ईएसआई अस्पताल सेक्टर-8 में मेजर सर्जरी का इंतजाम नहीं…
विवेक कुमार
फरीदाबाद (ममो): सरकार ने आयुर्वेदिक चिकित्सकों को विभिन्न प्रकार की सर्जरी करने की इजाजत तो दे दी है पर वो सर्जरी होगी कहाँ और करेगा कौन इसके हाल जानते हैं फरीदाबाद सेक्टर-8 स्थित ईएसआई अस्पताल के हाल से।
सेक्टर-8 फरीदाबाद ईएसआई अस्पताल में गरीब मजदूर इलाज करवाने आते हैं पर अस्पताल का जो आलम है उसे देख कर लगता है कि यहाँ आने वाला हर व्यक्ति ठीक हो न हो, बीमार हो कर जरूर वापस जाएगा। अस्पताल परिसर में दाखिल होने पर जान पड़ता है कि किसी ब्रिटिश काल के खँडहर में आ गए हों। टूटी सडक़ें और गड्ढों में जमे पानी में पक्की सडक़ खोजना एक मुश्किल काम है, अस्पताल की इमारत से झड़ता प्लास्टर और सफेदी अस्पताल को पुरातन काल का बताता है।
अस्पताल में आयुष विभाग के बारे में पता करने पर ज्ञात हुआ कि यहाँ आयुर्वेद के नाम पर न तो कोई चिकित्सक है न ही कोई आयुर्वेदिक चिकित्सक की पोस्ट क्रिएट की गई है। अस्पताल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पहले ईएसआई तीन नंबर में आयुर्वेदिक चिकित्सक की पोस्ट थी। उस अस्पताल को कारपोरेशन के तहत जाने के बाद लगभग कई पोस्ट ईएसआई-8 में ट्रांसफर की गईं पर आयुर्वेद की न तो पोस्ट यहाँ ट्रांसफर हुई, न ही बनी, न ही कोई चिकित्सक ही आज तक यहाँ भेजा गया।
क्योंकि इस अस्पताल में अधिकतर गरीब ही इलाज कराने आते हैं तो बेहतर हो यदि यहाँ आयुष की एक पोस्ट तो क्रिएट की जाती जो कि अब तक नहीं है।
24 साल की ममता को अपनी माँ का सिटी स्कैन करवाना है और ईएसआई तीन नम्बर बंद होने के बाद सेक्टर-8 ईएसआई ले आई। यहाँ सिटी स्कैन की सुविधा ही नहीं है तो ममता चाहती हैं, अस्पताल उनकी माँ को किसी निजी अस्पताल में रैफर कर दे। मात्र रेफर करवाने के लिए तीन दिन बूढी माँ को लेकर अस्पताल के चक्कर काटने पड़ं।
अस्पताल में कमरा नंबर 141 की तरफ जाते समय दायें हाथ पर एक शौचालय के हाल चांदनी चौक के बल्लीमारान में सड़ रहे किसी भी शौचालय से बदतर हैं। टूटा फर्श चारों ओर गन्दगी का अम्बार और शाफ्ट में जाती ड्रेनेज पाइपों से टपकता गंदा पानी और गुप अँधेरा इतना भयानक है कि शायद ही कोई इसमें दाखिल होता हो।
इतनी अव्यवस्थाओं का कारण सबके लिए अलग-अलग है पर असल समस्या एक ही है और वो है सरकार का नजरिया। मरीजों को लगता है क्योंकि डाक्टर को आठ बजे आना था और अब तक अपने कमरे में नहीं है तो यही है असली दोषी। डाक्टर का इंतजार करते मरीज उत्सुकतावश कमरे के दरवाजे पर मधुमक्खी सा चिपकने लगते हैं क्योंकि उन्हें डर है कोई और कहीं दूसरे रास्ते से भीतर न घुस जाए, वे कई घंटों से इंतजार में हैं तो उनका नंबर पहले आना चाहिए। क्योंकि चिकित्सक को ओपीडी भी देखनी है तो वह देर से ही आ सकेगा और इस बीच मरीजों की भीड़ बढ़ती जाएगी जिसे संभाल पाना मात्र एक गार्ड के वश का नहीं हो सकता। ऐसे में जब मरीज एक-दूसरे पर लदेंगे तो गार्ड व अस्पताल प्रशासन जो पहले ही कई अन्य समस्याओं से घिरे हैं को सारी समस्या इन गरीब मजदूरों में ही दिखेगी। पर जैसा के हमने पहले लिखा असल समस्या सरकार की सोच और कार्यशैली में है। अस्पताल की एमएस डाक्टर अंजली ने बताया कि उनके पास चिकित्सकों की कमी है और मरीजों की बहुतायत, सो काम करने में मशक्कत होती है। गाईनी, ओर्थो व एक अन्य विभाग के चिकित्सक कोरोना से संक्रमित हैं ऐसे में मरीजों को अटेंड कर पाना बहुत मुश्किल हो रहा है।
डा. अंजली से पहले एमएस की सीट पर डॉ. बंसल थे जो कि अस्पताल में एक मात्र सर्जन थे। पूरे कोरोना काल में वे एमएस के चार्जे में भी रहे और बतौर सर्जन भी अपनी ड्यूटी करते रहे। अब डॉ. अंजलि के चार्ज लेने के बाद डॉ. बंसल सर्जरी के लिए उपलब्ध हुए हैं अन्यथा अस्पताल में सर्जरी हो पाना ही एक अजूबा बन गया है।
डॉ. अंजलि से रेबीज के टीके के बाबत बात करने पर ज्ञात हुआ कि फिलहाल अस्पताल में रेबीज का टीका नहीं है पर उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही आ जाएगा। इससे पहले भी मजदूर मोर्चा की कई विजिट में अस्पताल में कभी भी रेबीज का टीका नहीं मिला जबकि अस्पताल में आवारा कुत्तों ने खेल का मैदान बनाया हुआ है। रेबीज के टीके का ऐसा हाल सिर्फ इसी अस्पताल में नहीं है बल्कि फरीदाबाद शहर के स्मार्ट अस्पताल बीके में भी दो दो साल से टीके की अनुपलब्धता बनी हुई है।
मजदूरों के पैसे से बना मजदूरों का एनआईटी तीन स्थित ईएसआई अस्पताल कोरोना के नाम पर छीन लिया गया। अब वहां के मरीजों को ईएसआई सेक्टर-8 भेज दिया गया। यहाँ चिकित्सकों की संख्या को नहीं बढ़ाने के साथ-साथ न तो आधारभूत संरचना की व्यवस्था की गई न ही दवा की, पर बड़े से बैनर और फ्लेक्स लगवा दिए गए जिनमे डिजाईनजर गमछे पहन कर मोदी-खट्टर के नाम पर कोरोना से बचाव का उपदेश लिखवा दिया गया है। शायद इन्ही से जनता का इलाज हो जाए पर सच ये है कि ये मार्केटिंग और बैनर,पोस्टर और मार्केटिंग की संस्कृति ही इस देश को हर रूप में बीमार कर रही है और लोग एक-दूसरे को दोषी समझ गालियाँ देकर अपना नागरिक कर्तव्य पूरा कर रहे हैं।
वैसे बताते चलें कि जिन चिकित्सकों पर फूल और थाली बजाने का ढोंग मोदी ने किया अब आये दिन उन्हें अपने हक मांगने के लिए दसवीं, बारहवी पास किये पुलिस के सिपाहियों से डंडे पड़वाये जा रहे हैं।