हिरासत में अमित की मौत का मामला : आज तक एक भी पुलिसकर्मी को नहीं हुई है जेल

हिरासत में अमित की मौत का मामला : आज तक एक भी पुलिसकर्मी को नहीं हुई है जेल
July 16 04:13 2024

ऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) चाकूबाजी के मामले मेें क्राइम ब्रांच द्वारा उठाए गए युवक अमित की हिरासत में मौत के मामले मेें दबाव बढ़ता देख पुलिस ने केस तो दर्ज कर लिया है लेकिन परिजनों को इंसाफ पाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। ऐसा इसलिए कि हिरासत में हुई मौत के अधिकतर मामलों में दोषी पुलिसकर्मी को आज तक सजा नहीं हो पाई है। अमित और उसके दोस्त हरीश के बीच पांच जुलाई को लेनदेन के विवाद में चाकूबाजी हुई थी इसमें दोनों घायल हुए थे। हरीश की निजी अस्पताल में मौत हो गई थी जबकि अमित को परिजनों ने बीके अस्पताल में भर्ती कराया था। हरीश के परिजनों ने अमित के खिलाफ केस दर्ज कराया था। भाई सुमित का दावा है कि वह केस दर्ज कराने के लिए अमित
को लेकर एनआईटी दो की चौकी गया था।

वहां तहरीर लेने की जगह पुलिस ने दोनों को बैठा लिया, थोड़ी देर में कुछ लोग आए जिन्हें सेक्टर 65 क्राइम ब्रांच बता कर पुलिस ने दोनों को उनके हवाले कर दिया। सुमित का आरोप है कि क्राइम ब्रांच वाले उन्हें जीप में ही मारते- पीटते हुए ले गए। सेक्टर 65 क्राइम ब्रांच में उन दोनों के कपड़े उतरवा कर दोनों की पिटाई की। आरोप है कि पुलिस ने अमित के पेट में चाकू के जख्म वाली जगह पर डंडा घुसेड़ कर उसे बुरी तरह टॉर्चर किया, थोड़ी देर बाद सुमित को गालियां और धमकियां देकर भगा दिया गया था। पिता ग्यासी का आरोप है कि क्राइम ब्रांच वाले उन्हें भी शुक्रवार शाम पूछताछ के लिए उठा ले गए थे। सोमवार सुबह अमित की मौत हो गई। मौत के बाद बचाव की मुद्रा में आई क्राइम ब्रांच ने बहाना दिया कि हिरासत में कंबल का टुकड़ा काट कर अमित ने फंदा बनाया और उससे फांसी लगाकर जान दे दी।

कानून को जेब में रख कर घूमने वाली क्राइम ब्रांच किसी को भी हिरासत मेें लेने से पहले सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस की धज्जियां उड़ाती है। डीके बसु केस गाइड लाइंस के अनुसार किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेने वाले पुलिस अधिकारी बावर्दी होने चाहिए और उनकी नेम प्लेट पर स्पष्ट नाम अंकित होना चाहिए। हिरासत में लिए जाने वाले व्यक्ति को गिरफ्तारी का कारण बताना अनिवार्य है। व्यक्ति अपनी गिरफ्तारी की सूचना अपने परिजन को देने का अधिकार रखता है, वह अपने वकील से भी इस संबंध में बात कर सकता है। हिरासत में लिए गए व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर सक्षम न्यायालय में पेश करना होता है। क्राइम ब्रांच ने इनमें से कोई भी नियम नहीं माने न ही कभी मानती है, कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करके पुलिस हर रोज कोर्ट की अवमानना करती है और मजे की बात है कि कोर्ट भी कभी अपनी इस अवमानना का संज्ञान नहीं लेती। परिजनों का आरोप है कि क्राइम ब्रांच अमित को 5 जुलाई को उठा ले गई थी, मृत्यु होने तक उसे न्यायालय में पेश नहीं किया गया।

इन आरोपों को दरकिनार भी कर दिया जाए तो अमित के आत्महत्या करने की कहानी पर बहुत से सवालिया निशान उठ रहे हैं। सवाल है कि अमित ने कंबल को कैसे काटा और कैसे फंदा बनाया, और हवालात में जो बाकी लोग मौजूद थे वो देखते रहे? अमित की हिरासत में मौत के मामले को पुलिस आयुक्त द्वारा गंभीरता से नहीं लिए जाने से समझा जा सकता है कि दोषी पुलिसकर्मियों को बचाने की तैयारियां चल रही हैं। पहले तो पुलिस केस ही नहीं दर्ज कर रही थी, जब परिजनों ने शव लेने से ही इनकार कर दिया तो मजबूरी में अज्ञात पुलिसकर्मियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। सर्वविदित है कि हर थाने, चौकी में रोजनामचा होता है जिसमें हर पुलिस वाले के आने जाने के अतिरिक्त पकड़ कर लाए गए हर मुल्जिम की इंट्री की जाती है। इसके बावजूद सीपी साहब अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा कर अपनी बदनीयती का सुुबूत खुद ही दे रहे हैं। मामला ठंडा होने पर ये केस भी उसी तरह दबा दिया जाएगा जिस तरह हिरासत में मौत के अन्य मामले।

पुलिस के दबाव में नौकरी कर रहे डॉक्टरों ने भी पोस्टमार्टम रिपोर्ट को गुप्त रखा हुआ है। यदि गला घुुंट कर या झटकने से मौत हुई होती तो डॉक्टर को यह तथ्य उजागर करने में क्या समस्या थी। इसी से समझा जा सकता है कि पुलिस की कहानी फर्जी है और जिन चोटों से उसकी मौत हुई है उन्हें छिपाया जा रहा है।

सुधी पाठकों को मालूम होगा कि 23 जुलाई 2023 को राजस्थान निवासी 25 वर्षीय सैकुल की सेक्टर 19 स्थित साइबर थाने में हिरासत में मौत हो गई थी। साइबर थाना इंचार्ज बसंत और उनकी टीम सैकुल को राजस्थान के अलवर से बिना कोई सूचना दिए उठा लाई थी। परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने सैकुल को छोडऩे के लिए उससे 1 लाख 65 हजार रुपये भी लिए थे। बावजूद इसके सैकुल को हिरासत में पीट पीट कर मार डाला गया। इस मामले में भी परिजनों के हंगामा करने पर पुलिस ने एफआईआर तो दर्ज की लेकिन आज तक आरोपी पुलिसकर्मियों की पहचान तक नहीं हुई है, तत्कालीन साइबर थाना प्रभारी इंस्पेक्टर बसंत को कुछ दिन के लिए लाइन भेज दिया उसके बाद फिर से थाने का इंचार्ज बना दिया गया। इंस्पेक्टर बसंत की हिरासत में सैकुल की यह पहली मौत नहीं है उससे पहले भी जून 2021 में नूंह के जुनैद की मौत भी बसंत की ही हिरासत में हुई थी, उसमें भी बसंत और उनके मातहतों पर हत्या का केस दर्ज है लेकिन जांच अटकी हुई है।

इसी साइबर अपराध शाखा में 14-15 जुलाई 2019 की रात संजय रॉय की हिरासत मेें पिटाई के कारण मौत हो गई थी। पुलिस उसे 29 लाख रुपये के साइबर फ्रॉड केस में पकड़ा था। इस मामले में भी न्यायिक जांच कराई गई लेकिन उनकी मौत के लिए आज तक किसी भी पुलिसकर्मी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सका है। दरअसल, जांच भी उन्हीं पुलिसकर्मियों को करनी होती है जो अपराध कुबूल करवाने के नाम पर किसी को भी अवैध रूप से हिरासत में रख कर थर्ड डिग्री इस्तेेमाल करने के आदी होते हैं।

ऐसे में उन्हें अपने साथी की करतूत बिलकुल सही और न्यायसंगत नजर आती है, ऐसी मानसिकता वाले जांच अधिकारी हत्या के दोषी सहकर्मी को सजा दिलाने के बजाय जांच की दिशा उसे बचाने की ओर ही ले जाते हैं, अमित के केस में भी यही होने वाला है। जब पुलिस आयुक्त ही अपने कार्यालय के ठीक सामने सडक़ हादसे में हुई महिला की मौत के मामले में अपने एस्कॉर्ट की स्कॉर्पियो के चालक को बचा रहे हैं तो वो हिरासत में मौत के केस में भी दोषी पुलिसकर्मियों को बचाने की भूमिका में नजर आएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

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Mazdoor Morcha
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