मिर्जा ग़ालिब का असली नाम मिहिर चंद्र गुलाब मिश्रा था, वो जन्म से सच्चे सनातनी और प्रकांड विद्वान ब्राह्मण थे, उन्होंने तमाम संस्कृत श्लोक तथा काव्य खंडों की रचना की, किंतु उनकी मृत्यु के पश्चात मुगलों तथा अंग्रेजों ने मिलकर भारतीय संस्कृति को मिटाने के लिए उनकी रचनाओं को उर्दू में अनुवाद करवा दिया और उनका नाम परिवर्तित करके मिर्जा गालिब कर दिया, उनके जन्मदिवस पर हम संकल्प लेते हैं कि गुलाब मिश्रा जी को भारतीय संस्कृति में उनका खोया हुआ स्थान पुन: वापिस दिलवाकर ही दम लेंगे….. गुलाब मिश्रा अमर रहें….. जो शेर आप बरसों से सुनते आ रहे हैं, वो असली में ऐसे थे –
शिशु क्रीड़ा क्षेत्र है विश्व मेरे समक्ष होता है अहर्निश स्वांग मेरे समक्ष!!
(बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे)
प्रत्येक विषय पर महोदय कहते हैं कि तू क्या है आप विश्लेशित करें ये वार्तालाप शैली क्या है
(हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है )
न पूछो अवस्था मेरी तुम्हारी अनुपस्थिति में बस अपने व्यवहार को देखो मेरे सम़क्ष
(मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे )
है अन्य भी जगत में काव्यकार उत्तमोत्तम तथापि कहते हैं सर्वजन गुलाबसिंह की काव्य शैली है अन्यतम
(हैं और भी दुनिया में सुखऩ-वर बहुत अच्छे कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयाँ और)
दुर्बल गुलाब सिंह की अनुपस्थिति में, कौन से कार्य बंद हैं करुण क्रंदन क्यों करें, करें आह आह क्यों
(ग़ालिब-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं रोइए ज़ार ज़ार क्या कीजिए हाए हाए क्यूँ )
शिराओं में आवागमन हेतु हम नहीं अभीभूत जब नेत्र से ही न टपके तो फिर रूधिर क्या है
(रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है)