फरीदाबाद (म.मो.) राज्य की जनता से अधिक से अधिक वसूलने तथा उन्हें कम से कम देने के साथ-साथ उन्हें एक के बाद दूसरी लाइन में लगाये रखने में खट्टर की महारत का कोई जवाब नहीं। खट्टर ने ऐसा कोई महकमा नहीं छोड़ रखा जो जनता से हर तरह की वसूली बढ़-चढ़ कर न कर रहा हो। दूसरी ओर जनता को मिलने वाली तमाम सुविधाओं में कटौती दर कटौती की जा रही है। उन्हें लाइनों में लगाये रखने के लिये कभी आयुष्मान भारत कार्ड, कभी चिरायु कार्ड, कभी विकलांगता का नवीनीकरण, कभी आईडी बनवाने तो कभी उसे दुरुस्त करवाने के बाद अब परिवार पहचान पत्र को दुरुस्त कराने के लिये लोग सुबह से शाम तक लाइनों में लगे खड़े रहते हैं। इससे पहले इस कार्ड को बनवाने के लिये लाइनों में लगे रहे थे।
सरकार की सुविधायें प्राप्त करने के लिये परिवार पहचान पत्र को एक अनिवार्य शर्त के रूप में रखा गया है। सरकार से कुछ भी प्राप्त करने के लिये प्रार्थी के पास इस पहचान पत्र का होना अनिवार्य कर दिया गया है। आजकल इसका अधिकतम इस्तेमाल राशनकार्ड, आयुष्मान कार्ड, बुढापा एवं विधवा पेंशन तथा विकलांग पेंशन के लिये हो रहा है।
सरकार की तर$फ से बदमाशी यह हो रही है कि किसी के भी परिवार पहचान पत्र में उसकी आय 1 लाख 80 हजार वार्षिक दिखाकर उसकी पेंशन काट दी जाती है। इसके अलावा परिवार में यदि किसी की सरकारी नौकरी हो अथवा किसी की भी आय 1 लाख 80 हजार से ऊपर हो तो बूढे या विधवा की पेंशन काट दी जायेगी। इन्हीं आधारों पर बड़ी संख्या में लोगों के राशन कार्ड काटने के संदेश भी भेजे गये हैं। इन्हीं संदेशों केे आधार पर लोग अपनी दिहाडिय़ां तोड़-तोड़ कर लाइनों में लगे खड़े हैं। जाहिर है कि लाइनों में लगे लोगों के पास अन्य कुछ सोचने व करने का समय ही नहीं बच पायेगा।
खट्टर सरकार ने पेंशन काटने का एक नया फार्मूला और ईजाद किया है जिसके अनुसार पांच यूनिट से अधिक बिजली जलाने वाला परिवार गरीब नहीं माना जायेगा। यानी जो परिवार महीने में 150 यूनिट से अधिक बिजली का उपभोग करता है उसे गरीबों को मिलने वाली कोई भी सहायता के काबिल नहीं समझा जायेगा। इसी को आधार बना कर खट्टर सरकार बड़े पैमाने पर गरीबों को गरीबी रेखा से ऊपर उठा कर उन्हें मिलने वाली सुविधाओं से वंचित कर रही है।
परिवार पहचान पत्र के चक्रव्यूह को समझने के लिये करनाल का एक उदाहरण प्रस्तुत है। वहां रहने वाले हरियाणा पुलिस के एक सेवानिवृत डीजीपी को किसी काम के लिये इस पहचानपत्र की जरूरत पड़ी तो उन्होंने वहां के उपायुक्त को फोन किया। उपायुक्त ने तुरन्त अपने एक बाबू को उनके पास सम्बन्धित कागजात लेकर यह काम करवाने के लिये भेजा। दफ्तरी कामों से हर रोज़ निपटने वाले उस बाबू को भी डीजी साहब के घर और अपने दफ्तर के तीन चक्कर काटने पड़े तब जाकर कहीं एक सप्ताह में यह पहचान पत्र बन पाया। समझना कठिन नहीं है इस काम के लिये एक आम आदमी के साथ क्या-क्या बीतती होगी? दरअसल इसका उद्देश्य ही जनता की चक्रघिन्नी बनाये रखना है, जिसमें खट्टर सरकार कामयाब नजर आ रही है।