फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) सरकारी नौकरियां खत्म करने और स्थायी भर्तियों की जगह ठेका प्रथा शुरू करने वाली मोदी-सैनी की डबल इंजन सरकारें विधानसभा चुनाव से पहले युवाओं को रिझाने के लिए उच्च शिक्षित युवाओं का डेटा तैयार करने का पाखंड कर रही हैं। सरकार ने प्रत्येक जिले में सरकारी और गैर सरकारी कॉलेजों के प्रबंधन को डेटा तैयार करने का फरमान सुनाया है। फरीदाबाद में भी जिले के दस कॉलेजों की टीमें घर-घर जाकर 25 वर्ष की उम्र वाले तीस हजार स्नातक-परास्नातक छात्रों से बातचीत कर उनके रोजगार की स्थिति का डेटा तैयार करेंगी।
राजकीय महिला कॉलेज की प्राचार्या डॉ. सुनिधि के अनुसार डेटा तैयार करने का उद्देश्य यह आकलन करना है कि उच्च शिक्षा की पढ़ाई पूर्ण करने वाले युवाओं की प्रदेश में रोजगार की क्या स्थिति है? टीमें उच्च शिक्षा प्राप्त छात्रों से मिल कर यह जानने का प्रयास कर रही हैं कि पढ़ाई पूरी होने के बाद वो क्या कर रहे हैं। 25 वर्ष की आयु वाले कितने छात्र सरकारी नौकरी में हैं और कितने निजी संस्थानों में नौकरी कर रहे हैं, कितने छात्र स्वरोजगार में लगे हैं और बेरोजगार छात्रों की संख्या कितनी है?
सत्ता में आने के बाद से मोदी-खट्टर सरकारों ने जिस तरह सरकारी विभागों मेंं रिक्त होने वाले पदों पर भर्ती नहीं की, रेलवे जैसी बड़ी संस्थान में साढ़े ग्यारह हजार पद समाप्त कर दिए, सेना में भी स्थायी भर्ती के अवसर समाप्त कर चार वर्ष की नौकरी वाली अग्निवीर योजना शुरू की, उससे पूरे देश में बेरोजगार युवाओं की फौज तैयार हो गई। संघी मानसिकता से संचालित मोदी-खट्टर ने इन युवाओं को क्षद्म राष्ट्रभक्ति और धार्मिकता की अफीम चटाकर अंधभक्त बना दिया। मोदी की पहली सरकार में रोजगार नहीं मिला तो इन अंधभक्तों को लगा कि सत्तर साल की व्यवस्था सुधारने में सरकार को समय लगेगा, इसलिए उन्हें दोबारा भी पूर्ण बहुमत दिला दिया।
दूसरी बार मोदी ने मुनाफे वाली सरकारी संस्थाओं को अडाणी-अंबानी के हवाले करना शुरू कर दिया जिससे इन संस्थानों में भी रोजगार के अवसर धनपशु पूंजीपतियों के रहमोकरम पर हो गए। खट्टर ने सरकारी पदों को खत्म कर हरियाणा कौशल रोजगार निगम एचकेआरएन बना डाला। जिस सरकारी पद का वेतन एक लाख रुपये होता था एचकेआरएन के तहत ठेके पर उसी पद के लिए बीस से पच्चीस हजार रुपये निर्धारित कर दिया गया, पेंशन आदि भी खत्म कर दी गई। हरियाणा की तरह ही यह व्यवस्था भाजपा शासित लगभग सभी राज्यों में कर युवाओं को ठेका नौकरी की ओर धकेल दिया गया। रोजगार छिनने पर इन युवाओं के दिमाग से अंधभक्ति का नशा उतरा तो 2024 के लोकसभा चुनाव में चार सौ पार का नारा लगाने वाले मोदी को अल्पमत में पहुंचा दिया।
बुरे प्रदर्शन की समीक्षा में सामने आया कि बेरोगारी से त्रस्त युवाओं ने मोदी के क्षद्म राष्ट्रवाद, कट्टर धार्मिकता को बुरी तरह नकार दिया जिस कारण उन्हें अयोध्या में भी हार का सामना करना पड़ा। हरियाणा में भी भाजपा दस से घट कर पांच सीटों पर आ गई, जो बची पांच सीटें थीं उन पर भी किसी भी भाजपाई उम्मीदवारों को जीत मुश्किल से ही हासिल हो सकी है। विधानसभा चुनाव में तीन महीने से भी कम का समय बचा है। किसी भी कीमत पर सत्ता में बने रहने की लालसा में मोदी-सैनी को डर है कि हरियाणा में भी बेरोजगार युवक उन्हें सत्ता से खारिज कर देगा। ऐसे में चुनाव से पहले सरकार युवाओं को अपने पाले में करने के लिए डेटा तैयार करने का पाखंड कर लॉलीपॉप दे रही है।
प्रदेश में कितने उच्च शिक्षा संस्थान हैं उनमें कितनी सीटें हैं प्रत्येक वर्ष इन संस्थानों से कितने युवा उच्च शिक्षा प्राप्त कर निकले ये आंकड़े तो सरकार के पास पहले से ही उपलब्ध हैं। सरकारी नौकरी पाने की बात है तो जब सरकार वेकेंसी ही घोषित नहीं कर रही तो युवाओं को सरकारी नौकरी कैसे मिलेगी?
निजी संस्थाएं जितनी नौकरी देती हैं उसका डेटा भी सरकार के पास होता है। रही बात इन युवाओं को रोजगार देने की तो सरकार उसके लिए खाली पड़े पदों की वैकेंसी निकाले। जितने फार्म भरे जाएंगे उससे अंदाज हो जाएगा कि एक पद के लिए कितने बेरोजगार युवा लाइन में हैं। जो थोड़ी बहुत रिक्तियां निकाली भी जाती हैं तो पेपर लीक माफिया करोड़ों रुपयों की एवज में अयोग्य अभ्यर्थियों को पास करा के योग्य अभ्यर्थियों का भविष्य बर्बाद कर रहे हैं, ये सब मोदी की राष्ट्रभक्त भ्रष्टाचार मुक्त सरकार में हो रहा है।
सच्चाई ये है कि दस साल में सरकार ने शिक्षा व्यवस्था का भी भट्टा बैठा रखा है, विज्ञान की कक्षाओं से आधुनिक आवर्त सारणी पीरियॉडिक टेबल हटाई जाती है तो कहीं मध्यकालीन इतिहास से मुगलों का चैप्टर ही हटाया जा रहा है। लचर शिक्षा व्यवस्था के कारण अधिकतर उच्च शिक्षण संस्थान बेरोजगार युवाओं के उत्पादन की फैक्टरियां बन कर रह गए हैं, सैनी को भी मालूम है कि न तो उसे कोई रोजगार देना है न ही वह युवाओं के लिए कुछ बहुत बड़ा करने वाले हैं। यह योजना तो चुनाव से पहले सिर्फ युवाओं में ये उम्मीद जगाने के लिए लाई गई है कि अगली सरकार में उन्हें नौकरी मिल सकती है। अंधभक्ति की अफीम के नशे से दस साल के बाद बाहर आया युवा सरकार के झूठ और मक्कारी को भली भांति समझ चुका है, इसलिए मुमकिन नहीं है कि वो सरकार के इस पाखंड के जाल में दोबारा फंस जाए।