फरीदाबाद (म.मो.) पुलिस महकमे में लूट कमाई को लेकर थाने, चौकियों व ट्रेफिक वाले ही ज्यादा बदनाम रहते हैं। लेकिन दफ्तर में बैठे ट्रांजिट स्टोर इंचार्ज (टीएसआई) भीतर ही भीतर चुपचाप कितनी लम्बी खिंचाई कर जाता है इसे चन्द भीतरी लोगों के अलावा और कोई नहीं जानता।
टीएसआई की इस लूट कमाई के बारे में ‘मज़दूर मोर्चा’ का ध्यान कुछ सिपाहियों ने उस वक्त आकृष्ट किया जब वे खोरी गांव की तोड़-फोड़ के लिये तैनात थे। सुबह से लेकर देर शाम तक 10-12 घन्टे की ड्यूटी के दौरान उन्हें जो चाय-नाश्ता व भोजन दिया जाता था वो एकदम घटिया क्वालिटी का होता था। चाय के लिये एक बड़ी सी केतली भर कर रख दी जाती थी जिसमें से जवान प्लास्टिक के कपों में चाय व साथ में कभी एक समोसा या दो बिस्किट आदि मिल जाते थे। इसके लिये टीएसआई 45 रुपये प्रति जवान के हिसाब से बिल बनाता था। इसी तरह डिब्बा बंद लंच पॉकेट में छ: पूडिय़ों व आलू की सूखी सब्जी देने के बाद बिल बनता था, हल्दीराम व बीकानेर की दरों से जो कभी 230 रुपये तो कभी 320 रुपये होता था। विदित है कि यह धंधा करीब एक-डेढ महीना चलता रहा और प्रतिदिन सैकड़ों मुलाजिमों के नाम पर सरकार से यह पैसा वसूला जाता रहा। और पूछ-ताछ करने पर सिपाहियों ने अनेकों राज़ की बातें बताई। हर तीसरे-चौथे महीने लाठियां, प्रोटेक्टर, हेल्मेट खरीदते रहते हैं। हैलमेट की कीमत 4500 रुपये तक दिखाई जाती है। पानी खींचने के लिये तीन-चार बिजली की मोटरें हैं। हर दूसरे-तीसरे महीने उनकी मुरम्मत के नाम पर 20-30 हजार के फर्जी बिल बनते रहते हैं।
पुलिस लाईन में एक शहीद स्मारक बनाया गया है जिसका काम पूरा होने में ही नहीं आता। कभी ऐसा पत्थर तो कभी वैसा पत्थर खरीदने के बिल बनाये जाते हैं। जानकार इस पर तीन-चार लाख रुपये से अधिक का फर्जी खर्चा हुआ मानते हैं। इसके अलावा कूलरों व कई अन्य वस्तुओं के फर्जी बिलों द्वारा मोटी रकम डकारे जाने की चर्चा है।
उक्त लेखा-जोखा तो केवल पुलिस लाइन में बैठे टीएसआई ओम पाल एएसआई का है। वह बीते हुए कई सालों से इसी पोस्ट पर तैनात है। लेकिन चालाक इतना है कि कागजों में वह समय-समय पर अपने किसी चेले को इस पद पर तैनात करा कर वास्तविक काम खुद करता रहता है। इसके कार्यकाल में की गई तमाम खरीदारी की फॉरेंसिक ऑडिट जरूरी है। मुलाजमान ने यह भी बताया कि ओमपाल जैसा ही एक टीएसआई कुलदीप नागर एएसआई पुलिस आयुक्त कार्यालय में भी बैठता है। वह भी अच्छे-खासे लम्बे हाथ मारता है। तमाम जि़ले भर के थाने चाकियों आदि के लिये सारा दफ्तरी सामान, स्टेशनरी इत्यादि की खरीदारी इसी के जिम्मे रहती है।
लाखों रुपये की खरीदारी करने के बावजूद किसी भी थाने चौकी में न तो कोई कागज न कोई कलम पहुंचती है। थाने वालों से अपेक्षा की जाती है कि वे लोग अपने जरूरत का सारा सामान थाने में आने वालों से वसूल करें और वे ऐसा करते भी हैं।
अभी पिछले दिनों 45 हजार से लेकर 80 हजार रुपये तक के तीन क्रॉकरी सेट व कुछ एयर कंडीश्नर खरीदने की चर्चा दफ्तर में काफी उछल रही थी। बताया जाता र्है कि खरीदारी से सम्बन्धित एक असिस्टेंट ने इस बाबत नोटिंग तैयार करने से जब यह कहते हुए मना कर दिया कि इस तरह के लग्जरी आइटम खरीदे नहीं जा सकते तो उसे अधिकारियों ने पहले तो समझाया, लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे सस्पेंड करके विभागीय जांच की धमकी दी गई।
उसने भी पलट कर जवाब दे दिया कि वह सिविलियन है, यहां के अधिकारियों को उसके विरुद्ध ऐसी कोई कार्यवाही करने का अधिकार नहीं है। उसके विरुद्ध कोई भी कार्यवाही डीजीपी कार्यालय द्वारा ही की जा सकती है।
समझने वाली बात यह है कि उक्त दोनों टीएसआई जिस तरह से फर्जी बिल बना-बना कर बड़ी रकमें गोल कर रहें हैं, वह सब उनके ऊपर बैठे उच्चाधिकारियों की मर्जी के बगैर तो सम्भव नहीं है। विदित है कि इनके ऊपर एसीपी व डीसीपी हेड क्वाटर जैसे उच्चाधिकारी निगरानी के लिये तैनात हैं। फिर भी यदि यह सब गोल-माल हो रहा है तो उन उच्चाधिकारियों की मिलीभगत के बिना सम्भव नहीं।