गांधी और साउथ अफ्रीका

गांधी और साउथ अफ्रीका
June 19 13:00 2022

काफी ऊँचाई पर यह ठंडी सी जगह है, पीटर औऱ मरिट्ज को पसन्द आयी। यहां जमीन का एक टुकड़ा लेकर बसना चाहते थे। लेकिन आसपास रहने वाले जुलु कबीलों की मर्जी के बगैर वहां रहा नही जा सकता था।

पीट रेटिफ और गर्ट मरिट्जृ ने जुलु चीफ से मिलने का निर्णय किया। सन्देश भेजा तो अनुमति मिल गयी। उन्हें भोज पर बुलाया गया। बात सुनी गई। और काट डाला गया। यह 1830 के आसपास की बात है। इस जगह पर बसी बस्ती पीटरमारितजबर्ग के नाम से जानी गयी थी। एक रेल लाइन यहां से बनी, और गुजरी। कोई 63 साल बाद एक ठंडी रात को एक ट्रेन, इस ट्रेक से गुजर रही रही थी।
……
फर्स्ट  क्लास केबिन में एक भारतीय वकील बैठा था। उस केबिन में एक अंग्रेज की सीट थी। काले आदमी के साथ वह भला कैसे बैठ सकता था। सो टीटी को बुला लाया। टीटी ने उस काले को समझाने की कोशिश की। लेकिन काला आदमी तो बड़ी बड़ी बातें करने लगा। कहा कि उसमे इंगलैंड से बैरिस्टरी पास की है। बार का मेम्बर है। उसके पास फर्स्ट क्लास का वैलिड टिकट है। वह कतई थर्ड क्लास में जाकर न बैठेगा। दुबले पतले इस काले आदमी की हिमाकत देखकर टीटी के गुस्से का ठिकाना न रहा। ट्रेन इस वक्त पहाड़ चढ़ रही रही थी। पीटर मारितजबर्ग स्टेशन सामने था। गाड़ी ठहरी। तो टीटी ने उस काले आदमी को ट्रेन से उतार दिया। सामान फेंक दिया। ट्रेन चल पड़ी।
……
मोहनदास करमचंद गांधी ट्रेन को गुजरते देखते रहे। फिर सामान समेटकर आगे बड़े। वह अपमान, वह ठंडी रात, वह वीरान स्टेशन, वेटिंग रूम.. मैं अपनी जान के लिए डरा हुआ था।उस अंधेरे वेटिंग रूम में गया। वहां एक गोरा भी था। मैं उससे डरा हुआ था। मेरा कर्तव्य क्या है?? मैंने पूछा अपने आपसे?? क्या मैं भारत लौट जाऊं?? या मैं ईश्वर को अपने साथ, अपना सहायक जानकर आगे बढूँ, औऱ सामना करूं उसका जो किस्मत ने मेरे ललाट पर लिखा है? मेरी सक्रिय अहिंसा, असहयोग का उस दिन जन्म हुआ
……
7 जून 1893 की रात एक नए आदमी का जन्म हुआ। महात्मा गांधी ने आगे कभी लिखा- आई वाज बोर्न इन इंडिया, बट आई वाज मेड इन साउथ अफ्रीका। वह दौर था, जब ब्रिटेन के राज में सूरज नही डूबता था। भारत उस राज का क्राउन ज्वेल था। काले वकील ने वह ताज उतार लिया। 15 अगस्त 1947 में वह कहानी पूरी हुई, जिसकी शुरुआत 7 जून 1893 को पीटर मारितजबर्ग स्टेशन से हुई थी।
……
वेटिंग रूम अब एक म्यूजियम है। गांधी की महक वहां ताजी है। उस मगरूर गोरे, उस घमंडी टिकट चेकर को कोई नही जानता। लेकिन ट्रेन से उतारे गए उस काले वकील को दुनिया सलाम करती है। उनकी मूर्ति पीटर मारितजबर्ग के स्टेशन पर आज भी लगी है। जब उनकी जन्मभूमि से उनका नाम मिटाने की कोशिशें चल रही है।

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles