हरियाणा शिक्षा बोर्ड की लूट कमाई के बाद 8वीं की बोर्ड परीक्षा इस वर्ष नहीं होगी

हरियाणा शिक्षा बोर्ड की लूट कमाई के बाद 8वीं की बोर्ड परीक्षा इस वर्ष नहीं होगी
March 02 04:25 2022

फरीदाबाद (म.मो.) खट्टर सरकार का लक्ष्य बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था करने का तो कभी रहा ही नहीं, लेकिन बच्चों की परीक्षा के नाम पर लूट की नई व्यवस्था बनाने का प्रयास जारी है। इसके तहत सरकार के अपने निकम्मे व ठगीमार स्कूल शिक्षा बोर्ड को आठवीं जमात के बच्चों की परीक्षा आयोजित करने का अधिकार दिया है। इस अधिकार के द्वारा यह बोर्ड उन तमाम स्कूलों के बच्चों की भी परीक्षा आयोजित करेगा जो उससे सम्बन्धित नहीं हैं या यों कहें कि जो सीबीएसई से सम्बन्धित है वे भी इस हरियाणा बोर्ड के शिकंजे में कसे जायेंगे।

विदित है कि तथाकथित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का पाखंड बिखेरने से पहले तमाम स्कूलों में, स्कूल प्रबंधन पहली जमात से लेकर नौवीं जमात तक के विद्यार्थियों की वार्षिक परीक्षा आयोजित करते थे। लेकिन नई शिक्षा नीति में, जनता को बेवकूफ बनाने व बच्चों को खुश करने के लिये कहा गया कि आठवीं जमात तक किसी को भी फेल न किया जाय। जब किसी को फेल ही नहीं करना और सबको पास ही करना है तो परीक्षा की जरूरत ही कहां रह गई? लेकिन शीघ्र ही सरकारी नीति नियोजकों को अपनी मूर्खता का अहसास तब हो गया जब नौवीं जमात में आने वाले विद्याथियों का शैक्षणिक ज्ञान निल बटा सन्नाटा पाया गया। इसकी आड़ में खट्टर सरकार ने पांचवीं व आठवीं जमात की परीक्षा अपने बोर्ड के द्वारा आयोजित करा कर जनता से एक झटके में हजारों करोड़ लूटने का नायाब तरीका खोज लिया। ज्यादा दबाव पड़ता देख कर इस फंदे से पांचवीं जमात को तो निकाल दिया, केवल आठवीं जमात को ही रखा।

इस षडयंत्र के तहत हरियाणा बोर्ड के 14000 व सीबीएसई के 1053 स्कूलों से 5000 रुपये प्रति स्कूल की वसूली कर ली गई है। शेष स्कूलों को 28 फरवरी तक यह लूट राशि जमा कराकर हरियाणा बोर्ड में अपना रजिस्ट्रेशन कराने का फरमान जारी किया गया है। इसके अलावा तीन लाख बच्चों से 550 रुपये परीक्षा शुल्क के नाम पर वसूले जा चुके हैं।

सीबीएसई सम्बन्धित निजी स्कूलों के संगठन द्वारा कड़ा प्रतिरोध करने व संघर्ष पर उतरने की धमकी के चलते खट्टर ने एक साल के लिये अपना यह खेल स्थगित करने का आदेश दिया है। इसके अनुसार तमाम बच्चों को, वसूली गई फीस बोर्ड द्वारा वापस लौटाई जायेगी। लेकिन बोर्ड ने इस रकम को लौटाने से बचने के लिये कई तरह की शर्तें लगा दी हैं। समझा जाता है कि ऐसे में बहुत कम बच्चों की ही फीस उनको वापस मिल पायेगी। इसके अलावा स्कूलों से वसूली गई पंजीकरण फीस को तो लौटाने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। इतना ही नहीं 28 फरवरी तक यह पंजीकरण फीस जमा न कराने वाले स्कूलों की मान्यता रद्द करने की भी धमकी दी गई है। इसे सरकारी फिरौती न कहा जाय तो क्या कहा जाय?
इससे निपटने का एक मात्र उपाय केवल और केवल संगठित होकर सरकार के विरुद्ध संघर्ष करने का है। जो सरकार खुद शिक्षा व्यवस्था चलाने में पूरी तरह असमर्थ है वह केवल ‘मान्यता’ की दुकानदारी के बल पर शिक्षण संस्थानों का दोहन करना चाहती है। यदि तमाम शिक्षण संस्थान एकजुट होकर इनकी मान्यता का गीदड़-फर्रा सरकार के मुंह पर दे मारें तो वह क्या कर लेगी?

लाखों विद्यार्थी और हजारों शिक्षक व अन्य सटाफ को यह सरकार कैसे सम्भाल पायेगी? तमाम संस्थान न सही आधे भी यदि मजबूती से सरकार के सामने डट कर खड़े हो जायें तो इसे न केवल झुकने बल्कि लमलेट होने में जरा भी देर न लगेगी।

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Mazdoor Morcha
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