हर आईएएस, आईपीएस की नकेल अब सीधे मोदी-शाह के हाथ में आयेगी संघीय ढांचे पर बड़ा प्रशासनिक आघात होने की आशंका

हर आईएएस, आईपीएस की नकेल अब सीधे मोदी-शाह के हाथ में आयेगी  संघीय ढांचे पर बड़ा प्रशासनिक आघात होने की आशंका
January 29 03:48 2022

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
संसद के आगामी सत्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक ऐसा कानून बनाने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं, जिसके बन जाने पर मोदी किसी भी राज्य के किसी भी आईएएस व आईपीएस अधिकारी को जब चाहेंगे सीधे आदेश देकर उसे देश के किसी भी कोने में फेंक सकेंगे। उदाहरणार्थ यदि किसी भी जि़ले के डीसी या एसपी ने भाजपाई या संघी कारिंदे की गुंडागर्दी पर अंकुश लगा कर उसे नाराज कर लिया तो वह मोदी जी से कह कर उसे सीधे काला पानी भिजवा सकेगा।

इसका इस्तेमाल गैर भाजपा शासित राज्यों में ही किया जायेगा क्योंकि भाजपा शासित राज्यों में तो भाजपाइयों व संघियों की वैसे ही कोई रोक-टोक नहीं होती।
देश की तीन अखिल भारतीय सेवायें-आईएएस, आईपीएस व आईएफओएस (वन सेवा)ऐसी हैं जिन्हें राज्य कैडर आवंटित किये जाते हैं। इन सेवाओं के लिये केन्द्र सरकार संघ लोक सेवा आयोग द्वारा अफसर चयनित करके राज्यों को आवंटित कर देती है। लेकिन इनके साथ एक शर्त यह भी होती है कि केन्द्र सरकार राज्यों से 40 प्रतिशत अफसरों को अपने यहां प्रतिनियुक्ति पर बुला सकती है। अभी तक प्रतिनियुक्ति का नियम यह है कि जब तक राज्य सरकार उसे न छोड़े तो केन्द्र उसे अपने यहां आने पर बाध्य नहीं कर सकता। मोदी जी संसद में अपने बहुमत के बल पर राज्य सरकार के इस अधिकार को निरस्त करने जा रहे हैं।

प्रचलित प्रथा के अनुसार केन्द्र सरकार अपने यहां रिक्तियों की घोषणा करके इच्छुक अफसरों को आमंत्रित करती है। इस प्रथा के अनुसार केन्द्र सरकार अफसरों का चयन अपने बनाये पैनल से करती है, फिर एवं उपयोगी पाये जाने पर केन्द्र सरकार राज्य सरकार से उस अफसर को मांगती है। यदि राज्य सरकार उसे न भेजना चाहे तो केन्द्र पैनल से किसी अन्य अफसर को उनकी जगह ले लेता है। कुल मिला कर केन्द्र सरकार व राज्य सरकार की राय पर ही कोई अफसर प्रतिनियुक्ति पर जा सकता है। जबरा-जबरी के मामले में काम तो कोई अफसर कर नहीं सकता, हां सरकारी खर्च पर अफसर को परेशान जरूर किया जा सकता है। आईएएस/आईपीएस/आईएफओएस के सेवा नियमों में संशोधन के पीछे मोदी की मंशा भी यही है।

मोदी सरकार ने बीते कुछ समय में कुछ अफसरों को नामजद करके अपने यहां आने का फर्मान जारी किया तो राज्य सरकारों ने उन्हें भेजने से इन्कार कर दिया। इसके ताजातरीन उदाहरण बंगाल से मिलते हैं। पहले तो मोदी ने उन तीन आईपीएस अफसरों को नामजद करके तलब किया जिन्होंने राज्य में अपनी ड्यूटी करते हुए भाजपाई गुंडागर्दी को सख्ती से निपटा; जाहिर है उन अफसरों को प्रताडि़त करने की नीयत से मोदी ने उन्हें केन्द्रीय सेवा में तलब किया था। लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें भेजने से इन्कार कर दिया।
दूसरा बड़ा कांड 28 जुलाई 2021 को तब हो गया जब ममता और उनके मुख्य सचिव बंदोपाध्याय ने चौड़े में मोदी की सारी हेकड़ी निकाल दी। हुआ यूं था कि बंगाल व उड़ीसा में समुद्री तूफान अवलोकन के बहाने से मोदी वायु भ्रमण करने पहुंचे तो ममता से ताजे-ताजे हारे मोदी ने ममता को जलील करने के लिये उनके धुर विरोधी एवं भाजपाई विधायक दल के नेता सुभेन्दु अधिकारी को भी अपने साथ बैठा लिया था, जबकि मीटिंग केवल प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के बीच होनी थी। ममता ने न तो अपने मुख्य सचिव को उनकी अगवानी को भेजा और न ही खुद पहुंची। पूरे 30 मिनट मोदी को इन्तजार करा कर अपने मुख्य सचिव के साथ आईं और खड़े-खड़े अपनी रिपोर्ट मोदी को पकड़ा कर चल दीं। कहां तो ममता को जलील करने आये थे और कहां खुद ही जलील होकर ममता के कूचे से निकले।

अब ममता का तो मोदी कुछ कर सकते नहीं थे, इसलिये उनके मुख्य सचिव पर हाथ अजमाते हुए उन्हें केन्द्रीय सेवा में आने का आदेश 30 जुलाई को जारी कर दिया। उधर मुख्य सचिव ने 31 जुलाई को, पहले से तय, सेवा निवृत्ति ले ली। मोदी जी रह गये झांपते।

केन्द्रीय सेवा नियमों में प्रतिनियुक्ति का प्रावधान सरकारी सेवाओं को बेहतरीन बनाने की नीयत से रखा गया था। बीते 73 सालों से यह सही चल रहा था, लेकिन जब मोदी जैसे प्रधानमंत्री उस प्रावधान का दुरुपयोग अपनी निजी खुंदक निकालने के लिये करने लगे तो फिर यही होगा जो हो रहा है। इस से निपटने के लिये मोदी जो नियम बनाने जा रहे हैं वह एक दम संघीय ढांचे के विरुद्ध होगा। तमाम गैर भाजपाई सरकारें इसके विरोध में उठ खड़ी होंगी तो मोदी को फिर से मुंह की खानी पड़ सकती है। यूं भी राज्यों के बहुमत की ‘हां’ के बिना ऐसा परिवर्तन किया भी नहीं जा सकता।

केन्द्र और राज्यों के बीच की यह लड़ाई जिसे मोदी ने नाक की लड़ाई बना दिया है, वह प्रशासनिक स्वरूप की शक्ल सूरत बहतर बदल सकती है। यहां तक कि राज्य आईएएस, आईपीएस, आईएफएस अफसरों को स्वीकारने से भी मना कर सकते हैं। पहले भी कुछ राज्यों ने इस तरह के कदम उठाये हैं। स्वयं हरियाणा में कई-कई सालों तक आईपीएस अफसर नहीं लिये गये। सवाल है कि क्या देश का प्रशासनिक ढांचा अपना चरित्र बनाये रख सकेगा? या यह पूरी तरह केन्द्र और राज्य के बीच बंट कर कमजोर हो जायेगा? मोदी सरकार ने चुनाव आयोग, कैग, लोकपाल, सीबीआई, ईडी, आई.टी, आरबीआई आदि तमाम संस्थाओं को तो बर्बाद किया ही है, अब शायद बारी अखिल भारतीय सेवाओं की है।

संदर्भवश सुधी पाठक जान लें कि जब नरेन्द्र मोदी खुद गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो वहां के एक आईपीएस कुलदीप शर्मा को, केन्द्र की मांग के बावजूद रिलीव करने से मना कर दिया था। लेकिन कुलदीप शर्मा स्वत: रिलीव होकर दिल्ली आ गये और तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने उन्हें बीपीआरडी में नियुक्ति प्रदान कर दी। मोदी जी रह गये ताकते। दरअसल मोदी को कुलदीप शर्मा की कोई प्रशासनिक आवश्यकता तो थी नहीं। वे तो केवल शर्मा को रगड़ा लगाना चाहते थे क्योंकि वे उनके आपराधिक षडयंत्रों में सहयोग नहीं कर रहे थे।

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