करनाल (म.मो.) हर साल धान की सरकारी खरीद पहली अक्तूबर से पूरे हरियाणा पंजाब में शुरू होती आई है। परन्तु इस बार सरकार ने 11 अक्तूबर से खरीदारी शुरू करने की घोषणा की थी। विदित है कि मंडियों में तमाम सरकारी खरीद केन्द्र सरकार के आदेशानुसार की जाती है, क्योंकि खरीदारी में लगने वाला सारा पैसा केन्द्र सरकार का लगता है। राज्य सरकार की विभिन्न एजेंसियां-हैफेड, कॉनफेड, वेयरहाउसिंग निगम आदि तो केवल खरीदारी में सहयोगी की भूमिका निभाती हैं।
खरीदारी में 11 दिन की देरी का मतलब शायद आम आदमी की समझ में न आ पाये परन्तु किसान के लिये फसल तैयार होने के बाद एक दिन भी उसे सम्भाल कर रखना बहुत भारी होता है। आंधी, बारिश, चोरी-चकारी जैसी आपदाओं से फसल को सुरक्षित रखना उसके लिये आसान नहीं होता। उसके पास भंडारण की कोई व्यवस्था न होने के चलते उसे खेत से फसल को उठा कर शीघ्रातिशीघ्र सीधे मंडी में पहुंचाना होता है। वहां से मिलने वाले पैसे से वह उन सबका भुगतान करता है जिन से उसने तरह-तरह के कर्ज ले रखे होते हैं। जाहिर है जब सरकार 11 दिन देर से खरीदारी जैसी बदमाशी करने पर उतारू होगी तो किसानों का भड़कना स्वाभाविक है, और वे भड़के भी ऐसे जोर से कि संघी-भाजपाई सरकार तुरंत पसर गयी। दो अक्तूबर को ही मुख्यमंत्री खट्टर ने बयान जारी कर दिया कि कल से यानी तीन अक्टूबर से धान की खरीददारी शुरू कर दी जायेगी। उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिये उन्होंने केन्द्रीय खाद्य राज्य मंत्री अश्वनी से बात कर ली है और वे इसके लिये मान गये हैं, जैसे बहुत बड़ा अहसान कर दिया हो। यह सब भी संघी सरकार उस वक्त कर रही है जब किसान आन्दोलन राष्ट्रीय स्तर पर पूरे जोरों पर है।
यह भाजपाई सरकार एकदम कुत्ते की दुम सरीखी है जो 12 साल नली में रखने के बाद भी टेढी की टेढी ही निकलती है। खट्टर महोदय बीते करीब एक साल से बार-बार, किसानों के हाथों अपनी फजीहत कराने के बावजूद सुधरने को तैयार नहीं। कोई पूछे खट्टर मियां से कि उन्हें क्या पड़ी थी जो खरीदारी की तारीख आगे बढाने की। और जब बढा ही दी थी तो फिर उस पर कायम रह कर भी तो दिखाने का दम रखतेे। लगता है केन्द्र सरकार भी खट्टर की फजीहत कराने का कोई मौका छोडऩा नहीं चाहती, शायद इसके पीछे भी कोई राज हो।
कुछ भी हो, किसानों को इन संघियों की नब्ज़ पकडऩी बखूबी आ गयी है। उन्हें अब इस बात का पूरा ज्ञान हो गया है कि इनसे कैसे निपटना है। वे जानते हैं कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।