फरीदाबाद (म.मो.) भाजपा सरकार द्वारा जनता को लूटने की दिशा में एक और नया टोल प्लाजा बल्लबगढ़ व पलवल के बीच गदपुरी में बनाया गया है। इसके निर्माण की घोषणा 2016 में केन्द्र सरकार द्वारा कर दी गई थी। उस वक्त कुछ विपक्षी राजनीतिक दलों ने लघु सचिवालय फरीदाबाद व कई अन्य स्थानों पर धरने व प्रदर्शन आदि द्वारा विरोध प्रकट करने की रस्म अदायगी कर दी थी। इसके बाद केन्द्र सरकार ने बेखौफ होकर टोल प्लाजा का निर्माण करा दिया। बीते करीब दो साल से यह टोल प्लाजा जनता को लूटने के लिये तैयार खड़ा है।
टोल के नाम पर लूट शुरू करने की तारीख 15 अप्रैल घोषित करने के बाद अब फिर राजनीतिक दलों को अपनी नौटंकी फैलाने की सुध आई है। और तो और 2014 से 2019 तक पृथला से सरकारी विधायक रहे टेकचंद शर्मा, जो उस वक्त खामोश थे आज इस नाटकबाज़ी में कुछ ज्यादा ही उछल-कूद दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। दरअसल उन्हें जनता की इस लूट से कोई लेना-देना नहीं है, उन्हें तो केवल जनता के सामने नाच-गा कर, उनके प्रति अपनी वफादारी प्रकट करना है। लेकिन यह पब्लिक है, सब जानती है।
राजनीतिक दलों की बहुत शक्ति होती है। यदि एक भी दल ईमानदारी से टोल रुकवाने पर आ जाये तो सरकार की कोई ताकत नहीं जो उसे लागू कर सके। यह बात किसान आन्दोलन ने बखूबी पिछले दिनों साबित कर दी थी। कोई एक टोल नहीं, पूरे हरियाणा, पंजाब व पश्चिमी यूपी आदि के तमाम टोल बंद करा दिये थे, न केवल एक दो दिन के लिये बल्कि 13 महीने तक बंद रहे। जींद जि़ले का खटकर टोल तो आज तक भी बंद है। संदर्भवश सुधी पाठक जान लें कि महाराष्ट्र के एक छोटे से संगठन ‘महाराष्ट्र नव निर्माण सेना’ ने राजठाकरे के नेतृत्व में बाम्बे-पूना हाईवे के टोल बूथों को तहस-नहस करके हटा दिया था।
यदि फरीदाबाद-पलवल का एक भी सियासी दल इस टोल के विरोध में डट कर आ खड़ा हो तो यह किसी सूरत भी चालू हो नहीं सकता। लेकिन सियासी दलों के काले-पीले एवं भ्रष्टाचार-पूर्ण इतिहास को देखते हुए आम लोग भी इनकी बातों पर कोई ज्यादा विश्वास नहीं करते। लोगों के मन में हमेशा यह संशय बना रहता है कि न जाने कब ये लोग उन्हें बेच खायें।
आगामी महापंचायत 30 अप्रैल को रखी गयी है। इस बीच टोल चालू हो चुका है। महापंचायतों द्वारा जनता के बीच नेतागण अपनी पैंठ बनाकर मामले को अदालतों में धकेल कर अपनी जान छुड़ाना चाहेंगे क्योंकि ये फर्जी नेता सदैव सीधे संघर्ष से बच निकलने की ताक में रहते हैं। किसानों ने अदालतों में समय बर्बाद करने की अपेक्षा सीधे संघर्ष द्वारा 13 माह तक टोलों को बंद रखा था। कोर्ट में केस डालने का मतलब होता है कि ‘गयी भैंस पानी में।’ गौरतलब है कि केन्द्रीय सडक़ मंत्री खुद कहते हैं कि टोल से टोल की दूरी कम से कम 60 किलो मीटर होनी चाहिये। नगर परिषद की सीमा में टोल लगाया जा सकता जबकि इस मामले में दोनों शर्तों का उल्लंघन हो रहा है।