इलैक्टोरल बॉन्ड्स का गोरखधंधा

इलैक्टोरल बॉन्ड्स का गोरखधंधा
November 18 06:20 2023

योगेन्द्र यादव
आपने ‘ब्लैक मनी’ को ‘व्हाइट’ करने के धंधे के बारे में सुना होगा। लेकिन कभी ‘व्हाइट मनी’ को पहले ‘ब्लैक’ और फिर ‘व्हाइट’ करने के गोरखधंधे के बारे में सुना? इसका नाम है ‘इलैक्टोरल बॉन्ड’ यानी कि कंपनियों के एक नंबर के पैसे को 2 नंबर के गुप्त रास्ते से…

आपने ‘ब्लैक मनी’ को ‘व्हाइट’ करने के धंधे के बारे में सुना होगा। लेकिन कभी ‘व्हाइट मनी’ को पहले ‘ब्लैक’ और फिर ‘व्हाइट’ करने के गोरखधंधे के बारे में सुना? इसका नाम है ‘इलैक्टोरल बॉन्ड’ यानी कि कंपनियों के एक नंबर के पैसे को 2 नंबर के गुप्त रास्ते से पार्टियों के एक नंबर के खाते में जमा करने की योजना। यह गोरखधंधा 2018 में शुरू हुआ था। 5 साल तक बेरोक-टोक चलने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट को इस पर सुनवाई करने का वक्त मिला है। पिछले हफ्ते ही यह सुनवाई पूरी हुई है। अब फैसले का इंतजार है।

राजनीति में काले धन का इलाज करने के लिए कई कानूनी बंदिशें बनाई गई थीं, जो अक्सर कागज पर ही रहीं लेकिन इन्हें मजबूत करने की बजाय पिछले 10 साल में भाजपा सरकार ने बची-खुची कानूनी बंदिशें भी समाप्त कर दीं। एक बंदिश यह थी कि कोई भी कम्पनी अपने घोषित मुनाफे के 7.5 प्रतिशत से ज्यादा राजनीतिक चंदा नहीं दे सकती। मोदी सरकार ने इस प्रावधान को हटा दिया। इससे सिर्फ काले धन को राजनीति में लगाने की नीयत से फर्जी कंपनियां खोलने का रास्ता साफ हो गया।

दूसरी महत्वपूर्ण बंदिश यह थी कि कोई भी विदेशी कम्पनी हमारे देश की किसी राजनीतिक पार्टी या गतिविधि में एक पैसा भी नहीं लगा सकती। दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को इस प्रावधान का उल्लंघन करने का दोषी पाया था। कोर्ट के फैसले को लागू करने की बजाय राष्ट्रवाद का नारा लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार ने उस कानून को बैक डेट से बदल दिया। अब कोई भी विदेशी मलकीयत वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनी किसी भी पार्टी को कितना भी चंदा दे सकती है, बस उसे यह काम अपनी भारतीय एफिलिएट के खाते से करना होगा।

इलैक्टोरल बॉन्ड की योजना इसी कड़ी का तीसरा हिस्सा है। अब तक कानून में बंदिश थी कि किसी भी कम्पनी को किसी भी पार्टी को दिए गए चंदे को अपनी बैलेंस शीट में घोषित करना पड़ता था। इसी तरह पाॢटयों को भी कंपनियों या और भी किसी स्रोत से मिले चंदे को चुनाव आयोग के सामने घोषित करना पड़ता था। लेकिन इलैक्टोरल बांड स्कीम के माध्यम से इन सब बंदिशों को एक झटके में खत्म कर दिया गया। अब कोई भी कम्पनी चाहे जितनी मर्जी रकम के इलैक्टोरल बांड स्टेट बैंक से खरीद सकती है।

ये बॉन्ड एक नोट की तरह हैं, कंपनी जिस पार्टी को चाहे उसे दे सकती है। कम्पनी को यह नहीं बताना पड़ेगा कि उसने किस पार्टी को पैसा दिया। लेकिन उसे पहले की तरह इस पूरे चंदे पर इनकम टैक्स की पूरी छूट मिलेगी। उधर पार्टी को यह बताना नहीं पड़ेगा कि उसे किस कंपनी से पैसा मिला। ये दोनों सूचनाएं सिर्फ बैंक के पास होंगी और वह इसे गुप्त रखेगा। इस अजीब योजना को पेश करते समय सरकार ने तर्क यह दिया था कि इससे काले धन को रोकने में मदद मिलेगी। यह कहा गया था कि अनेक कंपनियां पार्टियों को पैसा देना तो चाहती हैं लेकिन अपना नाम सार्वजनिक होने से डरती हैं। उन्हें डर यह होता है कि अगर सत्ताधारी पार्टी को पता लग गया तो उनके खिलाफ प्रताडऩा की कार्रवाई की जा सकती है, इसलिए कंपनियां 2 नंबर में पैसा देने को मजबूर होती हैं। कहा गया कि इलैक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से गुप्तदान की कानूनी व्यवस्था बनाने से यह समस्या सुलझ जाएगी।

इस विचित्र योजना का पहले दिन से विरोध हुआ था। जब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की टिप्पणी मांगी गई तो उसने बताया कि इस योजना से मनी लांंड्रिग और काले धन को रोकने वाले बाकी कई कानून बेकार हो जाएंगे। चुनाव आयोग ने लिखकर इस योजना पर एतराज जताया। यहां तक कि भारत सरकार के विधि मंत्रालय ने भी इस पर आपत्ति दर्ज की। लेकिन मोदी सरकार को 2019 के चुनाव से पहले इस इलैक्टोरल बॉन्ड को लागू करने की इतनी हड़बड़ी थी कि उसने इस कानून का मसौदा पार्टियों को दिखाए बिना इसे संसद में पास करवा लिया क्योंकि उन दिनों भाजपा को राज्यसभा में बहुमत नहीं था इसलिए इसे 2018 के बजट के साथ नत्थी कर पास करवा लिया ताकि वित्तीय विधेयक होने के नाते इसे राज्यसभा के बहुमत की जरूरत न पड़े।
सुप्रीम कोर्ट के सामने सुनवाई में प्रशांत भूषण और कपिल सिब्बल सरीखे वकीलों ने साबित किया कि यह काले धन को रोकने नहीं बल्कि काले धन को पोषित करने की योजना है। सरकार जब चाहे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से गुपचुप यह सूचना हासिल कर सकती है। एन्फोर्समैंट डायरेैक्टोरेट और अन्य जांच एजैंसियों को सत्ताधारियों के इशारे पर यह सूचना हासिल करने का कानूनी अधिकार भी है इसलिए गुप्तदान के जरिए राजनीतिक प्रताडऩा को रोकने का तर्क हास्यास्पद है। हां, अगर किसी के लिए यह चंदा सचमुच गुप्त रहेगा तो वह है साधारण जनता और मतदाता। यह योजना हमारी चुनावी व्यवस्था की बची-खुची पारदर्शिता को भी खत्म कर देगी। यह नागरिक और मतदाता के बुनियादी सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।

सच तो यह है कि पहले 2 कानूनी बंदिशें हटाने के बाद इलैक्टोरल बॉन्ड की स्कीम हमारे लोकतंत्र को देशी और विदेशी कंपनियों के हाथ में गिरवी रखने की योजना है। पहले 5 साल में इस योजना के माध्यम से 15,000 करोड़ रुपए इकटठे किए जा चुके हैं। इनमें से आधे से अधिक यानी 8000 करोड़ के करीब भारतीय जनता पार्टी को मिले हैं।

बाकी अधिकांश पैसा राज्य स्तर पर सत्ताधारी पार्टियों को गया है। मतलब यह साबित हो चुका है कि यह योजना देशी-विदेशी कंपनियों द्वारा सत्ताधारी पाॢटयों को जनता की आंख पर पर्दा डालकर मोटी रकम पकड़ाने की योजना है जिससे राजनीतिक भ्रष्टाचार अब कानून सम्मत हो जाएगा। अब देखना यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बैंच इस गोरखधंधे को गैर-कानूनी घोषित कर राजनीति में धन बल के असर को रोकने और पारदर्शिता को बनाए रखने का साहसी फैसला सुनाएगी या फिर इसमें कुछ छोटे-मोटे पैबंद लगाने की हिदायत देकर इतिश्री कर लेगी?

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles