फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा)। जाति के आधार पर समाज के पिछड़े वर्ग को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लाभ देने का विरोध करने वाले संघ और उसकी राजनीतिक शाखा भाजपा का दोमुंहापन सूरजकुंड में आयोजित गुर्जर महोत्सव में सामने आ गया। जाति विशेष के इस उत्सव में केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री-नेताओं ने न केवल शिरकत की, जातीय एकजुटता की घुट्टी पिला कर अपनी कुर्सी सुरक्षित करने का राजनीतिक उल्लू भी सीधा किया।
समाज के सभी वर्गों को विकास और उन्नति के समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए बिहार में कराई गई जातीय जनगणना का विरोध संघ के साथ भाजपा शासित केंद्र व अन्य राज्यों की सरकारों ने जमकर किया था। यहां तक कि कभी खुद को ओबीसी बता कर वोट मांगने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पलटी मारते हुए समाज में केवल चार जातियां गरीब, युवा, महिलाएं और किसान होने का जुमला उछाला था। संघी मानसिकता के नेता-मंत्री और गोदी मीडिया ने जातीय जनगणना को देश को जातियों के आधार पर बांटे जाने का दुष्प्रचार किया था।
समाज को जाति में बांटे जाने के विरोध का पाखंड करने वाली डबल इंजन की मोदी-खट्टर सरकारों ने सूरजकुंड में आयोजित जाति आधारित तीन दिवसीय गूजर महोत्वस को पूर्ण समर्थन दिया। इस समारोह का उद्घाटन यमुना नगर के बजरी माफिया, राज्य के शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर ने किया। इस मौके पर आयोजक दिवाकर बिधूड़ी ने सभी गूजरों की एकजुटता का आह्वान कर राजनीतिक रूप से जागरूक होने का संदेश दिया। उनका कहना था कि एकजुट समाज के हितों की सरकार अनदेखी नहीं कर सकती। जातीय जनगणना का विरोध करने वाले केंद्रीय राज्यमंत्री किशनपाल गूजर भी इस समारोह में गूजर प्रतिनिधि के रूप में ही पहुंचे थे। गूजर जाति का कार्यक्रम होने के कारण ही इसमें दूसरे जिलों और प्रदेशों के गूजर जन प्रतिनिधियों को बुलाया गया लेकिन शहर से केंद्रीय मंत्री मूलचंद शर्मा सहित दूसरी जातियों के संभ्रांत और गण्यमान्य लोगों को न्यौता नहीं दिया गया था। 36 बिरादरी को साथ लेकर चलने का जुमला फेकने वाले मुख्यमंत्री खट्टर और उनके मंत्रियों को जाति आधारित इस कार्यक्रम में कोई बुराई नहीँ दिखाई दी, यह कार्यक्रम उन्हें बाकी 35 बिरादरियों की अनदेखी करने वाला नहीं लगा।
सामाजिक-राजनीतिक मामलों के जानकारों के अनुसार इस तरह के कार्यक्रमों को समर्थन देना संघ – भाजपा की रणनीति का हिस्सा है। मनुस्मृति आधारित समाज का हिमायती संघ और उसकी राजनीतिक अंग भाजपा वोटों के लिए तो सारे समाज को एकजुट करना चाहती है लेकिन सवर्णों के अलावा अन्य किसी जाति को सामाजिक-शैक्षिक और राजनैतिक लाभ नहीं देना चाहती। इसीलिए जाति आधारित जनगणना का जोर शोर से विरोध किया जाता है लेकिन एक दूसरे के खिलाफ इकट्ठा करने के लिए जाति आधारित कार्यक्रमों का आयोजन कराया जाता है।
सांस्कृतिक सम्मेलन के चोले में इन कार्यक्रमों का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता है। कार्यक्रम में प्रवक्ता गूजरों को राजनीतिक रूप से एकजुटता व एकता का पाठ पढ़ा रहे थे, इस दौरान मंच पर भाजपा के सांसद-मंत्री, विधायकों का मौजूद होना मनोवैज्ञानिक रूप से जनता के अवचेतन में भाजपा के हित में समर्थन जुटाने की रणनीति का ही हिस्सा है। इसी रणनीति के तहत गूजर सम्मेलन को बढ़ावा दिया जा रहा है। चुनावी वर्ष है, ऐसे में यदि देश भर में जातीय महोत्सवों की बाढ़ आ जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यह भाजपा को राजनीतिक लाभ दिलाने के लिए संघ का नया कदम हो सकता है। यह ठीक उसी तरह है कि चुनाव करीब आने पर धार्मिक आयोजन जैसे बाबाओं का सम्मेलन, जागरण, शोभायात्रा आदि कार्यक्रमों में अचानक तेजी आ जाती है।