ग्रामसेविका

ग्रामसेविका
April 28 13:21 2024

हरिमोहन झा
एक नदी पर लूटन मिश्र वैद्य जी को मुंह धोते देख काशीनाथ कहने लगे-वैद्यजी, एक नया गप्प सुनने में आया है।
वैद्यजी ने घबराते व सचेत होते हुए पूछा? क्या बात हुई है?
काशीनाथ-अपने इलाके में एक ग्रामसेविका आई है।
वैद्यजी-ग्रामसेविका का अर्थ, क्या वो सम्पूर्ण गांव को सेवा ‘पैर दबायेगी’?
काशीनाथ-वो घर-घर घूम कर स्त्रीगण को शिक्षा देगी।
वैद्यजी-क्या शिक्षा देगी?
काशीनाथ-यही कि पर्दा छोडक़र सभी कामों को करे।
वैद्यजी दातुन फेकते हुए कहने लगे-अब जो-जो अनर्थ हो।

गांव के एक व्यक्ति फूदन पंडित ने नदी पर लोटा मलते हुए पूछा, उसकी उम्र क्या है? काशीनाथ संकुचाते हुए बोले कि वही 18-19। फिर पंडितजी ने पूछा, विवाहिता है या कुंवारी? काशीनाथ-देखने से तो कुंवारी लगती है। पंडितजी-तो वो दूसरे को क्या सिखाएगी? नातिन सिखाये बूढ़ नानी के। काशीनाथ-ये नहीं कहिए, वो बहुत पढ़ी-लिखी है। सरकार ने उसको इसी काम के लिये तैनात किया है। पंडितजी-क्रूरता से बोले, सरकार को क्या समझते हैं? दूसरे की बहू-बेटी का नाच देखने में बहुत अच्छा लगता है। पतिव्रता से उसे कौन काम? तब तक कान पर जनेऊ चढ़ाते हुए पंडित ग्रामसेविका की बात सुनते हुए कहने लगे कि इस युग में भ्रष्टता का उदय है इसीलिये सभी को अपने जैसा बनाना चाहती है। वो समूचे गांव की महिलाओं को बिगाड़ कर छोड़ देगी। इसके बाद एक भी बेटी-बहू हम लोगों की बात नहीं मानेगी, वो ‘ग्राम सेविका’ नहीं ‘ग्राम-शोधिका’ है।

पंडितजी ढोंढी भर पानी में खड़ा होकर ‘अघमर्षण सूक्त’ का जाप कर कहने लगे। हम तो उस छोरी को कभी भी अपने घर के अंदर नहीं घुसने देंगे। काशीनाथ-बाबा उसे छोरी नहीं कहिए वो अफसर होकर आई है। पंडितजी उत्तेजित होते हुए बोले, इस गांव में अ$फसरी शान नहीं चलेगी। मेरे घर को बिगाडऩे आएगी तो झोंटा पकड़ कर डंडे से मारकर भगा देेंगे।

तब तक आठ वर्ष का बच्चा यानी पंडितजी का पौत्र बंगट हांफते हुए नदी पर आ पहुंचा। पंडितजी ने पूछा, क्या हुआ? घर में सांप निकला है, बंगट ने हांफते-हांफते कहने लगा कि एक मौगी खूब सफेद साड़ी पहन कर दलान पर आकर बैठी है और कह रही है कि हम आंगन में जाकर सब महिलाओं से मिलेंगे। मां और चाची तो तैयार हैं लेकिन दादी कह रही हंै कि जाओ पहले दादाजी से पूछकर आओ। बंगट को डरे हुए देख काशीनाथ ने पूछा कि उस महिला के माथा ढका है या नहीं? बंगट बोला-नहीं। काशीनाथ-हाथ में बैग भी है? बंगट हंा। काशीनाथ कहने लगे तब निश्चित ही वही महिला है। अब पंडितजी क्रोध से पागल होते हुए बोले, हड़ाशंखिनी, बदचलन, राक्षसी, डाइन और कोई घर नहीं मिला, सबसे पहले मेरे घर ही आई।

जब पंडितजी घर पहुंचे तो चकित रह गये, जिस महिला को वो पूरे रास्ते गालियों और अपशब्द से उपाधि देते हुए आए, देखा कि वो अपना आंचल कस कर पकड़ कर, एक हाथ में झाडू़ व दूसरे हाथ में फिनाइल लेकर उनके घर पर मोरी यानी ‘नाली’ साफ कर रही है और उनके घर की सभी महिलाएं घूंघट करके पीछे से टुक-टुक देख रही हैं। पंडितजी को आंगन में पैर रखते मोरी की गंध लगती थी नित्य प्राणायाम करके आते थे, वो आज खुलकर सांस ले सके। जहां बराबर कूड़े-कचरे को लांघ कर जाना पड़ता था आज सब क्लीयर। कहीं भी एक सामान फालतू नहीं, दरवाजे पर एक कोयले जैसी काली लालटेन टंगी रहती थी, जिससे बराबर माथे पर चोट लगती थी, उससे मिट्टी का तेल रिसकर उनके शरीर पर गिर जाता था वो आज सा$फ चमका कर कोने में खुंटी पर लटकाई हुई है। ये कायापलट कैसे हो गया? छ: महीने से जो उनके घर में झोल जमा हुआ था आज कहीं नामोनिशान नहीं है। तब पंडितजी सोचने लगे कि ऐसे ही संस्कार वाली बहू-बेटी अपने घर में हो तो नित्य गदहकिच्च क्यों होती?

पंडितजी पूजा पर बैठे तो जंगले से दिखाई दिया कि लडक़ी कंधे में बैग लटकाए पीछे खड़ी है जिस पर सुंदर अक्षर में ‘विमला’ लिखा है। एक नीबू के पेड़ में कीड़ा लगा था, पिचकारी में कोई दवा घोलकर और महिलाओंं को समझाते हुए उस पर छिडक़ाव कर रही है। ऐसा देख कर घर की महिलाएं जो हर समय घूंघट में रहती थीं वो विमला के निर्देशानुसार हाथ में कुदाल लेकर बाड़ी में जाकर सफाई करने लगीं। थोड़ी देर बाद विमला ने साबुन लेकर हाथ धोए, पांच मिनट तक बच्चे को दुलारा, तदुपरांत सभी को हाथ जोडक़र नमस्ते कर विदा हो गई। पंडितजी मंत्रमुग्ध होकर सब देखते हुए सोचने लगे कि ये तो चंाडालिन, कुलटा जैसी नहीं, मुनि-कन्या है जहां जाएगी वहां तपोवन बना देगी। दुर्गापाठ करते हुए बार-बार वही विमला उनके ध्यान में आ जा रही थी, सोच रहे थे बेकार बेचारी के प्रति इतने अपशब्द कहे।

भोजन के समय पंडितजी पत्नी से बोलेे, देख लिया बंगालन लडक़ी का पानी। पत्नी बोली वो बंगालन नहीं देशी लडक़ी है। पंडितजी फिर बोले मान नहीं सकते, पत्नी बोली बंगालन साड़ी देखते हुए ऐसा न सोचिए। वो मैथिल है, कमल पुर घर है। अब ये बात सुनते हुए फिर विमला के प्रति उनके मन में घृणा होने लगी। कहने लगे बंगालन, या पंजाबन होती तो ये सब शोभा देता। परन्तु मैथिल कन्या होते हुए इस तरह से करती है, देशी मुर्गी, विलायती बोल। लग रहा है कि इसके मां-बाप नहीं हैं, अभी तक कुंवारी क्यों है? पत्नी बोली, हमने पूछा कि बौवा, तुम इतनी सुन्दर हो विवाह क्यों नहीं करती। तो हंसने लगी, बोली बच्चा पैदा करने वाली देश में बहुत महिलाएं हैं, सेवा करने वाली की कमी है इसीलिये हमें यही मार्ग पसंद है।
कुछ ही दिन में विमला की ज्योति घर-घर में अलौकित हो गई। जो कुआं कीड़ों के कारण सहसह कर रहा था उसमें ब्लीचिंग पाउडर पड़ गया। जहां सभी पानी पीने के घड़े मुंह बाये रहते थे अब वो सब साफ कपड़े से ढंके रहते हैं। जहां महिलाएं हफ़्तों स्नान नहीं करती थीं और बच्चों को तो स्नान कराना दूर, अब सभी महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर नहा धोकर बच्चे को भी साफ-सुथरा रखने लगीं। सभी की बाड़ी में आलू, गोभी, टमाटर, मटर लहराने लगे। नारी समाज का ये जागरण केवल घर तक सीमित नहीं रहा, बाहर भी इसकी किरण प्रस्फुटित होने लगी।

एक दिन पंच लोग बाहर दालान में बैठे थे तो देखा कि एक विधवा सामने खेत में आड़ी पर बैठकर धान कटवा रही है। ये देखते ही पंडितजी का गुस्सा फूट पड़ा, कहने लगे अब जल्द ही सृष्टि का अंत होने वाला है। काशीनाथ कहने लगे, घर में कोई पुरुष नहीं है तो खुद फसल कटवा रही है। अगर यही बात थी तो किसी और को बोलकर कटवा लेती, ऐसे बीच खेत में खड़ी होकर मर्द की छाती पर मूंग क्यों दल रखी है? काशीनाथ कहने लगे ग्रामसेविका….। ग्रामसेविका शब्द सुनते ही पंडितजी की क्रोधाग्नि भभक उठी। कारण ये था कि पहले पंडितजी को घर-घर से न्योता मिलता था, विमला के आने से बहुत कुछ कम हो गया। इसीलिये पंडितजी ग्रामसेविका से दुखी होते हुए बोले, ये चंडालिनी जबसे गांव में आई है एक भी धर्म -कर्म नहींं होने दे रही है। हमारे घर में कोई स्त्री इस तरह से करे तो हम उसका गला दबा देंगे।

एक दिन पंडितजी ये दृष्य देख अवाक् रह गए। सम्पूर्ण गांव के लोगों ने नारी समाज की सामूहिक शक्ति को आंख खोल कर देख लिया। विमला के नेतृत्व में गांव की सभी बेटी-बहू आंचल को फेक कर श्रमदान द्वारा महिला पुस्तकालय की नींव रखने जा रही हैं। बुजुर्ग लोगों का चेहरा ऐसा हो गया कि किसी ने नीम का काढ़़ा पिला दिया हो, और ये भी समझ में आ गया कि अब इस प्रवाह को रोकना असम्भव है। कुछ ही दिन में महिला क्लब तैयार हो गया जो बात सपने में भी विश्वास करने योग्य नहीं थी वो अब प्रत्यक्ष होने लगा। जो महिलाएं दिन भर चुगली करती थीं वो अब नित्य अखबार पढऩे लगीं, ग्राम सुधार की योजना बनाने लगीं, बैडमिंटन खेलने लगीं, कुछ महिलाएं नर्स,टीचर बन कर काम करने लगीं।

नारी समाज की ये सब उन्नति देखकर ग्रामसेविका पुलकित होने लगी, इतने कम समय में ऐसी क्रान्ति। विमला को आशातीत सफलता मिली, जैसे किसी के हाथ से लगाये बगीचे तुरन्त फल देने लगे। परन्तु आज विमला दूसरे इलाके में बदली होने के कारण अपना उद्यान को छोडक़र विदा हो रही है। इस उपलक्ष्य में सभा का आयोजन हुआ, यहां पुरुष से अधिक संख्या में महिलाएं थीं और सभी के आंखों में आंसू थे। जैसे किसी बेटी की विदाई हो रही है या मंदिर से प्रतिमा का विसर्जन हो रहा हो। वहां नवयुवती महिलाएं विमला को फूल माला पहना कर और वृद्ध महिलाएं दूर्वाक्षत और खोईछा देते हुए आशीर्वचन देते हुए बोलीं कि बेटी तुम्हारे गुण हम कभी नहीं भूलेंगे तुमने हम सबकी आंखें खोल दीं। वृद्धगण ने मानपत्र देकर आशीर्वाद दिया। ग्रामसेविका ने जाते वक्त अत्यंत विनम्रता व शालीनता पूर्वक कहा कि हम आप लोगों की ही बेटी हैं और सेवा करना मेरा धर्म है। हमने अपने कर्तव्य का पालन किया इसमें मेरी क्या बड़ाई? सफलता का श्रेय आप लोगों का है जो सभी लोगों ने मिलकर सहयोग दिया।

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles