खट्टर की कोरोना दृष्टि फिर पड़ी मज़दूरों के अस्पताल पर फरीदाबाद (म.मो.) कोरोना की तीसरी लहर के प्रकट होते ही हरियाणा सरकार की ओर से जि़ला उपायुक्त जितेन्द्र यादव ने एनएच तीन स्थित मज़दूरों के अस्पताल यानी ईएसआईसी के मेडिकल कॉलेज अस्पताल को इसी सप्ताह फरमान जारी कर दिया कि कोरोना के (सम्भावित) मरीजों को दाखिल करके उनका इलाज किया जाय। पत्र में इस अस्पताल को डैडीकेटेड कोरोना अस्पताल होने का हवाला दिया गया है।
विदित है कि बीती दोनों कोरोना लहरों के लिये इस अस्पताल को डैडीकेटेड कोरोना अस्पताल घोषित कर दिया गया था। इसका अर्थ यह होता है कि जिन मज़दूरों के वेतन से, साढे चार प्रतिशत काट कर यह अस्पताल बनाया गया व चलाया जा रहा है उनको तो बाहर खदेड़ दिया जाय व जि़ला प्रशासन द्वारा भेजे जाने वाले तमाम कोविड मरीजों को भर्ती कर उनका इलाज किया जाय। बीती दोनों लहरों के दौरान तमाम बीमा धारक मज़दूरों के इस अस्पताल में प्रवेश पर पाबंंदी लगा दी गई थी। संदर्भवश बता दें कि इस अस्पताल में प्रति दिन करीब 4000 मरीज़ ओपीडी में आते हैं और 500-600 विभिन्न रोगी भर्ती रहते हैं। कोरोना डैडीकेटेड अस्पताल घोषित होने के बाद उन सब मरीजों को भटकने व मरने के लिये छोड़ दिया जाता है जिन्होंने इस अस्पताल को चलाने का पैसा दे रखा है। कोरोना के भी केवल उन मरीजों को भर्ती किया जाता है जिनकी सिफारिश सिविल सर्जन व जि़ला प्रशासन करता है।
समझा जाता है कि उपायुक्त के उक्त पत्र के जवाब में मेडिकल कॉलेज अस्पताल प्रशासन ने लिख भेजा है कि यह अस्पताल न तो बीके सिविल अस्पताल की भांति सरकारी है और न ही प्राईवेट है। यह अस्पताल मज़दूरों के पैसे से बनाया व चलाया जा रहा है। जवाब में सलाह दी गई है कि हल्के व साधारण कोरोना मरीजों का इलाज बीके अस्पताल में ही कराया जाय। साथ ही गांव मोठुका स्थित अटल बिहारी वाजपेयी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भी मरीज़ों को भेजने का सुझाव दिया गया है।
दूसरी लहर के दौरान जब सरकार द्वारा मज़दूरों के इस अस्पताल को कब्जा लिया गया था तो मज़दूर संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया था। ‘मज़दूर मोर्चा’ द्वारा सरकार की उस कार्यवाई के विरुद्ध तीखी टिप्पणियां करने के जवाब में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने तुरन्त प्रतिक्रिया देते हुए अटल बिहारी अस्पताल को दो दिन में चालू करने की घोषणा की थी। घोषणावीर खट्टर तीन दिन बाद अस्पताल का दौरा करने भी आये थे। इस दौरे के दौरान उन्होंने इस अस्पताल को फौज के द्वारा चलाने की बात भी कही थी।
करीब दो हफ्ते बाद फौज के कुछ अफसर वहां पहुंच गये थे। उस वक्त हवन आदि का पाखंड तंत्र करने के लिये स्थानीय सांसद एवं मंत्री कृष्णपाल गूजर व तमाम स्थानीय विधायक भी वहां पहुंच गये थे। झूठा प्रोपेगंडा करने में माहिर इन नेताओं ने अस्पताल को चालू घोषित भी कर दिया। इस सबके बावजूद आज फिर से ईएसआई के अस्पताल पर सरकार की गिद्ध दृष्टि क्यों लगी है? जाहिर है कि प्रोपेगंडा तो प्रोपेगंडा ही होता है, उससे न तो अस्पताल चलता है और न ही मरीजों का इलाज हो पाता है। इसके लिये तो डाक्टरों व अन्य स्टाफ के साथ-साथ तमाम आवश्यक साजो-सामान खरीदना पड़ता है। यही वह काम है जो खट्टर सरकार ने आज तक नहीं किया।
अटल बिहारी वाजपेयी मेडिकल कॉलेज को इसी वर्ष से छात्र भर्ती करने की अनुमति भी मिल चुकी है, लेकिन इसके बावजूद भी सरकार ने आवश्यक फैकल्टी व अन्य स्टाफ के लिये भर्ती प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं की है। इस अस्पताल के नाम पर 106 नर्सों की भर्ती जरूर की है लेकिन उन्हें भी बीके अस्पताल में तैनात कर दिया गया है क्योंकि अटल बिहारी अस्पताल में उनके करने लायक कुछ भी नहीं है। मजे की बात तो यह है कि सरकार द्वारा करीब चार माह पूर्व भर्ती की गई इन नर्सों को आज तक पहला वेतन भी नहीं मिला है। बीते दिनों इन नर्सों ने सरकार को बाकायदा इस बाबत ज्ञापन भी सौंपा है। खट्टर सरकार के पास मीडिया में विज्ञापनबाज़ी व गीता महोत्सव जैसे कामों के लिये पैसे की कोई कमी नहीं है, कमी है तो अपने कर्मचारियों को वेतन देने की।
मज़दूर इसका डट कर विरोध करेंगे सीटू के नेता विजय झा, हिन्द मज़दूर सभा के जि़ला प्रधान आरडी यादव, एटक के जि़ला प्रधान बेचू गिरी व इंकलाबी मज़दूर केन्द्र के प्रधान संजय मौर्या से बात-चीत करने पर उन्होंने बताया कि अब तक जो धांधली हरियाणा सरकार ने मज़दूरों के साथ कर ली सो कर ली, अब आगे से यह दादागिरी नहीं चलने दी जायेगी। हम अपने मज़दूरों के अस्पताल प्रवेश को किसी भी कीमत पर बाधित नहीं होने देंगे। इसके लिये बाकायदा धरना-प्रदर्शण आदि सब कुछ किया जायेगा। हम देखेंगे कि सरकार के लोग हमारे मज़दूर भाईयों को हमारे ही अस्पताल से कैसे वंचित करेंगे?
सरकार का कोई पैसा यहां नहीं लगा हुआ आम लोगों को यह भ्रम रहता है कि ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज अस्पताल सरकार का है। संदर्भवश सभी पाठक यह जान लें कि इस अस्पताल में न तो हरियाणा सरकार और न ही केन्द्र सरकार की कोई चवन्नी लगी हुई है। ईएसआई कार्पोरेशन हर उस औद्योगिक मज़दूर के वेतन का साढे चार प्रतिशत वसूल करती है जिनका वेतन 21000 रुपये मासिक तक होता है। करीब एक वर्ष पहले तक यह वसूली साढे छ: प्रतिशत की जाती थी। कार्पोरेशन में कार्यरत प्रत्येक छोटे से बड़े कर्मचारी तक का वेतन व भत्ते आदि सब मज़दूर से वसूले गये पैसों से ही दिया जाता है। यहां तक कि केन्द्रीय श्रम मंत्री तक के भारी-भरकम खर्चे भी मज़दूरों के इस पैसे से ही पूरे किये जाते हैं।
ईएसआई कार्पोरेशन के नियमानुसार तो हरियाणा राज्य के भीतर तो ईएसआईसी चिकित्सा सेवायें राज्य सरकार को ही चलानी चाहिये। इसके लिये राज्य सरकार को कुल बजट का मात्र आठवां हिस्सा ही वहन करना होता है। परन्तु राज्य सरकार ने इस सेवा को चलाने के लिये कभी गंभीरता नहीं दिखाई। इन सेवाओं को चलाने के लिये तमाम तरह की भर्तियां व खरीदारी का कार्य राज्य सरकार को ही करना होता है। कार्पोरेशन मैनुअल के अनुसार राज्य के करीब 25-26 लाख बीमाकृत मज़दूरों को चिकित्सा सेवायें देने के लिये 1200 करोड़ का बजट बनाना चाहिये, जिसमें से राज्य सरकार को मात्र 150 करोड़ ही खर्च करना पड़ता, परन्तु राज्य सरकार ने कभी भी 150-200 करोड़ से अधिक का बजट नहीं बनाया। जाहिर है इसके परिणामस्वरूप न तो कोई अस्पताल और न ही कोई डिस्पेंसरियां ठीक से काम कर पा रही है।
राज्य सरकार की इस बेरुखी को देखते हुए कार्पोरेशन ने गुडग़ांव में दो अस्पताल तथा फरीदाबाद में मेडिकल कॉलेज अस्पताल बना कर खुद चलाना उचित समझा। इन तीनों अस्पतालों से राज्य सरकार का कोई वास्ता नहीं है। ये पूरी तरह से ईएसआई कार्पोरेशन द्वारा संचालित हैं। इसके बावजूद भी वक्त बेवक्त हरियाणा सरकार इन अस्पतालों पर अपनी दादागिरी चलाने से बाज नहीं आती। इसका मूल कारण मज़दूर आन्दोलन की कमजोरी को समझा जाता है। लेकिन अब लगता है कि मज़दूर संगठन लामबंद होकर सरकार की इस दादागिरी पर लगाम लगायेंगे।
कम्पलीशन के नाम पर एमसीएफ ने वसूले थे पांच करोड़ बेशर्मी की इन्तहा देखिये कि मज़दूरों के इस अस्पताल को कम्पलीशन देने के नाम पर नगर निगम फरीदाबाद ने तीन वर्ष पूर्व पांच करोड़ रुपये 2018 में वसूले थे। जबकि बीके सिविल अस्पताल ने नगर निगम से न तो कोई नक्शा पास कराया और न ही कम्पलीशन प्रमाणपत्र के नाम पर कोई धेला दिया। इतना ही नहीं शहर भर में लघु सचिवालय सहित तमाम सरकारी इमारतों से किसी प्रकार की कोई वसूली नहीं की गई है। इतना ही नहीं नगर निगम से प्रति वर्ष हाउस टैक्स का नोटिस भी मेडिकल कॉलेज अस्पताल को भेज दिया जाता है। लेकिन अस्पताल प्रशासन इसे कभी गम्भीरता से नहीं लेता।