आला अधिकारियों के उत्पीडऩ से पुलिसकर्मी परेशान

आला अधिकारियों के उत्पीडऩ से पुलिसकर्मी परेशान
January 25 16:41 2024

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) कानून व्यवस्था बनााए रखने और वाहनों का चालान काटने का भारी भरकम टारगेट पूरा कराने को आतुर उप पुलिस आयुक्तों ने सिपाहियों से लेकर थाना प्रभारियों तक की छुट्टियां अघोषित रूप से बंद कर रखी हैं। यहां तक कि सिपाहियों को छुट्टी देने का अधिकार चौकी इंचार्ज और एसएचओ से छीन कर खुद ही रख लिया है। महीनों छुट्टी नहीं मिलने से परेशान कुछ सिपाहियों ने भरी बैठक में पुलिस आयुक्त राकेश आर्य से अपना दुखड़ा रोया तो उन्होंने भी कोई तवज्जो नहीं दी। समझा जा सकता है कि  पुलिसकर्मियों की छुट्टियां आला अधिकारी होने के नाते पुलिस आयुक्त के इशारे पर मारी जा रही हैं। तीन लाख करोड़ से अधिक कर्ज में डूबी खट्टर सरकार ने जनता को लूटने के लिए वाहनों का चालान कर मोटी वसूली करने का लक्ष्य रखा है। यातायात पुलिस के अलावा हर थाने को भी चालान काटने का लक्ष्य दिया गया है। आए दिन कोई जुलूस यात्रा, शोभायात्रा, नेताओं का आवागमन आदि के कारण पुलिस कर्मियों को अतिरिक्त ड्यूटी देनी पड़ रही है। हालात ये हैं कि सिपाहियों को दो-दो माह से छुट्टी नहीं मिल रही, एसएचओ की हालत तो सिपाहियों से भी बुरी है।

भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार सिपाहियों को छुट्टी देने का अधिकार चौकी इंचार्ज और थाना प्रभारी से छीन कर डीसीपी ने खुद ले लिया है। अब सिपाही यदि एसएचओ से छुट्टी मांगता है तो डर के कारण एसएचओ उसके प्रार्थना पत्र को फॉरवर्ड ही नहीं करता। बहुत मिन्नत करने पर यदि फॉरवर्ड करता भी है तो एक दो दिन एससीपी कार्यालय में लग जाते हैं, वहां से फॉरवर्ड होकर डीसीपी कार्यालय पहुंचता है। करीब तीन चार दिन की प्रक्रिया के बाद सिपाही डीसीपी के सामने हाजिर होता है छुट्टी के लिए, साहब उसमें भी मीनमेख निकाल देते हैं। यह अड़ंगे दो से तीन दिन की छुट्टी की मांगने पर ही लगाए जाते हैं, लंबी छुट्टी लेने की तो कोई सोच ही नहीं सकता।

दो दिन की छुट्टी के लिए चार पांच दिन का इंतजार करना भी इन सिपाहियों के असंतोष का कारण है लेकिन अनुशासन के नाम पर चुप्पी साधने को मजबूर रहते हैं। पुलिस विभाग के जानकारों के अनुसार चौकी इंजार्च अपने मातहत सिपाही को तीन दिन की छुट्टी देने की अर्हता रखता है। थाना प्रभारी पांच दिन की छुट्टी दे सकता है। यह व्यवस्था लागू रहने से चौकी इंचार्ज और थाना प्रभारी मातहत सिपाहियों को अपनी सहूलियत के मुताबिक दो-तीन दिन की छुट्टी दे देते थे। अब यह अधिकार डीसीपी के अधीन हो जाने से सिपाहियों को छुट्टी मिलने की उम्मीद खत्म होती दिख रही है।

सिपाहियों का यह दुख हाल ही में पुलिस आयुक्त की पुलिस कर्मियों के साथ बैठक में दिखा। बैठक में पुलिस आयुक्त ने पूछा कि यदि किसी को कोई समस्या हो तो बताए। अनुशासित सेवा होने के कारण सीपी के सामने मुंह खोलने की हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा था। जब सीपी ने कई बार पूछा तो एक सिपाही खड़ा हो गया सैल्यूट मार कर बताया कि सर दो महीने से छुट्टी नहीं मिली है। सिपाही को छुट्टी देने के बजाय संंबंधित एसएचओ को उठाया और छ्ट्टी नहीं देने का कारण पूछा। एसएचओ ने काम की अधिकता और आला अधिकारियों द्वारा दिए गए लक्ष्य को समय पर पूरा करने के कारण सिपाहियों को काम पर लगाए रखने की बात कही। इस पर सीपी साहब ने संबंधित डीसीपी से कहा कि इस एसएचओ को भी दो माह तक कोई छुट्टी नहीं दी जाए यह सुनिश्चित करें। इससे पहले डीसीपी कुछ बोलते एसएचओ ने कहा कि सर मैं तो खुद पिछले चार महीने से लगातार ड्यूटी कर रहा हूं, मुझे तो चार माह से छुट्टी ही नहीं मिली है। इतना सुनने के बाद भी साहब ने छुट्टी के संबंध में गोलमोल बातें कहीं और फिर शहर की कानून व्यवस्था, वाहनों के चालान आदि का लक्ष्य कहां तक हासिल हुआ इसकी समीक्षा करने में जुट गए।

सीएम खट्टर की लाइन पर चलते सीपी राकेश आर्य सरकार के लिए तो अच्छे अधिकारी साबित हो रहे हैं लेकिन मातहतों व जनता के लिए उनका तानाशाही रवैया इस अनुशासित सेवा में भी असंतोष पनपने का कारण बना हुआ है। काम का दबाव इतना अधिक बढ़ चुका है कि पुलिसकर्मी नौकरी छोड़ रहे हैं। विभागीय सूत्रों के अनुसार करीब अस्सी पुलिसकर्मियों जिनमें इंस्पेक्टर, एसीपी स्तर के अधिकारी हैं, ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन कर रखा है। इंस्पेक्टर रैंक के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 24 घंटे की ड्यूटी में दो से तीन घंटे की नींद भी मश्किल से ले पाते हैं, छुट्टी के नाम पर आला अधिकारी इस तरह घूरते हैं जैसे उनसे जमीन जायदाद लिखवाई जा रही है। कहने को तो पुलिस का काम कानून व्यवस्था बनाने का है लेकिन सिर्फ बैठकें, रिपोर्ट तैयार करने, वीआईपी ड्यूटी निभाने, चेकिंग करने, नाइट डोमेन, आदि ड्यूटी करने में ही दिन गुजरते हैं, इसके बावजूद अपराध समीक्षा बैठक में अधिकारियों की गाली सुननी पड़ती है। परिवार का सुख तो मिलता नहीं, लगातार काम का बोझ और दबाव से पुलिसकर्मी शारीरिक और मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं, आला अधिकारियों को इसकी परवाह नहीं है।

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Mazdoor Morcha
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