बिहार में का बा….मतदाताओं से ब्लैकमेलिंग बा…
यूसुफ किरमानी (वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक)
अजब तमाशा है…बिहार के मदरसों को बचाना है तो मुसलमान जेडीयू को वोट दें। बिहार को कोरोना की वैक्सीन चाहिए तो उसे भाजपा को वोट देना होगा। मतदाताओं से ब्लैकमेलिंग का यह नया अविष्कार या प्रयोग बिहार से शुरू हुआ है। बिहार में अब मतदाता अपनी शर्तें नहीं बता रहा है, नेता और पार्टियाँ उससे शर्त लगाकर वोट माँग रही हैं। प्याज सौ रूपये किलो पहुँच गई है, उस पर कोई जवाबदेही नहीं। मदरसा और कोरोना वैक्सीन चुनावी मुद्दा है।
चुनाव बिहार में लड़ा जा रहा है लेकिन उसे धार्मिक ध्रुवीकरण की तरफ मोडऩे की कोशिश दायें-बायें से हो रही है। असम में मदरसों को बंद किये जाने के फौरन बाद हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान और बिहार में मदरसों को बंद करने की भाजपाई मांग ने जोर पकड़ लिया। बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का सीएए-एनआरसी पर ताजा बयान इसी सिलसिले की कड़ी है। तमाम टीवी चैनल भी दिन रात इस काम में जुटे हैं। कहीं भी नितीश के कामकाज पर बात नहीं हो रही है।
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के जिन्न को बीजेपी फिर बोतल से बाहर ला रही है। बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहा है और बंगाल में चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है। उससे पहले यह घटनाक्रम सामने आया है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सोमवार (19 अक्टूबर) को बंगाल के सिलीगुड़ी में कहा – सभी लोगों को नागरिकता बिल का लाभ बहुत जल्द मिलेगा। हमने इसके लिए प्रतिबद्ध हैं। यह बिल अब संसद से पास हो चुका है। कोविड महामारी के इसको लागू होने में देरी हुई। पर अब धीरे-धीरे हालात सुधर रहे हैं। अब नागरिकता कानून पर काम शुरू हो गया है और नियम बनाए जा रहे हैं। यह जल्द ही लागू किया जाएगा।
फिर सीएए, फिर नितीश की चुप्पी
नड्डा के बयान पर तृणमूल कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक दल तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं लेकिन बिहार के सीएम नितीश कुमार खामोश हैं। उन्होंने एक बार भी बीजेपी अध्यक्ष के बयान की न निन्दा की और न ही अपना रुख बताया। संसद में जब सीएए पास हुआ था, तब भी नितीश कुमार की पार्टी जेडीयू खामोश रही थी। यह एक रणनीति है। हर चुनाव में भाजपा बिहार में धार्मिक ध्रुवीकरण का कार्ड खेलती है, जेडीयू चुप रहती है। इससे मुस्लिम मतदाताओं में कन्फ्यूजन की स्थिति बनी रहती है। उसके सामने एक तरफ तो लालू यादव का राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) है, जो बीजेपी विरोध की राजनीति कर ही बिहार में खड़ा हुआ। दूसरी तरफ नितीश कुमार हैं जो बिहार के मुसलमानों के लिए “कुछ करते हुए दिखाई देते हैं” लेकिन निर्णायक स्थिति में चुप हो जाते हैं। मुस्लिम स्कॉलर मौलाना शहाबुद्दीन ने “द प्रिंट” से कहा – बिहार चुनाव में मुद्दा नितीश कुमार का कामकाज होना चाहिए लेकिन जब उस पर बताने के लिए कुछ नहीं है तो बीजेपी अध्यक्ष ने सीएए पर बयान दे दिया है।
मदरसा एजुकेशन बोर्ड बीजेपी के आंख की हमेशा किरकिरी रहे हैं। असम में बीजेपी की सरकार ने 15 अक्टूबर 2020 को मदरसा एजुकेशन बोर्ड भंग करने की घोषणा कर दी। हालांकि करीब एक साल पहले इन मदरसों को भंग करने की घोषणा की गई थी लेकिन उस पर कार्रवाई बिहार चुनाव के दौरान की गई। असम सरकार 614 मदरसे चलाती थी। असम की इस घोषणा का हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज ने फौरन स्वागत किया। ये वही अनिल विज है जो हरियाणा के मेवात में चलने वाले मदरसों पर खिलाफ बोलते रहे हैं। हालांकि हरियाणा में 2014 से पहले मदरसा एजुकेशन बोर्ड बनाने की कोशिश शुरू हुई थी लेकिन 2014 में राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद सारी फाइलें रोक दी गईं। राज्य में निजी तौर पर चलने वाले कुछ मदरसों को हरियाणा वक्फ बोर्ड से मामूली मदद मिलती है। राज्य में मुस्लिम बहुल मेवात इलाका सबसे पिछड़ा हुआ है।
राजस्थान में भी मदरसा बोर्ड का विरोध भाजपा ने किया। विवादास्पद बयानों के लिए चर्चित भाजपा नेता और पूर्व विधायक ज्ञानचंद आहूजा ने लगातार राजस्थान सहित देशभर के मदरसों को बंद करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि मदरसों में आतंकी तैयार होते हैं।
ऐसी ही मांग भाजपा के नेताओं ने महाराष्ट्र में भी उठा दी। 15 अक्टूबर को महाराष्ट्र में भाजपा विधायक अतुल भटकर ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर राज्य में चल रहे मदरसों को बंद करने की मांग रख दी। बताते चलें कि शिवसेना का रुख भी मदरसों के खिलाफ रहा है। शिवसेना के साथ गठबंधन में शामिल एनसीपी के विधायक और मंत्री नवाब मलिक ने बीजेपी विधायक को जवाब देते हुए कहा कि राज्य में पांच साल देवेन्द्र फडणनवीस की सरकार रही, तब क्यों नहीं ऐसी रोक लगाने की मांग उठी। जाहिर है कि बीजेपी अपने मकसद को पूरा करने और लोगों को बांटने के लिए ऐसे बयान देती है।
बिहार के करीब 4000 मदरसे इस एजुकेशन बोर्ड से जुड़े हुए हैं। इनमें से 1942 मदरसे सरकारी सहायता प्राप्त हैं। करीब 15 लाख बच्चे इनमें पढ़ रहे हैं। नितीश ने चुनाव से एक साल पहले बिहार स्टेट मदरसा एजुकेशन बोर्ड के चेयरमैन अब्दुल कयूम अंसारी की नियुक्ति 31 जनवरी 2019 को की। बिहार चुनाव के तारीख की घोषणा होने से ठीक पहले बोर्ड के चेयरमैन अंसारी ने इन मदरसों के आधुनिकीकरण पर बयान दिया। मतलब ये कि अगर नीतीश यह चुनाव जीते तभी मदरसों का आधुनिकीकरण होगा। यानी मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए मुसलमानों को जेडीयू को वोट देना होगा।
टीवी चैनलों पर मदरसों को लेकर अभी तक बहस का सिलसिला जारी है। जमात और जमातियों पर अदालत से तमाम लानत-मलामत के बावजूद अफवाहबाज चैनल अभी तक हिम्मत नहीं हारे हैं।
मुस्लिम प्रत्याशी चुनावी मुद्दा
इनकी बदमाशी का एक और मामला। दरभंगा जिले में जल्ले विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी मशकूर उस्मानी को भी भाजपा ने मुद्दा बना दिया है। मशकूर उस्मानी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे हैं। भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि मशकूर उस्मानी पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के समर्थक हैं। उन्हें टिकट देकर महागठबंधन और कांग्रेस ने देशद्रोह का काम किया है। हालांकि एएमयू कम्युनिटी ने हर मौके पर कहा है कि जिन्ना इतिहास का एक अध्याय है, विचारधारा नहीं। जिन्ना की मौत के बाद इतिहास का वो अध्याय भी अब खत्म हो चुका है। गिरिराज सिंह के बयान के बाद सारे भाजपाई उस्मानी पर टूट पड़े और पूरे राज्य में अब उस्मानी के टिकट को लेकर मुद्दा बनाकर धार्मिक धुर्वीकरण की कोशिश की जा रही है। 26 साल का यह युवा नेता बीजेपी के प्रचंड अभियान की वजह से राज्य का मुस्लिम चेहरा बन गया है। बिहार में अब तक घोषित प्रत्याशियों में मशकूर को सबसे कम उम्र का प्रत्याशी बताया गया है। बिहार में सांसद और एआईएमआईएम के अध्यक्ष असद्दुदीन ओवैसी की रैलियां अभी राज्य में शुरू नहीं हुई हैं। ओवैसी हैदराबाद की बाढ़ में फंसे हुए हैं। ओवैसी के बिहार दौरे के बाद बीजेपी को माहौल बदलने की उम्मीद है।