मज़दूर मोर्चा ब्यूरो हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने देश में छुपे हुए गद्दारों से सचेत रहने की चेतावनी दी है। उन लोगों से सावधान रहने को कहा है जो पाक क्रिकेट टीम के जीतने पर पटाखे फोड़ते हैं। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि ऐसे लोगों का डीएनए भारतीय नहीं हो सकता। विज के इस कथन पर बहस करने से पूर्व यह समझना ज्यादा जरूरी है कि उन छुट्टे घूमते गद्दारों का क्या करें जो स्वतंत्रता संग्राम के वक्त अंग्रेज हुक्मरानों के तलवे चाट रहे थे। अंग्रेज हुकूमत से मोटी-मोटी पेंशनें पा रहे थे? जब पूरा देश जाति व धर्म को भुला कर देश की आज़ादी के लिये लड़ते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे रहे थे, उस समय खाकी निकर पहन कर अंग्रेजों की सेवा में हाजि़र थे उन्हें विज महाशय कौनसी श्रेणी में रखना चाहेंगे।
जब देश के लिये तिरंगे झंडे का निर्माण हुआ तो उस वक्त तीन रंग वाले झंडे को अपशकुन बताने वाले रंगे सियार जो आज तिरंगा ही तिरंगा चिल्ला रहे हैं, वे कब से देशभक्त हो गये? जो फासीवाद की दीक्षा लेने इटली के फासीवादी तानाशाह मुसोलिनी के चरण स्पर्श करने इटली तक पहुंचे थे, वे मुंजे साहब कैसे देशभक्त एवं देश के शुभचिंतक हो सकते हैं?
संदर्भवश यह जानना अत्यधिक जरूरी है कि देश का अर्थ क्या है, देश शब्द से समझा क्या जाये, जिसकी भक्ति को लेकर इतना बावेला मचा है? देश केवल कोई भूखंड नहीं होता, बल्कि उस भूखंड पर रहने वाले लोगों से बनता है। इस लिये भक्ती एवं सेवा उस भूखंड पर बसे लोगों की होनी चाहिये। परंतु चंद फासीवादी लोगों का गिरोह जो उस भूखंड पर बसे लोगों को लूटने, पीटने एवं हर तरह से प्रताडि़त करने में लगाा है वहीं अब देशभक्ती के प्रमाणपत्र बांटने में लगा है; यानी जो लोग खुद देश से गद्दारी करते रहे, अंग्रेज लुटेरों को सहयोग करते रहे, आज वही देंशभक्ती के ठेकेदार बन बैठे।
अब थोड़ी क्रिकेट की भी बात कर ली जाये। भारत के हारने पर, विज जैसों को पटाखे फूटते कहां से नज़र आ जाते हैं और केवल उन्हीं को क्यों नज़र आते हैं? दूसरी ओर टीवी स्क्रीन पर खुशी से खिलखिलाता एवं चहकता कनेडा कुमार (अक्षय कुमार) क्यों नज़र नहीं आता? वह भारत की हार पर इतना खुश होकर भी देशभक्त कैसे बना हुआ है? टीम का कप्तान कोहली जब खुशी-खुशी पाकिस्तानी कप्तान से गले मिल कर बधाई देता है तो उसके डीएनए में कोई दोष क्यों नहीं दिखता इन रंगे सियारों को? असल में इन्हें दिखता तो सब कुछ है परन्तु इनका असली एजेंडा तो हिन्दू-मुस्लिम है। इन्हें इस बात से बेहद तकलीफ है कि उनके द्वारा इतना जहर उगले जाने के बावजूद अभी तक सड़कें खून से लाल क्यों नहीं हो पा रही? यूपी के चुनाव सिर पर हैं, यदि दंगे न हो पाये तो मुख्यमंत्री अजय सिंह विष्ट की नैया कैसे पार लगेगी?