फरीदाबाद (म.मो.) शिक्षा के नाम पर मोटी लूट कमाई करने में जुटे भिवानी स्थित हरियाणा स्कूली शिक्षा बोर्ड ने राज्य भर के सीबीएससी से सम्बन्धित स्कूलों को लूटने की एक बड़ी योजना बनाई थी। योजना के अनुसार उन स्कूलों में पढऩे वाले पांचवीं तथा आठवीं के बच्चों की परीक्षा हरियाणा बोर्ड आयोजित करेगा। बड़ी गजब की योजना है। करना-धरना कुछ नहीं, केवल परीक्षा का आयोजन करेंगे। इससे पहले अपनी उन परीक्षाओं की दुर्गति को भी बोर्ड देख लेता, जिन्हें वह आयोजित करता आ रहा है, तो ज़्यादा बेहतर होता।
परीक्षा आयोजन का मतलब यह होता कि राज्य भर के तमाम सीबीएससी सम्बन्धित स्कूल बोर्ड के दरवाजे पर लाइन लगा कर खड़े हो जाते। बोर्ड प्रत्येक स्कूल को इस शिकंजे में फंसाने के एवज में आठ-दस-बारह हजार की वसूली करता। उसके बाद प्रत्येक छात्र से 200-400 रुपये बतौर दाखिला फीस तो वसूलता ही, परीक्षा परिणाम देने के नाम पर छात्रों के अभिभावकों एवं स्कूल वालों की जो कुत्ता-घसीटी कराता वह अलग से। ऐसा यह सब उन तमाम परीक्षाओं मेंं देखा जा रहा है, जिन्हें बोर्ड आयोजित करता आ रहा है। रोल-नम्बर लेने से लेकर परीक्षा परिणाम तक, परीक्षार्थियों की रेल बना देने में इस बोर्ड की पूरी महारत है।
दरअसल इस मामले की जड़ में ‘शिक्षा का अधिकार’ नामक कानून का पाखंड है। इस कानून के द्वारा भारत सरकार ने 14 वर्ष की आयु तक के हर बालक को शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार दिया है। शिक्षा का अधिकार तो दे दिया परन्तु शिक्षा देने की कोई व्यवस्था न तो कांग्रेसी सरकार ने करी और न ही बीते सात साल में भाजपाई करकार ने की। इसी कानून के तहत आठवीं तक पढऩे वाले किसी भी बच्चे को किसी भी परीक्षा में फेल नहीं किया जायेगा। परिणाम यह निकला कि आठवीं पास जो बच्चा नौवीं जमात में जाकर बैठा तो उसे कुछ भी आता जाता नहीं था। उसका स्तर दूसरी-तीसरी जमात के बालकों जैसा ही रहा।
इस स्थिति से निपटने के लिये सरकार ने एक नया पाखंड खड़ा कर दिया कि हर बच्चे को पांचवीं व आठवीं जमात की परीक्षा देनी होगी, जिसका आयोजन कोई बाहरी एजेंसी करेगी। इस फरमान से वाहियात और कोई बात हो नहीं सकती। बाहरी एजेंसी का क्या मतलब हुआ? परीक्षा तो परीक्षा होती है। जबसे स्कूल बने हैं, परीक्षाओं का एक व्यवस्थित सिलसिला चला आ रहा है। उस चलते हुए सिलसिले को तोडऩे मरोडऩे की क्या आवश्यकता पड़ी? इसी फरमान की आड़ में हरियाणा शिक्षा बोर्ड ने भी बतौर बाहरी एजेंसी, बड़ा शिकार मारने की योजना बनाई। योजना के तहत राज्य भर के तमाम सीबीएससी सम्बन्धित स्कूलों को सर्कुलर जारी कर दिया कि वे अपने छात्रों की परीक्षा उससे करायें।
इस फरमान के विरुद्ध सीबीएससी सम्बन्धित संगठन पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट पहुंच गया। राज्य सरकार व स्कूली शिक्षा बोर्ड को नोटिस जारी हो गये। कुछ तारीखें लगने के बाद 24 जनवरी को मुख्य न्यायाधीश की पीठ द्वारा सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार एवं स्कूली शिक्षा बोर्ड को अपनी मूर्खता का अहसास हो गया तो उन्होंने अपना फरमान वापस ले लिया। माननीय अदालत ने याचिका वापस लेने की अनुमति देते हुए स्कूलों के संगठन को, जरूरत पड़ने पर फिर से याचिका दायर करने की छूट देते हुए मामले का निस्तारण कर दिया।
मामले का निस्तारण तो हो गया लेकिन अदालत ने इस तरह का मामला खड़ा करने वालों को कोई सबक सिखाने की जरूरत नहीं समझी। यही करण है कि इस तरह के बेफिजूले मुकदमों के बोझ से न्यायपालिका दबी जा रही है।