क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा भाजपा, आगामी विधान सभा तथा लोकसभा चुनाव हारने जा रही है। भीत पर लिखा हुआ, सबको साफ़ नजऱ आ रहा हैै। पुलवामा न हुआ होता, तो 2019 का चुनाव भी ना जीत पातेै। इन्हें, लोगों को धर्म के नाम पर बांटने, भोले-भाले लोगों को झांसे देने और कॉर्पोरेट आक़ाओं के सामने, लहालोट हो जाने के अलावा कुछ आता ही नहीं। हिन्दू-मुस्लिम वाला ज़हरीला खेल, बहादुर मेवातियों और किसानों ने फेल कर दिया हैै। दोनों को बार-बार सलाम करने को दिल करता हैै। इस फासिस्ट टोले की बाज़ीगरी, लोग समझ गए, कलई खुल चुकी। इदारे के अंदर भगदड़ मचने को तैयार हैै। जि़ल्ले इलाही को कुछ नहीं सूझ रहा, बौखलाए हुए हैंै। इसीलिए सवाल पूछने की ‘जुर्रत’ करने, रीढ़ सीधी कर के चलने वाले, पत्रकारों/ लेखकों की गिरफ़्तारी का सीजन शुरू हो गया हैै। हर तानाशाह, इतिहास के कूड़ेदान में जाने से पहले बिलकुल यही करता हैै। इस फ़ासिस्ट दमन-चक्र का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए 4 अक्टूबर को जंतर मंतर पर देश के सभी वामपंथी छात्र-युवा संगठनों तथा प्रेस क्लब पर वकीलों द्वारा शानदार विरोध प्रदर्शन हुए। निज़ाम को समझ आ जाना चाहिए कि देश में ऐसे लोगों का भी न अकाल पड़ा है और न पड़ेगा जिनकी रीढ़ महफूज़ है और जो ऊंची आवाज़ में सच को सच और बकवास को बकवास कहते हैं। देश को तोडऩे, कमजोर करने वाले और जोडऩे, मज़बूत करने वाले लोग और इदारे कौन से हैं सारा देश ही नहीं बल्कि सारी दुनिया अच्छी तरह जान चुकी है। हक़ीक़त को अगर समझ जाए और सारे समाज को डंडे से हांकने के ख़्वाब छोड़ दे तो वो फ़ासिस्ट नहीं हो सकता। अप्रैल 1945 सभी को याद है जब जनरल कॉमरेड झुकोव तथा जनरल कॉमरेड इवान कोनेव के नेतृत्व में सोवियत लाल सेना की दो टुकडियां बर्लिन पहुंचने के लिए आपस में रेस कर रही थीं, कि जर्मन संसद राईसटैग पर लाल झंडा कौन पहले फहराएगा। उसी वक़्त दूसरी ओर, चूहे की तरह अपने बिल में घुसा हिटलर बड़बड़ा रहा था, जर्मन मास्टर रेस है, हम कैसे हार सकते हैं!!
“मंगलवार, 3 अक्टूबर को, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और मुंबई में कुल 50 ठिकानों पर छापेमारी की गई जिनमें कुल 37 पुरुष संदिग्धों तथा 9 महिला संदिग्धों से पूछताछ की गई..”। पुलिस की भाषा पर गौर कीजिए, ‘संदिग्ध’!! जिसके भी घर सुबह 5 बजे पुलिस घंटी बजा दे वही संदिग्ध है!! पुलिस के रिकॉर्ड से ही जाएं तो आरोपी न्यूज़ पोर्टल ‘न्यूज़ क्लिक’ है। उससे जुड़ा हर व्यक्ति ‘संदिग्ध’ कैसे हो गया?
उनके मुंह से जो निकल जाए वही सदाक़त है!! ‘न्यूज़ क्लिक’ के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ तथा मानव संसाधन प्रमुख अमित चक्रवर्ती को बर्बर क़ानून यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया है। सभी पत्रकारों को अब ये अच्छी तरह समझ आ जाना चाहिए कि यूएपीए लग गया तो इसका मतलब वह व्यक्ति आतंकवादी है, जघन्य अपराधी है, देश को तोड़ डालना चाहता है, बग़ावत कर डालना चाहता है, ऐसा बिलकुल भी नहीं है। असभ्यता के प्रतीक इस क़ानून का एक ही मक़सद है जिस किसी को भी हुकुमत जेल में बंद रखना चाहती है जब तक चाहे जेल में बंद रख सकती है। इस काले क़ानून में गिरफ़्तारी के बाद ‘लोकतंत्र की मां’ के दिए सभी जनवादी अधिकार छिन जाते हैं।
पूछताछ में पूछे गए सवालों से ज़ाहिर हो जाता है कि चोर ये पत्रकार हैं जिन्हें पुलिस उठाकर ले गई या वह निज़ाम है जिसके इशारे पर पुलिस और ईडी भरतनाट्यम कर रहे हैं। क्या आप शाहीन बाग आंदोलन स्थल गए थे? क्या आपने दिल्ली ‘दंगे’ कवर किए हैं? क्या आप किसान आंदोलन के दौरान किसान मोर्चों में गए थे? कोई पुलिस से पूछे, क्या देश में संविधान लागू है? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का इस्तेमाल किया जा सकता है या ये लिखने मात्र की ही बात है? ‘हम लोकतंत्र की मां हैं’ मोदी द्वारा हर विदेश यात्रा पर दोहराया जाने वाला यह वाक्य क्या एक क्रूर जुमला नहीं है? दिल्ली दंगों के नाम पर हुई प्रायोजित हिंसा पर अगर अदालत की टिप्पणियों को एक साथ पढ़ा जाए तो कोई संदेह नहीं रहेगा कि जब ‘नागरिकता संशोधन विरोधी’ शानदार आंदोलनों को कुचलने में सरकार नाकाम हो गई तो दिल्ली पुलिस और भाजपा के लगुवों-भगुवों ने षडयंत्र के तहत मुस्लिम समाज के विरुद्ध हिंसा भडक़ाई। दिल्ली ‘दंगों’ के प्रमुख सूत्रधार हैं; कपिल मिश्रा, प्रवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर। क्या दिल्ली पुलिस में उन्हें गिरफ्तार करने की हिम्मत है?
प्रेस क्लब पर प्रदर्शन कर रहे वकील और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता; जंतर मंतर पर विरोध कर रहे छात्र और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं के स्थल जंतर मंतर तक जुलुस लेकर आना चाहते थे लेकिन पुलिस ने अनुमति नहीं दी। फिर भी, लेकिन अधिकतर लोग शाम को जंतर मंतर पर इकट्ठे हो गए। वहां भी फ़ासिस्ट टोला अपनी घिनौनी हरक़त से बाज़ नहीं आया। दरअसल, अनेक दरबारी गोदी चैनल; फ़ासिस्टों की छोटी-छोटी नाज़ी टुकडिय़ों की तरह काम करते हैं। ‘सुदर्शन न्यूज़’ इस घृणित खेल में सबसे आगे है। इस भगवे आतंकी चैनल की एक छोटी टुकड़ी जंतर-मंतर प्रोटेस्ट को ‘कवर’ करने के बहाने बिखंडा डालने पहुंच गई।
छात्रों ने घेरकर उनसे सवाल करने शुरू किए तो उनसे बोलते नहीं बना और ‘सुदर्शन न्यूज़’ वाली यूनिट, पुलिस के घेरे में छुप गई लेकिन थोड़ी देर बाद फिर ख़ुद को पीडि़त बताते हुए डिस्टर्ब करने पहुंच गई। छात्र षडयंत्र समझ गए और उन्हें फिर वहां से भागना पड़ा लेकिन आक्रोश सभा को डिस्टर्ब करने में तो वे क़ामयाब हो ही गए।