चुनावी मौसम में खतरनाक सिद्ध होगा यह व्यापक जन-असंतोष फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस वे पर मोहना में कट दिलाने का वादा कर करीब डेढ़ सौ गांवों की जनता को धोखा देते हुए फरेंदा में कट बनाए जाने से नाराज ग्रामीणों ने केंद्रीय मंत्री किशनपाल गूजर की तेरहवीं कर डाली। सत्ता सुख भोग रहे किशनपाल गूजर को भले ही भाजपा ने तीसरी बार लोकसभा का उम्मीदवार चुना है लेकिन ग्रामीणों ने शारीरिक न सही उनकी राजनीतिक तेरहवीं तो कर ही डाली है। ग्रामीणों की एकजुटता और विरोध को देखते हुए उनका लोकसभा चुनाव हारना तय माना जा रहा है।
पूर्व सीएम खट्टर द्वारा घोषणा और खुद केंद्रीय मंत्री गूजर द्वारा आश्वासन दिए जाने के बावजूद ग्रीन एक्सप्रेस वे पर मोहना में ढाई साल बाद भी कट नहीं बनाए जाने से नाराज ग्रामीणों ने हाल ही में उनके पुतले की शव यात्रा निकाल कर विरोध जताया था। चुनावी मौसम में करीब डेढ़ सौ गांवों के लोगों की नाराजगी किसी भी राजनेता को चिंतित कर सकती है लेकिन राजनेता से जमीन माफिया बन चुके किशनपाल गूजर को अरबों रुपये के मुनाफे के आगे जनता का यह विरोध मामूली लग रहा है, यही कारण है कि फरेंदा पर ही कट बनवाने के अपने मुनाफे वाले फैसले पर हठधर्मिता के साथ अड़े हुए हैं।
प्रतीकात्मक शव यात्रा निकालने की घटना के बावजूद भी किशनपाल गूजर ने अपने होश दुरुस्त करने की कोई आवश्कता नहीं समझी तो ग्रामीणों का गुस्सा और भी भडक़ गया है। अभी तक अपने हक की मांग कर रहे ग्रामीण अब सक्रिय विरोध के साथ मंत्री और उनकी पार्टी का बायकाट करने को लामबंद होते जा रहे हैं। एक सप्ताह का समय बीतने के बावजूद कोई फैसला नहीं आने पर ग्रामीणों ने किशनपाल गूजर की रविवार को प्रतीकात्मक तेरहवीं कर डाली। तेरहवीं तो बेशक प्रतीकात्मक रही लेकिन ग्रामीणों के मन में मंत्री के प्रति जो तिरस्कार की भावना है उससे तो लग रहा है कि आने वाला लोकसभा चुनाव उनके राजनीतिक कॅरियर की अंत्येष्टि साबित होगा।
कहने को तो मोहना में कट बनवाने की मांग करीब डेढ़ सौ गांवों के लोग कर रहे हैं लेकिन इनकी पहुंच कहीं दूर तक है। नाराज ग्रामीण मंत्री गूजर की सच्चाई का खुलासा करने में लगे हैं, जो उनकी छवि को बर्बाद कर चुका है। ग्रामीणों में यह भावना गहरे घर कर गई है कि नागरिकों के वोट से केंद्रीय मंत्री का पद पाने वाले किशनपाल गूजर जनता की सेवा नहीं बल्कि अपने कुनबे व परिवार के लिए अकूत संपत्ति बनाने के लिए सत्ता का इस्तेमाल कर रहे हैं। यही कारण है कि उन्होंने ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस वे पर फरेंदा में उस जगह कट बनवाया है जहां उनके परिवार के नाम सात सौ एकड़ ज़मीन है। एक्सप्रेस वे पर आर्थिक और आबादी के आधार पर नैसर्गिक रूप से कट पाने के हक़दार तो हजारों ग्रामीण हैं लेकिन अधिकारों पर डाका डालना किशनपाल के लिए अपने राजनीतिक कॅरियर के पांवों पर कुल्हाड़ी मारने वाला साबित हो रहा है।
तेरहवीं पर ग्रामीणों ने सामूहिक मुंडन कराया और फिर किशनपाल की असफलताओं और तानाशाही रवैये की जमकर आलोचना की। होली की मस्ती की आड़ में उनकी असफलताओं मोहना धरना, चंदावली धरने को उपलब्धि बताया गया। इसी तरह सभी समाजों को नीचा दिखाने और किसी को भी व्यापार नहीं करने देने की उनकी दुष्प्रवृत्ति को भी उपलब्धि बताया गया। किसी की भी जमीन हड़पने का आरोप लगाते हुए उन्हें भूमाफिया की संज्ञा से नवाजा गया तो फरीदाबाद व पलवल की ऐसी तैसी करने वाला यशस्वी नेता बताया गया। प्रदर्शनकारी ग्रामीण किशन पाल का वह जुमला कि उन्होंने वोट मुझे थोड़े ही दिया था, मोदी को दिया था दोहराना नहीं भूलते, मंत्री गूजर के उस अहंकारी भाव को भी ग्रामीण बार बार दोहराते हैं कि उन्हें उनके वोट की जरूरत भी न है। यानी कि गूजर को यह भ्रम हो चुका है कि वे ग्रामीणों के वोट से नहीं मोदी को आशीर्वाद से ही सत्ता में कायम हैं। लोगों का कहना था कि मोदी के चार सौ सीटों के सपने में एक तो निश्चित ही कम हो रही है।
लगता है कि किशनपाल गूजर भी इस चुनाव को अपने कॅरियर का अंतिम चुनाव ही मान कर चल रहे हैं, शायद यही कारण है कि उनका ध्यान राजनीति से ज्यादा अपने और अपने परिवार के लिए अकूत चल-अचल संपत्ति बटोरने में ज्यादा है। चर्चा है कि उन्होंने अपने पौत्र अमोलिक के नाम से खोली गई कंपनी के लिए येन केन प्रकारेण अन्य बिल्डर्स के साथ मिलकर ग्रेटर फरीदाबाद की आधी से ज्यादा जमीन हथिया ली है, और जमीन खरीदने, कब्जा करने का ये सिलसिला अभी जारी है।
दस साल के कार्यकाल में कोई उल्लेखनीय विकास कार्य नहीं कराने के कारण उनके साथ सभी भाजपाइयों को भी लग रहा था कि इस बार उनका टिकट कटना तय है लेकिन संघ की पृष्ठभूमि और इतने सालों में बनाई गई अकूत संपत्ति के चंद टुकड़े ऊपर तक पहुंचाने के कारण पार्टी ने एक बार फिर उन पर दांव खेला है। लेकिन जनता दस साल में उनके चाल चरित्र को अच्छी तरह समझ चुकी है।