निक्षय पोषण योजना के तहत टीबी मरीजों को प्रतिमाह पांच सौ रुपये नहीं दिए गए जांच के नाम पर किया जा रहा दोषियों को बचाने का खेल, अधिकारियों ने मौन साधा फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) जिला टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के अधिकारी टीबी मरीजों को पोषण के लिए दी जाने वाली पांच सौ रुपये की राशि भी हड़प गए। जो धनराशि सीधे मरीज के बैंक खाते में ट्रांसफर की जानी थी वह एक विशेष व्यक्ति के खाते में भेजी जा रही थी। सीएम फ्लाइंग जांच में मामलाा पकड़ा गया लेकिन एफआईआर दर्ज कराने के बजाय कार्रवाई का जिम्मा सीएमओ को सौंप दिया। सीएमओ ने जांच टीम तो गठित कर दी लेकिन दोषी से रकम वापस दिलवा कर मामले को रफा दफा करने का खेल खेला जा रहा है।
क्षय रोगियों को दवा के साथ पौष्टिक भोजन की आवश्यकता को देखते हुए सरकार ने निक्षय पोषण योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत प्रत्येक मरीज को दवा के साथ ही पौष्टिक भोजन के लिए प्रतिमाह पांच सौ रुपये दिए जाते हैं। यह धनराशि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांस्फर (डीबीटी) स्कीम के तहत मरीज के बैंक खाते में ट्रांसफर किए जाते हैं। मरीज के आधार से लिंक बैंक खाते में ही यह रकम जाती है। जिला टीबी उन्मूलन कार्यक्रम की नोडल अधिकारी डॉ. ऋचा बत्रा ने बताया कि यदि किसी मरीज का बैंक खाता नहीं होता है तो उसके पिता, पति, पत्नी, सगे भाई या बहन के खाते में यह धनराशि भेजी जाती है लेकिन इससे पहले लाभार्थी को यह घोषणापत्र देना होता है कि उसकी धनराशि करीबी सगे संबंधी के खाते में भेजी जाए और इस धनराशि का इस्तेमाल वह पौष्टिक भोजन लेने में ही करेगा।
आधार लिंक खाता, सत्यापन आदि औपचारिकताएं होने के बावजूद बीके स्थित टीबी उन्मूलन कार्यक्रम कार्यालय के अधिकारियों और कर्मचारियों ने इस धनराशि की बंदरबांट कर डाली। सीएम फ्लाइंग की प्रारंभिक जांच में एक ही बैक खाते में विभिन्न टीबी मरीजों की निक्षय पोषण योजना के 31 हजार रुपये ट्रांसफर किया जाना पाया गया। यदि गहराई से जांच की जाती तो सीएम फ्लाइंग को इस तरह के और भी खाते मिलते जिनमें मरीजों की रकम ट्रांसफर कर रुपये हड़पने का खेल किया जा रहा होगा। लेकिन मुख्यमंत्री उडऩदस्ते के अधिकारी स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के विभाग में जांच करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। कार्रवाई करने के नाम पर सीएमओ डॉ. विनय गुप्ता को रिपोर्ट सौंप कर पल्ला झाड़ लिया गया। डीएसपी सीएम फ्लाइंग मनीष सहगल का कहना है कि मामला बहुत सारे खातों की जांच करने का था, यह काम ऑडिट टीम ही कर सकती थी, इसलिए सीएमओको जानकारी देकर पूरी जांच कराने का निर्देष दिया था। मनीष सहगल की बात से सहमत नहीं हुआ जा सकता, कानूनन उन्हें इसकी एफआईआर दर्ज करानी थी, तफ्तीश के दौरान सारे खातों का हिसाब किताब सामने आ जाता। ऐसा न करके उन्होंने मरीजों के हित पर डकैती मारने वाले डकैतों को बड़ी राहत दे दी है क्योंकि सीएमओ ने न तो पहले कभी किसी मामले में कुछ किया है और न कुछ करने की संभावना है। जब भी कोई मामला सामने आता है सीएमओ जांच गठित कर देते हैं जिसका परिणाम सामने आता कभी दिखाई नहीं दिया।
एनआईटी तीन चौकी इंजार्च का कहना है कि सीएमओ ने शिकायती पत्र तो भेजा था इसमें 31 हजार रुपये की रकम एक ही खाते में ट्रांसफर किए जाने का आरोप लगाया गया था। संबंधित खाता धारक ने यह 31 हजार रुपये वापस तो ही दिए हैं। बावजूद इसके जांच की जा रही है।
सीएमओ डॉ. विनय कुमार ने कहा कि मामले की जांच के लिए डिप्टी सीएमओ डॉ. रामभगत की अध्यक्षता में एक टीम जांच कर रही है, रिपोर्ट आने के बाद ही बताया जा सकेगा कि 31 हजार रुपये किसके खाते में और कैसे ट्रांसफर किए गए थे। इसमें जांच करने जैसा कुछ बचा ही नहीं है, सब कुछ तो सामने है। हां, जांच करने का कोई विषय तो यह हो सकता है कि इस तरह की कितनी डकैतियां हुई हैं जिसे सीएमओ कार्यालय कभी उजागर नहीं करना चाहेगा।
दरअसल, सीएमओ, पुलिस और सीएम फ्लाइंग सभी इस मामले को दबाने का प्रयास कर रहे हैं। एक ही खाते में मरीजों की रकम का भेजा जाना ही साबित करता है कि धनराशि हड़पने का खेल चल रहा था, रकम वापस करवा देने से गुनाह खत्म नहीं हो जाता। जिस तरह पुलिस ने दो सप्ताह बीत जाने के बावजूद अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं की है उससे नहीं लगता है कि कोई कार्रवाई होगी। यदि जांच आगे बढ़ी तो गबन की धनराशि किन अधिकारियो तक बंटती थी यह भी सामने आएगा जिसमें कई बड़े अधिकारियों की गर्दन भी फंसने की संभावना हो सकती है, ऐसे में हड़पी रकम वापस करवा कर मामले पर पर्दा डालने के प्रयास किए जा रहे हैं।