फरीदाबाद (म.मो.) फरवरी 2022 में यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते करीब 25 हजार भारतीय मेडिकल छात्र रोते-पीटते व मरते-गिरते व लाखों रुपया खर्च करके भारत लौटे थे। छात्रों पर छाई उस वक्त भयंकर आपदा में भी यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी छवि निखारने का अवसर ढूंढ ही लिया था। प्रचारित कराया गया कि मोदी ने युद्धरत दोनों देशों को कह कर, तब तक के लिये युद्ध रुकवा दिया था जब तक कि वे अपने भारतीय छात्रों को वहां से सुरक्षित न निकाल लें।
सर्वविदित है कि भारतीय दूतावास की जिस लापरवाही तथा उदासीनता के चलते भारतीय छात्र दुर्दशा का शिकार होते हुए देश लौटे थे, उसके लिये मोदी सरकार ही जिम्मेवार थी। सरकार द्वारा दूतावास के माध्यम से, समय रहते जो प्रबन्ध किये जाने चाहिये थे वे नहीं किये गये थे। जब अधिकांश छात्र वहां से जैसे-तैसे निकल लिये तो मोदी ने उनकी निकासी की नौटंकी शुरू की। शुरू में एयर इंडिया ने मजबूर छात्रों से दोगुणे से चौगुणे तक भाड़ा वसूला। बाद में जब मोदी सरकार की थू-थू अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने लगी तो इन्होंने कुछ जहाज भेजे थे। इन जहाजों में तैनात केन्द्रीय मंत्री छात्रों से मोदी जी के पक्ष में नारे लगवाते भी देखे गये थे।
भारत लौटने के बाद उन छात्रों की दुर्दशा का दूसरा दौर शुरू होने में कोई देर नहीं लगी। मेडिकल शिक्षा व्यापारियों के दबाव के चलते इन छात्रों को न तो किसी मेडिकल कॉलेज में एडजस्ट किया गया और न ही ऑनलाइन पढाई के साथ-साथ स्वदेशी अस्पतालों में कुछ सीखने की इजाजत दी गई। बंगाल की ममता सरकार ने इन छात्रों को अपने यहां एडजस्ट करने का बहुत प्रयास किया था। लेकिन चिकित्सा व्यापार में लगे व्यापारियों के दबाव में मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसकी इजाजत नहीं दी। शिक्षा व्यापारियों की तकलीफ यह है कि छात्र उनके यहां पढने के बजाय विदेश क्यों जाते हैं? विदित है कि भारत में जो पढ़ाई एक करोड़ में होती है वहीं यूक्रेन जैसे देशों में 20 लाख में हो जाती है। कुल मिलाकर पांच साल की पढ़ाई में यहां पांच करोड़ तो वहां एक करोड़ में ही काम निपट जाता है।
एक साल से अधिक भटकने व धक्के खाने के बाद इन मजबूर छात्रों को फिर से बाहर जाने की तैयारी करनी पड़ी। ये छात्र यूक्रेन के बजाय अन्य देशो में जाना चाहते थे, लेकिन इन्हें तंग करने के लिये मोदी सरकार ने आदेश दिया कि इन्हें यूक्रेन के कॉलेजों से ही अपना पाठ्यक्रम पूरा करना होगा। इसे लेकर कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तब जाकर इन्हें राहत मिली कि वे किसी भी देश के कॉलेजों से अपना शेष पाठ्यक्रम पूरा कर सकते हैं। जो छात्र इस राहत की प्रतिक्षा नहीं कर सके वे जुलाई 2022 से वापस यूक्रेन लौटते गये लेकिन शेष बचे करीब 75 प्रतिशत छात्र उजबेकिस्तान जैसे अन्य देशों में, जहां जगह मिली वहां चले गये। सेक्टर 17 निवासी राजेन्द्र शर्मा एडवोकेट ने बताया कि सर्वोच्च अदालत से राहत मिलते ही उन्होंने अपनी बेटी का दाखिला उजबेकिस्तान में करा दिया। इस सारे खेल में बेटी का जहां डेढ साल बर्बाद हो गया वहीं करीब एक करोड़ का खर्चा अलग से लग गया।
दूसरी ओर फिलिपींस, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलांका तथा मिस्र जैसे छोटे देशों ने यूक्रेन से लौटे तमाम मेडिकल छात्रों को अपने यहां एडजस्ट कर लिया। विश्वगुरु बनने का ढोंग रचने वाला भारत ही एक मात्र देश है जो अपने इन छात्रों को केवल इस लिये एडजस्ट नहीं कर सका कि कहीं इससे शिक्षा व्यापारियों की लॉबी नाराज न हो जाये।