फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) एनआईटी तीन स्थित केदार हॉस्पिटल के मालिक डॉ. हरबीर सिंह ने हॉस्पिटल के साझेदार नितिन तोमर के खिलाफ एसजीएम नगर थाने में 26 अप्रैल 2022 को धोखाधड़ी, जालसाजी, रुपये हड़पने का केस दर्ज कराया था। उन्होंने पुलिस को केस संबंधी सभी दस्तावेज और साक्ष्य भी उपलब्ध करा दिए थे। दो साल बीतने के बावजूद पुलिस ने मामले की जांच नहीं की। मजबूर होकर उन्होंने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अदालत में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जांच के प्रति पुलिस का रवैया ठीक नहीं है, दो साल बीतने के बाद भी पुलिस अंतिम रिपोर्ट दाखिल नहीं कर रही है। अदालत ने इसे लापरवाही मानते हुए पुलिस आयुक्त राकेश आर्य पर पचास हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया। जुर्माने की रक़म वसूलने का आदेश फरीदाबाद के डीएम को जारी किया है।
हाईकोर्ट ने पुलिस आयुक्त पर यह जुर्माना अपनी ड्यूटी यानी पर्यवेक्षक अधिकारी की भूमिका ठीक ढंग से नहीं निभाने के लिए लगाया है। अपराधी और अपराध पर नियंत्रण करने के लिए चौकी और थानों पर पूरा अमला मौजूद है। इनके ऊपर बैठे सुपरवाइजरी अफसर एसीपी-डीसीपी का काम ही ये देखना है कि संबंधित थानों में दर्ज हुई शिकायतों पर क्या कार्रवाई हुई, कौन से केस की जांच कहां तक पहुंची, यदि रुकी हुई है तो क्यों? इन अधिकारियों को रोजाना के आधार पर इनकी जानकारी रखनी होती है। जांच में आने वाली समस्याओं का समाधान कराना जांच में चार्जशीट या फाइनल रिपोर्ट लगवाने का जिम्मा भी इनका ही होता है। यानी इन अधिकारियों काम यह सुनिश्चित करना होता है कि थाने में दर्ज केस पर कार्रवाई की जाए और उसे अंजाम तक पहुंचाया जाए।
डॉ. हरबीर सिंह के केस में जिसमें वह सभी जरूरी सुबूत भी पुलिस को दे चुके थे जांच दो साल तक लंबित रखना बताता है कि जांच अधिकारी से लेकर पर्यवेक्षण अधिकारी तक मामले में रुचि नहीं ले रहे थे। जिस पुलिस के कर्मचारी और अधिकारी कभी भैंस चोरी के आरोपी से रिश्वत लेते हुए तो कभी मारपीट की घटना में आरोपी को जमानत दिलाने के नाम पर रिश्वत लेते पुलिसकर्मी रंगेहाथ पकड़े जाते हैं, वह बिना कारण जांच दो साल लंबित कर दे यह समझ से परे है। पुलिस से करीब रहने वालों का मानना है कि आरोपी पक्ष से समय समय पर अच्छी बख्शिश मिलते रहने पर ही जांच ठंडे बस्ते में डाली जाती है। डॉ. हरबीर के केस में पुलिस ने ऐसा किया या नहीं निश्चित तौर पर तो कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन आईओ द्वारा जांच को ठंडे बस्ते में डाले रखने पर थानेदार से लेकर एसीपी-डीसीपी द्वारा अनदेखी किया जाना, संयश तो पैदा करता ही है। एसजीएम नगर ही नहीं जिले के सभी थानों में डॉ. हरबीर की तरह के हजारों मामलों की जांच इसी तरह ठंडे बस्ते में पड़ी होगी। डॉ. हरबीर सिंह तो हाईकोर्ट चले गए लेकिन हजारों अन्य पीडि़त न तो अपने अधिकारों के प्रति इतने सजग हैं और न ही इतने संपन्न की ले देकर जांच पूरी करवा लें।
सीपी महोदय भी हर महीने अपराध समीक्षा बैठक करते हैं। बैठक में सभी डीसीपी, एसीपी,थाना और चौकी प्रभारी शामिल होते हैं। उनकी ही तरह सभी एसीपी-डीसीपी संबंधित थानों की डेली और वीकली डायरी जांचते हैं। जिले में छह डीसीपी और बारह एसीपी तैनात हैं, बावजूद इसके थानों में जांच केस वर्षों से लंबित पड़े हैं। इन अधिकारियों को सरकार मोटी मोटी तनख्वाह इसीलिए देती है कि सभी मामलों का कानूनी प्रक्रिया के तहत समय से निस्तारण हो, यदि ये अधिकारी इतना भी नहीं करते तो उनके इस पद का क्या फायदा। रही बात पचास हज़ार रुपये जुर्माने की तो शर्मदार अधिकारी के लिए एक रुपये का जुर्माना भी उसके कॅरियर पर दाग है लेकिन बेशर्म को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। पुलिस आयुक्त राकेश आर्य के लिए भी पचास हज़ार रुपये हाथ का मैल हो सकता है, या फिर वो इस जुर्माने को विभाग के मान सम्मान का प्रश्न मान कर मातहतों को मुस्तैदी का पाठ पढ़ाएंगे, यह आने वाला समय ही बताएगा।