लैंगिक दादागीरी का चलन और लव जिहाद की राजनीति…

लैंगिक दादागीरी का चलन और लव जिहाद की राजनीति…
November 08 03:30 2020

विकास नारायण राय (पूर्व डायरेक्टर, नेशनल पुलिस अकादमी, हैदराबाद)

किसी भी कानून-व्यवस्था के लिए दुह्स्वप्न जैसा ही रहा होगा जब एक कालेज छात्रा अपने सहपाठी द्वारा लैंगिक जुनून में मौत के घाट उतार दी जाए और ऊपर से पुलिस की जांच पर लव जिहाद की नफरती राजनीति को भी हावी होने दिया जाए। समाज का एक तबका त्वरित न्याय के नाम पर उत्तर प्रदेश की तर्ज पर हरियाणा पुलिस से भी ‘एनकाउंटर’ की मांग पर उतर आया है, लेकिन स्त्री-द्वेष के विस्फोट के इस अवसर पर लेखक-जर्नलिस्ट प्रियंका दुबे की आँख खोल देने वाली यह फेसबुक टिप्पणी पढ़ी जानी चाहिए :

‘‘निकिता तोमर हत्याकांड का सीसीटीवी फ़ुटेज दिल दहला देने वाला है। पितृसत्ता के ठेकेदारों को किसी ने कभी सिखाया नहीं कि कन्सेंट किसका नाम है। जिनको फ़ेमिनिज़म की ज़रूरत महसूस नहीं होती या यह लगता है कि औरतें अपने घावों के दुखने पर बेवजह ज़्यादा शोर मचा रही हैं उनके पास अगर सब्र हो तो वह क्लिप देखें। इस देश में परीक्षा हाल से निकल घर जा खाना खाने की बजाय सीने पर गोली खा रही हैं लड़कियाँ- सिर्फ़ लडक़ी होने की वजह से। लेकिन चुल्लू भर पानी आपको मिलेगा नहीं डूब जाने के लिए. क्योंकि इतनी आसान भी नहीं है मुक्ति – जो घाव हम लेते आ रहे हैं अपने सीनों पर, वह सिर्फ़ हमारे शरीर के घाव नहीं हैं…बल्कि इस देश की आत्मा पर लगे घाव हैं।’’

बल्लभगढ़, फऱीदाबाद में सोमवार को सरेआम दिन-दहाड़े एक शोहदे द्वारा कालेज गेट पर छात्रा के अपहरण की कोशिश के बाद उसकी गोली मार कर हत्या जैसे निरंकुश अपराध में समाज और प्रशासन के लिए भी सबक हैं। दोनों बारहवीं तक के स्कूल में साथ थे और 2018 में भी इसी लडक़ी को लेकर इसी लडक़े पर अपहरण का केस दर्ज हुआ था जो बाद में दोनों पक्षों की परस्पर सहमति से बंद कर दिया गया था। सारे प्रकरण में हिंदू लडक़ी-मुस्लिम लडक़े वाला सामाजिक तनाव का पक्ष ही नहीं, लडक़े द्वारा लडक़ी पर अपनी मर्जऱ्ी लादने का लैंगिक आयाम भी शामिल रहा है। हत्या के बाद राज्य के भाजपायी गृहमंत्री अनिल विज ने भी लडक़ी पर तथाकथित ‘धर्म परिवर्तन’ के दबाव का सवाल हाइलाइट करना शुरू कर दिया है। 2018 में उन्हीं की सरकार और पुलिस के लिए यह एक सामान्य आपराधिक विचलन था जिसमें समझौता कराया जा सकता था।

स्वभाविक था कि इस पशुवत अपराध से स्तब्ध समाज में एकबारगी घोर उत्तेजना की लहर दिखी और स्थानीय कानून-व्यवस्था को भी बेहद तनाव भरे क्षणों से गुजरना पड़ा। हालाँकि, पोस्ट-मार्टम के बाद, संभावित शांति भंग की आशंका में, लडक़ी के शव को परिजनों को सौंपने में देरी होने से कटुता रही लेकिन पुलिस को श्रेय देना होगा कि उन्होंने तेजी से कार्यवाही करते हुए राजनीतिक परिवार से जुड़े मुख्य आरोपी को चंद घंटों में ही गिरफ़्तार कर लिया था। न तो राजनीतिक प्रभाव रखने वाले आरोपी के परिवार और न ही किसी अन्य दिशा से उसकी वकालत की गयी। तो भी, हिंदुत्व की ज़हरीली विभाजक राजनीति करने वाले तत्वों ने वातावरण को और दूषित करते हुए ‘लव जिहाद’ का साम्प्रदायिक ढोल पीटने में कसर नहीं छोड़ी।

समझना होगा कि व्यापक समाज की सोच और व्यवहार में भी शासन का ही प्रतिरूप छिपा होता है। समाज को मानवीय और उदार बनाना है तो शासन तंत्र को मानवीय और उदार बनाने की ज़रूरत है। इसी समीकरण का दूसरा पहलू हुआ कि शासन को सशक्त करने के लिए समाज को भी सशक्त करना होगा। इस लिहाज़ से, कानून-व्यवस्था में विश्वास पैदा करने के लिए, शायद सबसे अधिक पुलिसकर्मी को स्वयं को ही बदलने की ज़रूरत पड़ेगी। वह सार्वजनिक रूप से शासन के पहिये को खींचने वाला प्रशासन का सबसे प्रकट एजेंट होता है।

फिलहाल, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के दक्षिणी पड़ोस में हुए इस घृणित कांड की मीडिया में व्यापक गूंज तो है लेकिन मुख्यत: टीआरपी संचालित। जबकि दिल्ली के उत्तरी पड़ोस, गोहाना, सोनीपत में एक नाबालिग दलित लडक़ी के पुलिस हिरासत में सामूहिक बलात्कार पर यही मीडिया महीनों से ख़ामोश है क्योंकि वहाँ 3 नवंबर को विधानसभा की बरोदा सीट के लिए उपचुनाव होने जा रहे हैं। वहां के आरोपी समाज के जिस प्रभावी तबके से आते हैं, उसके वोट हर राजनीतिक दल को चाहिए और हर किस्म की मीडिया को भी इस या उस राजनीतिक दल के व्यवसायिक आश्रय की दरकार होती ही है।

डर है कि बल्लभगढ़ और गोहाना जैसे गहरे लगे लैंगिक घाव युवा पीढिय़ों में अन्दर ही अन्दर नासूर बनकर न रिसते रहें।

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Mazdoor Morcha
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