हृदय रोग, डायलिसिस के बाद अब आईसीयू भी मुनाफाखोरों के हवाले

हृदय रोग, डायलिसिस के बाद अब आईसीयू भी मुनाफाखोरों के हवाले
September 24 14:42 2022

बीके अस्पताल चलायेंगे चिकित्सा व्यापारी
फरीदाबाद (म.मो.) शहर की जनता को बेवकूफ बनाने के लिये हरियाणा सरकार ने बीके अस्पताल में गरीबों के लिये पहले ह्दय रोग का इलाज व डायलेसिस की सुविधा शुरू तो की लेकिन ये सुविधायें न तो सस्ती हैं और न ही भरोसेमंद। अब आईसीयू शुरू करने की बात की जा रही है।

दरअसल राज्य सरकार को इन सब सेवाओं के लिये कुछ नहीं करना होता। सरकार तो जनता के लिये बने-बनाये इस अस्पताल के वार्डों को पीपीपी प्रणाली के तहत ठेके पर देकर आराम से निश्चिंत होकर बैठ जाती है। पीपीपी का मतलब होता है कि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप। यानी कि अस्पताल जैसी जायदाद तो है पब्लिक की और उसमें पार्टनर हो जायेगा कोई चिकित्सा व्यापारी। जो चिकित्सा व्यापारी एसियन, मैट्रो, अथवा एस्कॉर्ट-फोर्टिस जैसे बड़ी पूँजी  वाले धन्धे शुरू नहीं कर सकते वे बीके जैसे अस्पतालों को किराये पर लेकर पीपीपी के नाम पर अपना धन्धा शुरू करते हैं। सरकार इनके लिये रेट चाहे जो मर्जी तय कर दे लेकिन ये लोग दांये-बांये से घुमा-फिराकर मरीजों को अच्छे से काट लेते हैं। काटें भी क्यों नहीं, जब सरकार अपने हिस्से की पेमेंट आठ-आठ दस-दस महीने तक अदा न करे तो ये लोग मरीजों से ही तो वसूलेंगे।

एनएच तीन स्थित मेडिकल कॉलेज अस्पताल के मुख्यालय में बैठे कुछ मूर्ख अफसरों ने भी आईसीयू तथा डायलेसिस को इसी तरह पीपीपी मोड़ में चलवाया था। कोई भी चिकित्सा व्यापारी अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के लिये इलाज प्रक्रिया के मानकों से समझौता करेगा ही करेगा। ऐसे में कम से कम स्टाफ व सस्ते से सस्ता सामान इस्तेमाल करेगा। लेकिन मेडिकल कॉलेज प्रशासन की कड़ी निगरानी के चलते ठेकेदार वह सब कुछ नहीं कर सकता था जो वह करना चाहता था। परिणामस्वरूप दोनों ठेकेदार हाथ खड़े कर गये। लेकिन बीके अस्पताल में ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। यहां पर ठेकेदार को खुला खेलने की पूरी छुट रहेगी। इसी छुट के चलते ह्दय रोग व डायलेसिस के अनेकों मरीज यहां पर रोते-बिलखते देखे जा सकते हैं।

गतांक में ‘मज़दूर मोर्चा’ ने प्रकाशित किया था कि किस प्रकार से दलालों का जाल बिछा हुआ है। अस्पताल में आने वाले लगभग हर मरीज को यहां से रेफर करने का धंधा किया जाता है। साधारण से साधारण केस भी यहां दाखिल करने की बजाय दलालों के माध्यम से विभिन्न निजी अस्पतालों को भेज दिये जाते हैं। वैसे भी 200 बेड के इस अस्पताल में से जब कुछ वार्ड उक्त चिकित्सा व्यापारियों को किराये पर दे दिये जायेंगे तो अस्पताल की अपनी बेड संख्या का घटना तो स्वाभाविक ही है। आम मरीजों के लिये रक्त जांच, अल्ट्रासाऊंड व एक्सरे जैसी मामूली सुविधायें तक तो यहां उपलब्ध है नहीं और बाते करते हैं सुपर स्पेशलिटी सेवाओं की।

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Mazdoor Morcha
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