अवैध रूप से दिल्ली को शराब सप्लाई का धंधा करीब 100 करोड़ मासिक का बताया जाता है। इसमें से 10 करोड़ मासिक पुलिस के हिस्से में आते हैं। इस अवैध सप्लाई का प्रमुख मार्ग थाना सूरजकुंड के इलाके से होकर जाता है। इसका लांचिंग पैड, गांव अनंगपुर है। दिन भर यहां, विभिन्न ठिकानोंं पर शराब का स्टॉक एकत्र किया जाता है और रात को पचासों लड़के मोटरसाइकिलों पर सप्लाई करने निकलते हैं। इनके अलावा 12-14 केंटर, पिकअप व अन्य वाहन निकलते हैं।
सप्लाई में सुविधा के लिये खडिय़ा खान नामक एक ठेका भी है। ठेके के नाम पर लोहे का एक बड़ा कंटेनर रखा हुआ है जिसमें कई गाड़ी माल दिन भर में भर लिया जाता है जिसे रात में पार कर दिया जाता है। यह ठेका कांत एन्क्लेव के भीतर करीब दो-तीन किलोमीटर जाकर एक ऊंचे से टीले पर रखा है। इस ठेके के आसपास करीब तीन-चार किलोमीटर तक कोई आबादी नही है, जाहिर है यह ठेका आम जनता को शराब बेचने के लिये बना ही नहीं है। यह तो बना ही केवल दिल्ली को सप्लाई करने के लिये हैं। इस ठेके तक कोई जाना भी चाहे तो आसानी से जा नहीं सकता, चारों ओर गहरा जंगल है जिसके एक ओर दिल्ली की भाटी माइन्स हैं। दिल्ली सरकार ने इस क्षेत्र में जंगली जीव तेंदुए अजगर पालने के लिये छोड़ रखे हैं। जानकार बताते हैं कि वहां (भाटी माइन्स) से 5 तेंदुए दीवार कूद कर इस ओर आ गये हैं। इसके अलावा कई अजगर भी इधर आ चुके हैं। कुल मिला कर यह इलाका इतना दुर्गम है कि रात तो क्या दिन में भी कोई वहां जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता।
इस संवाददाता ने मौका व तमाम चोर रास्तों को देखने के साथ-साथ देखा कि कंटेनर में चल रहे इस ठेके की रखवाली के लिये वहां सदैव तीन-चार सशस्त्र लड़के तैनात रहते हैं। उनकी निगाह बचा कर किसी तरह इस संवाददाता ने, प्रस्तुत फोटो खीची है। शराब के इस काले धंधे के साथ क्षेत्र के बड़े राजनेताओं व आबकारी विभाग भी जुड़ा है। इस मामले में विभाग का बड़ा मासूम सा तर्क यह होता है कि उन्हें सरकार के राजस्व से मतलब है। यानी सरकार को अधिक से अधिक राजस्व प्राप्त होना चाहिये, शराब चाहे जंगल में बिके या शहर में। ऐसा भी नहीं है कि लूट कमाई केवल स्थानीय नेताओं व अफसरों तक ही सीमित रहती हो, इसका बड़ा भाग चंडीगढ़ तक भी पहुंचता है। अब देखना यह है कि नये सीपी साहब इस दिशा में क्या कदम उठाते हैं?