साधारण टीबी की डॉट्स दवाएं भी बीते तीन माह से उपलब्ध नहीं विभाग को ही समय पर नहीं मिल रही दवाएं फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा)। औद्योगिक नगरी टीबी संक्रमण विस्फोट के मुहाने पर खड़ी है। वजह, यहां साधारण टीबी मरीजों के लिए बीते तीन महीने से दवाएं ही नहीं हैं। दवाएं नहीं मिलने से अनेक मरीजों का कोर्स पूरा नहीं हो सका है। कोर्स पूरा नहीं होने से ऐसे मरीजों के शरीर में बचे टीबी के बैक्टीरिया इन दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर चुके हैँ। जिससे ये मरीज घातक एमडीआर टीबी का शिकार होकर अपने संपर्क में आने वाले लोगों को भी संक्रमित कर रहे हैँ।
झूठ बोलने में माहिर घोषणावीर मुख्यमंत्री खट्टर ने 7 मार्च 2023 को हरियाणा को देश का पहला टीबी मुक्त प्रदेश बनाए जाने की घोषणा की थी। घोषणा तो कर दी लेकिन इसके लिए सभी टीबी केंद्रों पर जरूरी सुविधाएं और पर्याप्त मात्रा में दवा की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं की। नतीजतन जिले में मरीजों की संख्या घटने के बजाय जून 2023 में 4488 से बढक़र अक्तूबर 2023 में 6501 हो गई, यानी केवल चार महीने में लगभग डेढ़ गुना फीसदी मरीज बढ़ गए। इसका कारण बीते तीन माह से टीबी की दवाओं की कमी बताया जा रहा है। भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार जिला क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम कार्यालय में बीते तीन माह से साधारण टीबी की दवाएं डॉट्स (डायरेक्टली ऑब्जव्र्ड ट्रीटमेंट शॉर्ट कोर्स) भी उपलब्ध नहीं हैं। ये दवाएं दो चरणों में दी जाती हैं। पहला चरण आईपी (इंटेंसिव फेज) दो महीने का होता है। इस दौरान मरीज को आईसोनियाजिड, रिफैंपिसिन, पायराजिनामाइड और इथामब्यूटॉल दवाएं दी जाती हैं। यह पहला चरण इतना महत्वपूर्ण है कि मरीज समय पर दवा ले इसके लिए स्वास्थ्य विभाग के वालंटियर तैनात किए गए हैं। वे मरीज को रोज दवा खिलाने का रिकॉर्ड तैयार करते हैं। यदि पहले चरण में दवा एक दिन भी ब्रेक होती है तो पूरा कोर्स दोबारा शुरू करना पड़ता है। टीबी मामलों के जानकार कहते हैं कि यदि पहले चरण की दवाओं में 21 या उससे अधिक दिन का गैप हो गया तो बहुत संभव है कि मरीज के शरीर में मौजूद टीबी के कीटाणु (माइकोबैक्टीरियम टयूबर कुलोसिस) रिफैपिसिन और आइसोनियाजिड जैसी दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लें यानी ये मरीज एमडीआर टीबी का शिकार हो सकते हैं।
खास बात यह है कि एमडीआर टीबी ग्रस्त मरीज दूसरों में भी एमडीआर टीबी का ही संक्रमण फैलाएगा यानी उससे संक्रमित मरीजों पर भी डॉट्स दवाएं बेअसर होंगी। मालूम हो कि टीबी के मरीज दो तरह के होते हैं पहले फेफड़े की टीबी के मरीज, इनसे संक्रमण सबसे ज्यादा फैलता है, दूसरे, आंतरिक अंगों की टीबी के मरीज यह ज्यादा घातक होते हैं लेकिन इनसे संक्रमण फैलने शेष पेज तीन पर की संभावनाएं कम होती हैं। फेफड़े और श्वसनतंत्र के मरीजों की संख्या 70 से 80 फीसदी होती है। इन आंकड़ों के आधार पर जिले के 4500 से 5200 के बीच फेफड़े एवं श्वसनतंत्र के टीबी मरीज हैं। पहले चरण का कोर्स पूरा न होने के कारण यदि इतनी बड़ी संख्या में मरीज एमडीआर टीबी का शिकार हुए तो उनसे संक्रमित होने वालों की सं या का अंदाजा लगाया जाना मुश्किल है।
जिला क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम की नोडल अधिकारी डॉ. ऋ चा बत्रा ने माना कि जिले में डॉट्स से लेकर एमडीआर टीबी की दवाओं की कमी है। इसका कारण बताया कि पूरे प्रदेश में एक ही ठेकेदार दवाएं वितरित करता है जो समय पर दवाएं उपलब्ध नहीं करा पा रहा। दवा खत्म होने के साथ ही प्रोक्योरमेंट के लिए ठेकेदार को लिख दिया गया था लेकिन अभी तक दवा नहीं मिली है। उन्होंने एक दो दिन में दवाएं आ जाने की उम्मीद जताई है।
जिले में जिस तेजी से टीबी के मरीजों का इजाफा हो रहा है, देश का सबसे पहला टीबी मुक्त राज्य बनाने का जुमला फेकने वाले घोषणावीर खट्टर जैसों का केवल एक ही धंधा है, जुमले फेको और काम मत करो लोग मरते हैं तो मरें, आरएसएस से यही ट्रेनिंग लेकर खट्टर जी आए थे। छापेमारी का ड्रामा करने वाले स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज पूरे प्रदेश में टीबी की दवाओं का टोटा होने की जानकारी के बावजूद सिर्फ ढोंग कर रहे हैं यही भाजपाइयों की सरकारों के काम करने का ढंग है।