मुस्तजाब
ये टूटी बिखरी मजबूर हो गई, ये चिल्ला चिल्ला कर माज़ूर हो गई, ये नेगेटिविटी से भरपूर हो गई, आसमान जानी थी, मगर खजूर हो गई। इकोनॉमी हमारी चूर चूर हो गई।
करती क्या बेचारी, कोई साथ देने वाला ना था, जुमलों का फक़त तीर था, कोई बाण देने वाला ना था।
ये निर्मल बेचारी, आवम पर क्रूर हो गई, इकोनॉमी हमारी चूर चूर हो गई।
नौकरियां गईं, लोगों का काम गया, करोड़ों चुरा ले जाने वाला मगर सरेआम गया।
यह अंबानी, अदानी के घर का तंदूर हो गई, इकोनॉमी हमारी चूर चूर हो गई।
इतने ज़ख्म हैं बेचारी पर की चलना मुश्किल है, अरे चल जाए तो दूर की बात है, उठना मुश्किल है।
‘एक्ट ऑफ गॉड’ से मशहूर हो गई, इकोनॉमी हमारी चूर चूर हो गई।