जब लोग स्वयं ही धर्म के नाम पर शिकार होना चाहते हों तो पाखंडी क्यों न शिकार करें

जब लोग स्वयं ही धर्म के नाम पर शिकार होना चाहते हों तो पाखंडी क्यों न शिकार करें
November 08 13:40 2021

नीलिमा झा पिछले कई वर्षों से ‘मज़दूर मोर्चा’ के लिये कार्यरत हैं। मौजूदा लेख के द्वारा वे बता रही हैं कि किस तरह से धर्म एवं स्वर्ग-नरक के नाम पर पांखंडी लोग धर्मभीरु लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। जब कुछ लोग उनका शिकार बनने से बचने का प्रयास करते हैं तो उन्हीं के सगे-सम्बन्धी उन पर ऐसा सामाजिक दबाव बनाते हैं कि वे शिकार बनने को मजबूर हो जाते हैं।

-सम्पादक  नीलिमा झा
माता-पिता की मौत के बाद उनके बच्चे अपने नाम के फैलाव के लिये कर्मकांड में बहुत पैसे खर्च करते है। मृत्यु के तीसरे दिन से पुरोहितों द्वारा गरुड़ पुराण कथा बांचने पर इसके रीति और नियम के अनुसार आडम्बर फैलाते हुए कहते हैं, मृत को यमराज पकड़ कर उसको गर्म तेल में डालता है और कांटो में घसीटते हुए ले जाता है। रास्ते में बहुत कष्ट है। यमराज ऐसा कहता है कि तुम्हारा पुत्र वृखोत्सर्ग कर देगा तो तुम्हारे खानदान के सभी मृत के लिये स्वर्ग के रास्ते खुल जाएंगे।

अब वृखोत्सर्ग में क्या होता है? पूछने पर पुरोहितजी बताते हैं, वृखोत्सर्ग, कर्मकांड करने पर ही आत्मा को शान्ति मिलती है, मृत को नए शरीर में उसके प्रवेश के द्वार खुलते हैं। इसमें आवश्यक सामान, दो गाय जिसके बच्चे हों, दान के लिये आवश्यक एक बाछा, एक बाछी, एक खस्सी (बकरा)जिसका कान काट कर छोड़ दिया जाता है। इनमें से कोई भी जानवर अपंग न हो, सोना, चांदी, ज़मीन, सज्जा आदि-आदि उतना बताना सम्भव नहीं है।

अब बात यह रही कि मेरी मां की मृत्यु 10 अक्टूबर 2021 को फरीदाबाद में हो गई। मैं तीन बहनें हूं इसलिये पूरी जिम्मेवारी और पूरा कर्मकांड की सारी व्यवस्था हम तीनों को ही करना था। दाह-संस्कार करने के बाद पुरोहित जी को फोन किये कि हम लोग कर्मकान्ड के लिये निवास स्थान (बख्तियारपुर) आ रहे हैं। पुरोहित जी को उसी समय लग गया कि वृखोत्सर्ग तो जरूर होगा क्योंकि पिताजी का भी हुआ था, और ऐसा भी उन्हें आभास हो गया था कि ये लोग बहुत पैसे वाले हैं। जैसे चाहे बेवकूफ बना दो। बिना पूछे ही बताने लगे कि दो गाय, एक बाछा, एक बाछी और एक बकरा होता है ये सब ठीक कर देते हैं। आपलोग तो बाद में आयेंगे हम लोग बोले कि आने पर बताऊंगी।

वहां पहुंचने पर, पुरोहित जी और परिवार के सदस्य, कुछ आस-पड़ोस के लोग कर्मकांड पर बात करने पहुंचे। इस पर मेरी बड़ी दीदी का बेटा (आदित्य) जो आईआईटी खडग़पुर से पढाई करके जॉब में है और वह कोई भी बात साफ-साफ बोलता है, उसने कहा कि इतने पैसे खर्च नहीं करना है। इस पर मेरा कजन भाई कहने लगा दादी का तो हाल में किया है और नानी का क्यों नहीं करेगा? इस पर आदित्य कहने लगा कि वहां दादाजी का नहीं किये थे इसलिये किये, परन्तु नानाजी का तो किये थे, इसलिये अभी वृखोत्सर्ग नहीं भी होगा तो कोई बात नहीं। इस पर मेरा चचेरा भाई कहने लगा तुम लोग छोड़ो, चुपचाप बैठ जाओ, मैं करूंगा। मैं और मेरी दोनों बहने समझ गई कि इसके पीछे दूसरा बड़ा कारण है। मेरी आवाज़ ज्यादा कड़क है, मैं तेज आवाज में कजन भाई से कह दी। अपनी बात अपने पास रखो, मैं सामथ्र्य हूं और वृखोत्सर्ग करूंगी सिर्फ शारीरिक मदद आपसे चाहिये पैसे से नहीं। अब पुरोहितजी के मुंह में लड्डु फूटने लगा, बोलने लगे हां मुझे पहले ही लग रहा था कि वृखोत्सर्ग अवश्य होगा।

क्या कमी है मालकिन को, दो लड़के आईआईटी इंजीनीयर है, भगवान के आशीर्वाद से बहू भी पंजाब बैंक में मैनेजर है। इस पर कजन भाई फिर बोलना शुरू किया आप ये क्या कह रहे हैं पंडित जी, इन लोगों के पास चाहे कितना भी कुबेर का खजाना क्यों न हो मुझे क्या मतलब। मेरे बड़े पापा ने बहुत कमाया है और उनका बहुत बड़ा नाम व प्रतिष्ठा है। यदि वृखोत्सर्ग नहीं हुआ तो हमलोग मुंह दिखाने के नज़र में नहीं रहेंगे। बड़ी मां के पास क्या कमी है। ऐसा मकान, इतना ज़मीन, इसके अलावा बैलेंस तो गुप्त है। कोई अपना पैसा लगाकर नहीं करेगा। मैं फिर बोल दी उतनी ही कड़क आवाज़ में, भइया, आप अपने पैसे से करोगे? बोला हां, मैं तुम लोग से एक पैसा नहीं लूंगा। मै फिर बोली, अपने पिताजी का यानी चाचाजी का वृखोत्सर्ग क्यों नहीं किये? इस पर कोई जवाब नही था। किन्तु हमलोग करेंगे जितना पिताजी प्रतिष्ठा बनाये हैं, आपलोगों की प्रतिष्ठा कम नहीं होने देंगे और ऊंचा कर देंगे, उनकी जुबान बिल्कुल बंद हो गई। अब वृखोत्सर्ग की तैयारी शुरू हुई।

पुरोहित जी लिस्ट दिये, खरीदारी शुरू हो गई। इसमें हर छोटी से बड़ी सामान था जो यहां बताना सम्भव नहीं है। पुरोहित से लेकर परिवार के सभी लोग कहने लगे वृखोत्सर्ग एक पंडित से नहीं होगा, इसके लिये कम से कम तीन अच्छे विद्वान पंडित चाहिये जो व्याकरणाचार्य हो और ये लोग की विदाई इतनी महंगाई में 11000 रुपये, पांचो टुक कपड़ा से कम नहीं होना चाहिये।
दसवां दिन बाल और नख कटवाया जाता है। संयोगवश वो दिन पड़ा मंगलवार। अब बात यह हुई कि मंगलवार के दिन नख-वाल कैसे बनवाया जाय। इस पर पंडितजी ने विचार दिया कि काला कबूतर मंगवाओ और जब घर से सभी लोग नख-वाल कटवाने जायेंगे तो नाई उसका पंख नोच कर खून निकालेगा और उसका खून देखकर लोग गंगा जी के घाट पर जायेंगे। ढुंढने पर काला कबूतर 350 रुपये में लाया गया, सभी जेंट्स घर से बाहर निकलते वक्त और उसमें सबसे आगे मुखाग्नि देने वाला कर्ता कबूतर का खून देखा। घर के जो परिवार वहां मौजूद नहीं थे सभी वीडियो पर देख कर अपना नख बाल कटवाये।

अब वृखोत्सर्ग का कर्मकांड शुरू हुआ, जिसे एकादशा कहा जाता है। उस दिन महापात्र दम्पत्ति मौजूद हुए। इन पति पत्नी का पैर पूजा ऐसे किया गया जैसे देवताओं की पूजा की जाती है। महापात्र पति-पत्नी का नाटक देखने के लिये भीड़ उमड़ गई। उसमें सोना, चांदी, वस्त्र और नकद पैसे से महापात्र पति-पत्नी की पूजा हुई।

अब बात आई कि बाछा-बाछी का विवाह होगा, तो पहले बाछा को गर्म लोहे की छड़ से दागा जायेगा और यह काम भी महापत्र ही करेगा। जब बछड़ा बोल देगा, तो मृत प्राणी स्वर्ग अवश्य पहुंच गया। लोहार तेज आग में आधा घंटा पहले लोहे के बने त्रिशुल और चक्र को गर्म होने के लिये रखा। महापात्र बछड़ा को पटक कर चारो पैर मजबूत रस्सी से बांधकर 51000 रुपये दागने का मांगा। मुझे बछड़ा का ये हालत देखकर बडा़ अजीब सा लगा, मैं ओह की। महापात्र को पांच हजार रुपये देते हुए मैं तेज आवाज में कही जल्दी करो जल्लाद, कि बस वो मुझसे लडऩे लगा। घर के सदस्य भी मुझे ही डांटने लगे। महापात्र बोलने लगा कि गौ का एक रोवां टूटने का प्रायश्चित लगता है और मुझे पांच हजार रुपये में दागने के लिये कहते हो। ऐसा कहते हुए रुपये को फेंक दिया। फिर सभी लोग मिलकर 11000 उस जल्लाद महापात्र को दिलवा दिया। अब लोहार ने महापात्र के हाथ में आग से गर्म किये लाल लोहा दिया और उसने जब बछड़ा को दागा तो उसका शरीर से घुआं निकलने लगा। फिर कहने लगा अब पलट कर दूसरी तरफ दागने के पैसे दो 11000 और। उसे हाथ पांव जोड़कर कहा गया कि अब इसी पैसे में करो। मेरे एक चाचा थे वो बोले कि ये सब अशुभ काम है, इसलिये इसमें दोबारा नहीं दिया जाता और जल्दी काम खत्म करो नहीं तो इसकी टांगे तुमने बांधा है। इसलिये इसका प्रायश्चित भी तुम्हें ही लगेगा। किसी तरह इस महापात्र से हम लोग जैसे पात्र का उस समय पिंड छूटा।

अब दागने के बाद बाछा-बाछी का विवाह शुरू हुआ। बाछा को भगा दिया जाता है, जो सांड होता है और बाछी लोहार का होता है। पंडित जी ने पहले ही मंत्रों द्वारा कर्ता को कसम खिलवाया कि आज से इस बाछी को हम नहीं रखेंगे, और न कभी इसका दूध खायेंगे, चाहे इसे कोई ले जाय कुछ नहीं बोलेंगे। बाछा को हमारे परिवार वाले ने बहुुत दूर जाकर भगा दिया। अब रही बात बाछी के, लोहार, पुरोहित, महापात्र में महायुद्ध प्रारम्भ शुरू हुआ। मार-पीट की नौबत आ गई, इन तीनों में सबसे कमजोर लोहार था बेचारा, कुछ नहीं बोला क्योंकि वो अपना ज्यादा परिवार के साथ नहीं आया था। पुरोहित को महापात्र अपना पैर के जूता से ऐसा मसल दिया कि पुरोहितजी चुप रहने में भलाई समझे, नहीं तो मार-पीट होने पर उनकी इज्जत की हानि होती। महापात्र ऐसा कहते हुए बाछी को अपना घर भेज दिया, और कहा कि जो इसे पकड़ेगा उसके पेट में चाकू भोंक दूंगा। घर के परिवार, यानी हम लोग तो पहले से ही वचन दे दिये हैं कि कुछ नहीं बोलना है। अब लोहार तो बेचारा सीधा व बुजुर्ग था, वो रो कर कहने लगा मालिक क्या करें? फिर  हम लोग 3500 रुपये देकर लोहार से पिंड छुड़वाये।

उसके बाद हर मंत्र पर महापात्र का वही नौटंकी और एक बार मुझसे कहा सभी सामान तो है किंतु मोबाइल नहीं है। मैं बोल दी कि आपने स्वर्ग में टावर भी बनवा दिया है? तो कहने लगा कि आपलोग अजीब बात करती हैं। फिर मेरी बहन बोली, ऐसा है कि पहले मां से बात करवा दीजिये मैं अभी मोबाइल दान करती हूं। इस पर मूर्ख जैसा हंसने लगा। यहां सभी दान में ऐसा नियम है कि महापात्र के दोगुणा पुरोहितजी लेंगे और महापात्र का आधा नाई लेगा।

उसके बाद स्वर्ग तक पहुंचने में एक वर्ष पूरा लगता है हम तो महीने में एक बार तिथि खिलाते हैं, बाकीे दिन रास्ते में मृत्यु प्राणी खायेगा क्या? इसके लिये वर्षभोज में सवा मन यानी 50 किलो चावल या गेहूं महापात्र को और ढाई मन पुरोहित को देना अनिवार्य है। ऊपर से सब्जी दाल के पैसे।

जब सारा काम खत्म हो गया तो मैं, पुरोहत जी और घर के परिवार के सामने बोली कि रामायण में कहीं नहीं दिखाया है कि राजा दशरथ का कर्मकांड हुआ है। मृत्यु भोज किसी वेद-शास्त्र का हिस्सा नहीं है। इसे पाखंडियों द्वारा समाज और परिवार पर थोपा गया है, भगवान राम के पिता की मौत के बाद मृत्यु भोज न भरत ने किया न राम ने। पुरोहित वशिष्ठ ने कहां इतना पाखंड बताया था बल्कि उन्होंने भरत को समझाया था कि तुम्हारे पिता बहुत ज्ञानी थे, ऐसे धीर पुरुष अवश्य स्वर्ग जाते हैं। जिन रघुकुल के पुरोहित वशिष्ठ को हम आदर्श मानते हैं उनके जीवन के महत्वपूर्ण बातों को क्यों भूलते जा रहे हैं। समाज में पढे-लिखे लोग इसे खत्म करना चाहते हैं तो परिवार और पुरोहित बहुत तरह की बातें बोल कर जलील करते हैं। समाज में ऐसा होना चाहिये कि अपने-अपने गांव से बाहरी आडम्बर खत्म कर लोगों को सही रास्ते पर ले जाना चाहिये।

पाखंडियों के जाल में फंसकर अपना ही शोषण कराने का यह उदाहरण तो उन पढे-लिखे नई पीढी के लोगों का है। आधुनिक विज्ञान को समझने वाले लोग भी जब इस तरह से पाखंडियों के शिकार बनते रहेंगे तो अल्पज्ञ एवं कम पढे-लिखे लोगों का क्या होगा? अपने समय में इस अंध-विश्वास को मिटाने के लिये साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने व महॢष दयानंद सरस्वती ने अपना पूरा जीवन इस अंधविश्वास को मिटाने में लगा दिया। परन्तु पाखंडी लुटेरों का स्वर्ग-नरक रूपी जाल इतना मजबूत है कि लोग अभी भी इसका शिकार बनने को तैयार रहते हैं। उन लुटेरे पाखंडियों को, इन तीन बहनों से कर्मकांड के नाम पर पांच लाख रुपये लूटने में कोई दया नहीं आई।

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles