फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) दस साल में अपने दम पर कोई विकास कार्य नहीं करा पाने वाले निवर्तमान केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गूजर का किला कांग्रेस से चौधरी महेंद्र प्रताप के उम्मीदवार बनने के बाद से ढहता नजर आ रहा है। सत्ता के कारण भले ही प्रशासन केंद्रीय मंत्री के पक्ष में झुका नजर आ रहा हो लेकिन आम जनता केवल कांग्रेस और महेंद्र चौधरी के गुणगान कर रही है। यहां तक कि चंद दिन पहले मोदी और भाजपा का नाम जपने वाले भी डूबती नाव देख कर अभी से कृष्णपाल गूजर से किनारा कर महेंद्र प्रताप के खेमे में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए देखे जा सकते हैं। हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि अगर पहले चरण की तरह मतदान के ग्यारह दिन बाद चुनाव आयोग द्वारा छह प्रतिशत वोट बढऩे जैसी घोषणा नहीं की गई तो चौधरी महेंद्र प्रताप को कोई नहीं हरा सकता।
लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद से ही तीसरी बार जीतने की जुगत में जुटे कृष्णपाल गूजर ने मुकाबले में कमजोर प्रत्याशी उतारे जाने से लेकर वोट मैनेजमेंट के लिए कार्यकर्ता सम्मेलन, जन संपर्क जैसे कार्यक्रम शुरू कर दिए थे। बताया जाता है कि कांग्रेस में बैठे संघ के स्लीपर सेल के जरिए कृष्णपाल गूजर ने चौधरी महेंद्र प्रताप को टिकट नहीं दिए जाने पर पूरा जोर लगा दिया था।
जब तक कांग्रेस का प्रत्याशी नहीं घोषित हुआ था तब तक कोई विकल्प न होने के कारण जनता चुपचाप उनके दावों को सुन रही थी। महेंद्र प्रताप के प्रत्याशी घोषित होते ही पासा एकदम पलट गया, अभी तक गूजर के काफिले में जो भीड़ नजर आती थी वो अचानक गायब हो गई। दरअसल, गूजर रुपया पानी की तरह बहा कर रैली, कार्यकर्ता सम्मेलन और जन संपर्क में भीड़ जुटा रहे थे लेकिन महेंद्र प्रताप के साथ जनता स्वत: स्फूर्त ही जुड़ती जा रही है। जनता की गर्मजोशी का नजारा उनके नामांकन वाले दिन हुई रैली में दिखाई दिया। इतनी बड़ी संख्या में उमड़ी जनता ने सत्ता परिवर्तन का स्पष्ट संकेत उसी दिन दे दिया था। जबकि कृष्णपाल गूजर नामांकन के दिन जवाबी रैली करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। महेंद्र प्रताप जिन गांवों में गए जनता ने गर्मजोशी के साथ उनका स्वागत किया। कुछ गांवों में तो ऐसा भी हुआ कि पहले जिन लोगों ने गूजर का स्वागत किया था बाद में वो ही महेंद्र प्रताप के साथ हो गए।
जनता द्वारा गूजर को नकारने और महेंद्र प्रताप को समर्थन दिए जाने के कई कारण बताए जा रहे हैं। उनमें पहला है गूजर का घमंड और आम जनता से दूरी बनाए रखना। गूजर के करीबी भी मानते हैं दस साल में गूजर जनता से नहीं मिले, यदि कोई फरियादी उनके घर पर आया तो शायद ही कभी उससे मिले हों। जनता में यह भी संदेश गया कि मंत्री रहते हुए गूजर ने प्रशासन का इस्तेमाल करते हुए अपने और अपने परिवार के लिए अकूत संपत्तियां बनाईं, इसके लिए उन्होंने आम जनता के हितों पर भी डाका डाला। अपना हित साधने के लिए मोहना क्षेत्र के लोगों द्वारा ग्रीन फील्ड एक्सप्रेस वे पर कट बनाए जाने की मांग की बलि दे दी।
घमंड इतना कि अपने आगे संगठन और पदाधिकारियों को भी कुछ नहीं समझना। हाल ही में टेंपरेरी मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी विजय संकल्प यात्रा में आए थे। कार्यक्रम में मंच पर मौजूद भाजपा के कद्दावर नेता और कार्यकर्ताओं ने सीएम को हुक्का भेंट किया। फोटो खिंचाने के लिए जिलाध्यक्ष राजकुमार वोहरा ने हुक्के में हाथ लगाने को बढ़ाया ही था कि उनका हाथ ऐसे झटक दिया जैसे कोई सडक़ छाप हाथ लगाने का प्रयास कर रहा होगा।
गूजर की डांट सुनकर मंच पर खड़े अन्य पदाधिकारी भी सीएम को हुक्का भेंट करते हुए फोटो खिंचाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। सार्वजनिक मंच पर बेइज्जत किए जाने से सदमे में आए राजकुमार वोहरा शर्मिंदगी में तीन दिन तक घर से बाहर नहीं निकले। बिरादरी के जिलाध्यक्ष का अपमान किए जाने से पंजाबी समुदाय में तगड़ा रोष बताया जा रहा है। गूजर की इस हरकत पर पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी रोष व्याप्त है, उन लोगों को लग रहा है कि उन्हें केवल इस्तेमाल किया जाता है। उनके घमंड के ही कारण भाजपा के बड़े नेता अंदरखाने उनकी काट करने में लगे हुए हैं। कई खांटी भाजपाईयों का तो यहां तक कहना है कि इस बार इनका हारना जरूरी है, यदि जीत गए तो ये कार्यकर्ताओं को नौकर की तरह इस्तेमाल करेंगे।
एक कारण ये भी है कि कृष्णपाल गूजर ने दस साल में आम जनता के लिए कुछ नहीं किया। बस वो मोदी का ढिंढोरा पीटते रहते हैं। विकास के नाम पर िदखाने के लिए उनके पास आधे अधूरे पड़े एक्सप्रेस वे ही हैं वो भी केंद्र सरकार की परियोजना का हिस्सा हैं यानी गूजर न भी होते तो ये एक्सप्रेस वे बनते ही। वो हमेशा कहते हैं कि उन्हें जनता का वोट नहीं चाहिए, जनता तो मोदी को वोट देती है, इस बार भी मोदी के नाम पर जनता उन्हें चुनेगी। इस चुनाव में मोदी का जादू खत्म हो चुका है, दस साल में जनता भी जान चुकी है कि विकास के नाम पर मोदी ने सिर्फ छला ही है। चुनाव में में न तो मोदी के पास और न ही गूजर के पास अपनी उपलब्धियां गिनाने के लिए कुछ बचा है तो वही पुराना घिसा पिटा धार्मिक कार्ड खेला जा रहा है। मोदी के भरसक प्रयास के बावजूद सांप्रदायिकता की बासी कढ़ी में इस चुनाव में उबाल नहीं आ रहा रहा। लोगों में तेजी से प्रचलित हो रहा ये नारा मोदी-योगी से बैर नहीं, कृष्णपाल की खैर नहीं भी केंद्रीय मंत्री के प्रति रोष को ही प्रदर्शित कर रहा है।
इधर, पांच बार विधायक और राज्य में तीन बार मंत्री रह चुके महेंद्र प्रताप की गंभीर और सौम्य नेता की छवि होने के कारण जनता उनके समर्थन में खुद ही कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। कांग्रेस की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति के अनुसार महेंद्र प्रताप के पास रोजाना पंद्रह से बीस गांवों और संगठनों से उनका स्वागत करने के न्यौते आ रहे हैं। वह जहां भी जा रहे हैं बड़ी संख्या में भीड़ अपने आप ही जुट रही है। कृष्णपाल गूजर के कट्टर समर्थक पवन भड़ाना बताते हैं कि महेंद्र प्रताप को टिकट मिलने के बाद माहौल बहुत तेजी से बदला है, पिछले लोकसभा चुनाव में जिन गांवों से गूजर को एकतरफा वोट पड़ा था उनमें इस बार महेंद्र प्रताप का माहौल बना हुआ है। चंद दिन पहले तक गूजर और चौधरी के बीच लड़ाई साठ- चालीस की बताई जा रही थी लेकिन अब महेंद्र प्रताप सत्तर और गूजर के तीस प्रतिशत वोट में सिमटने के आसार नजर आ रहे हैं। समझा जा सकता है कि भाजपा और गूजर के कट्टर समर्थक भी मान चुके हैं कि इस बार गूजर चारों खाने चित हो सकते हैं।