फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) मुग़ल और ब्रिटिश काल से हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल रहे मेवात में नफरत की दुकान खोलने की संघ और सत्ता समर्थित सांप्रदायिक शक्तियों को वहां की सांझी संस्कृति ने नाकाम कर दिया। धार्मिक यात्रा के नाम पर हजारों की संख्या में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने पहुंचे विश्व हिंदू परिषद, गोरक्षक, बजरंग दल आदि गुंडों को स्थानीय हिंदुओं ने नकार दिया। मुसलमान भी अपने हिंदू भाइयों के साथ पहले की तरह ही रह रहे हैं। भाजपा- संघ और उसके चट्टे-बट्टे यानी विहिप, बजरंगदल आदि कथित दल, सेनाओं के पदाधिकारी इस बात से परेशान हैं कि मेवात में रहने वाले हिंदू अभी तक कोई कदम क्यों नहीं उठा रहे, न ही मुसलमान उनके खिलाफ कुछ कर रहे हैं।
पीढिय़ों से साथ रहते आ रहे मेवात के हिंदू-मुसलमानों की अपनी ही सांस्कृतिक पहचान है, यहां के हसन खां मेवाती ने राणा सांगा की ओर से बाबर के खिलाफ युद्ध किया तो 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में राव तुलाराम के झंडे तले हजारों मेव मुसलमान अंग्रेजी सेना से टकराए इनमें साढ़े तीन सौ शहीद हुए। सर छोटू राम और चौधरी यासीन खान ने मिलकर अविभाजित पंजाब के किसानों को अनावश्यक कर से आजादी दिलवाई। पुरखों की यह परंपरा अभी भी नूंह-मेवात में न सिर्फ जिंदा है बल्कि फल-फूल रही है।
सत्ता के लिए देश को सांप्रदायिकता की आग में झोंक कर चुनावी रोटिंया सेकने वाली भाजपा 2024 में केंंद्र और प्रदेश में होने वाले चुनाव में फिर से सांप्रदायिक कार्ड खेलने की तैयारी कर रही है। मणिपुर में दंगों के बाद वही प्रयोग मेवात में दोहराया गया। संघियों ने इसकी पृष्ठभूमि तीन साल पहले ब्रज मंडल यात्रा शुरू करके की थी। तब संघियों को लगा था कि मुस्लिम बहुल मेवात में इस नई यात्रा का विरोध किया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मेवाती मुसलमानों ने यात्रा करने वाले हिंदू भाइयों का स्वागत किया, रास्ते में उनके लिए चाय-पानी और लंगर की सेवा की।
मज़बूत एकता तोडऩे के लिए फिर मोनू मानेसर और बिट्टू बजरंगी जैसे सांप्रदायिक गुंडों को आगे किया गया। दोनों ने भडक़ाऊ बयान जारी कर माहौल बिगाडऩे का प्रयास किया। इन दंगाइयों के बार बार आह्वान के बावजूद मेवात के हिंदू आगे नहीं आए। करनाल, जींद, नरवाना, हिसार, भिवानी, हिसार, टोहाना, फरीदाबाद आदि जिलों से बजरंग दल, विहिप के हथियार बंद कार्यकर्ता वहां दंगे भडक़ाने के लिए पहुंचे थे। वहां बुरी तरह पीट कर खदेड़े गए तो अपने सत्ताधारी आक़ाओं की शरण लेकर अब मुसलमानों को सबक़ सिखाने का दबाव बना रहे हैं।
दंगाइयों ने केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गूजर के घर पर प्रदर्शन कर मुसलमानों के खिलाफ योगी की तरह कार्रवाई करने की मांग की। बजरंगियों ने विक्टिम कार्ड खेलते हुए मंदिर में महिला श्रद्धालुओं से छेडख़ानी, शारीरिक शोषण तक के आरोप लगाते हुए इलाके का माहौल बिगाडऩे में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन बजरंगी गुुंडों के इस झूठ का खंडन खुद पुलिस अधिकारी ममता सिंह और मंदिर के पुजारी ने किया। ममता सिंह ने बताया कि न तो किसी महिला या बच्ची से अभद्रता हुई और न ही कोई गलत हरकत की गई। मंदिर के पुजारी ने भी बताया था कि किसी ने मंदिर पर हमला नहीं किया। सत्ता ने भी बजरंगियों का पूरी तरह उनका साथ दिया, धारा 144 लागू होने के बावजूद गुरुग्राम, फरीदाबाद, पलवल आदि जिलों में बजरंगी दंगाइयों ने पुलिस के संरक्षण में मुसलमानों की दुकान, धार्मिक स्थलों में तोडफ़ोड़ की। गुरुग्राम में हाफिज़ साद की गोली मार कर हत्या कर दी गई। यूपी की तरह मेवात में भी बुलडोजर चलाया गया।
भला हो पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का कि अन्याय का स्वत: संज्ञान लेते हुए प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई और तुरंत तोडफ़ोड़ रोकने का आदेश दिया। 75 साल के इतिहास में पहली बार कोर्ट ने राज्य सरकार पर एथेनिक क्लींजि़ंग यानी जातीय सफाए की कार्रवाई करने जैसी सख्त टिप्पणी करते हुए सवाल उठाए।
बजरंगी दंगाइयों का समर्थन न तो वहां के जटवाड़ा ने किया न ही अहीरवाल ही आए। इन लोंगों का कहना था कि जब किसान आंदोलन कर रहे थे तब तो हम हिंदू नहीं थे तब हमें आतंकवादी, खालिस्तानी और देशद्रोही बताया गया था। महिला अस्मिता की बात करने वाले उस समय कहां थे जब जंतर मंतर पर धरना दे रही महिला पहलवानों के साथ अभ्रदता की जा रही थी। देश के लिए मेडल लाने वाले पहलवान उस समय हिंदू न होकर जाति से पहचाने जा रहे थे। ये मेवात है यहां हिंदू-मेव मुसलमान सदियों से मिल जुल कर रहते आ रहे हैं, बाहरी बजरंगी दंगाइयों को यहां आकर माहौल बिगाडऩे की इजाज़त नहीं मिलेगी।
राव इंद्रजीत जैसे कद्दावर नेता ने मेवात की संस्कृति पर हमले को गलत बताते हुए कड़े सवाल खड़े किए थे। उनका सवाल था कि धार्मिक यात्रा में इतने असलहे कहां से आए? जिस तरह नूंह में दंगाइयों को मेवात की हिंदू मुस्लिम एकता के आगे मुंह की खानी पड़ी, जैसे जैसे जनता जागरुक होगी हर जगह इनकी सच्चाई खुलेगी।