सत्यवीर सिंह 82 साल पहले, 27 फरवरी के दिन, क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद शहीद हुए थे. कायर औपनिवेशिक लुटेरों ने उनके मृत शरीर को उनके परिवार अथवा उनके क्रांतिकारी कॉमरेडों को नहीं सौंपा बल्कि चुपचाप उनका अंतिम संस्कार, रसूलाबाद शव दाहगृह इलाहबाद में करने लगे। बात आंधी की तरह सब तरफ़ फैल गई। लोग उस जगह की ओर उमड़ पड़े, अँगरेज़ हुकूमत और उनके देसी गुर्गों ने भयंकर पुलिस बंदोबस्त किए थे कि कोई वहां ना पहुँच पाए लेकिन उस दिन कोई सुनने के मूड में नहीं था। उस भीड़ का नेतृत्व कर रही थीं, शचीन्द्रनाथ शान्याल की पत्नी और कॉमरेड प्रतिभा शान्याल। आंसुओं के बीच, रुंधे गले से उन्होंने वहां भाषण दिया कि अमर शहीद क्रांतिवीर, एचएसआरए के कमांडर इन चीफ की राख उससे भी ज्यादा इज्ज़त की हक़दार है जो अमर शहीद खुदीराम बोस के मृत शरीर को देश के लोगों ने दी थी।
अमर शहीद क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के बाद उनकी माताजी जगरानी देवी ने बहुत बुरा वक़्त देखा, भयंकर कंगाली झेली। कोदो, मोटा चावल जिसे पशुओं को खिलाया जाता है, खाकर किसी तरह जीवित रहीं। बेरहम और बेमुरव्वत समाज में ऐसे लोग भी थे जो उन्हें एक भगोड़े की मां कहकर चिढ़ाते थे, वे भरे गले से वे जवाब देती थीं, उनके बेटे को भगोड़ा, इस देश को आज़ाद कराने के लिए बनना पड़ा था, उसे ख़ुद के लिए कुछ नहीं चाहिए था।
अमर शहीद क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद को तहेदिल से सम्मान करने वाले, उनके कॉमरेड सदाशिव मलकापुरकर को जब इस बात का पता चला तो उनकी चीख निकल गई। वे तुरंत, अमर शहीद क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद के पैत्रक गाँव, मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जि़ले के क़स्बे, भाभरा, जिसका नाम अब चंद्रशेखर आज़ाद नगर हो गया है, पहुंचे और श्रद्धेय जगरानी देवी को अपने साथ, झांसी स्थित अपने घर ले आए।
सदाशिव मलकापुरकर की मां उसी वक़्त मर चुकी थीं जब वे भुसावल बम कांड में अंडमान-निकोबार की जेल में बंद थे। उन्होंने श्रद्धेय जगरानी देवी को अपनी सगी मां से भी ज्यादा सम्मान दिया और सेवा की। सदाशिव मलकापुरकर के सर पर हाथ रखकर वे कहती थीं, मेरा चंदू वापस आ गया। 22 मार्च 1952 को, श्रद्धेय जगरानी देवी की मृत्यु पर क्रांतिकारी सदाशिव मलकापुरकर ने सगे बेटे की तरह उनका अंतिम संस्कार किया। कृपया याद रहे, शहीद-ए-आज़म भगतसिंह के दिल्ली असेंबली बम कांड में उनके कॉमरेड अमर क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त को ‘आज़ादी’ मिलने के बाद किस तरह ज़लील होना पड़ा था। एम्स में उनका इलाज और उनकी अंतिम इच्छा, कि उनका दाह संस्कार उनके कामरेडों शहीद-ए-आज़म भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव के शहीद स्थल हुसैनीवाला फिरोज़पुर में किया जाए, शहीद-ए-आज़म की माताश्री श्रधेय विद्या देवी ने ही पूरी की थी।