोरा पीटा था। एनआईटी तीन स्थित माडॅल सीनियर सेकेंडरी स्कूल का उदाहरण प्रस्तुत है यहां टीजीटी- पीजीटी शिक्षकों के 42 पद स्वीकृत हैं इनके सापेक्ष केवल 19 शिक्षक ही कार्यरत हैं। इस मॉडल स्कूल में सामाजिक विज्ञान जैसा महत्वपूर्ण विषय पढ़ाने के लिए एक भी टीचर नहीं है जबकि तीन होने चाहिए। टीजीटी मैथ्स, टीजीटी साइंस, टीजीटी ड्राइंग के टीचर हैं ही नहीं। एनआईटी तीन स्थित मॉडल सीनियर सेकेंडरी स्कूल की ही तरह अन्य मॉडल स्कूलों की हालत भी कमोबेश ऐसी ही है। समझा जा सकता है कि खट्टर के ढिंढोरे वाले मॉडल स्कूल की यह दुर्दशा है तो सामान्य सरकारी विद्यालयों के क्या हाल होगा। बडख़ल स्थित सरकारी विद्यालय में पांच सौ विद्यार्थियों पर महज दो शिक्षक हैं।

खट्टर की मॉडल सरकार में केवल शिक्षकों की ही कमी नहीं है सरकारी स्कूलों की इमारतें भी जर्जर हो चुकी हैं। शिक्षा विभाग की दो साल पुरानी रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के 942 सरकारी स्कूलों के 4230 से अधिक कमरे कंडम हो चुके हैं यानी प्रत्येक स्कूल मेें औसतन चार से पांच कमरे जर्जर हैं। सरकार इन्हें बनवाना तो दूर अधिकतर को तुड़वा भी नहीं पाई है। हालात ये हैं कि सोहना में राष्ट्रपति के गोद लिए गांव दोहला के सरकारी स्कूल में 23 जुलाई 2023 को कक्षा की जर्जर छत गिर पड़ी थी। इस स्कूल की इमारत को कई साल पहले कंडम घोषित किया जा चुका था लेकिन न शिक्षा विभाग और न ही मुख्यमंत्री को इन्हें गिरवा कर दोबारा बनवाने की सुध आई।

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Mazdoor Morcha
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