फऱीदाबाद प्रशासन, अदालत का आदेश लागू कराने में नाकाम ‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ का आंदोलन का ऐलान

फऱीदाबाद प्रशासन, अदालत का आदेश लागू कराने में नाकाम ‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ का आंदोलन का ऐलान
October 16 15:50 2023

क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा
“ग्रेच्युटी एक्ट, 1972 के अनुसार, सर्किल 3 के सक्षम नियंत्रक अधिकारी, प्रतिवादी (लखानी फुटवेयर प्रा लि, प्लाट न 164, सेक्टर 24, फऱीदाबाद) को, मुक़दमा संख्या 01/2023 में, ये आदेश देते हैं, कि वे, 48,129/ रुपये, तथा दिनांक 09.06.2021 से भुगतान की तारीख तक, 9त्न ब्याज के साथ, कुल रक़म का भुगतान, वादी, रजनीश पुत्र रमेश चंद को करें”, 10 मई, 2023 को, सेक्टर 12, फऱीदाबाद स्थित, सहायक श्रमायुक्त सुशील मान की माननीय अदालत ने, ये फैसला सुनाया. बिलकुल ऐसा ही आदेश, लखानी के दूसरे मज़दूर, भूपेन्द्र के मामले में सुनाया गया. उसमें भुगतान की रक़म, 33,462/ एवं ब्याज थी. दोनों फैसले, अदालत ने, पत्र संख्या 680 तथा 682, दिनांक 12.05.23 द्वारा, दस्ती, केसी लखानी के मालिकाने की कंपनी के अधिकृत अधिकारी को पहुंचा दिए.

जैसी की, लखानी की फि़तरत है, अदालती हुक्म के बाद भी, उसके भेजे में, मज़दूर की मेहनत के पैसे का भुगतान करने की, कोई इच्छा जागृत नहीं हुई. इतना ही नहीं, अपील करने की निर्धारित अवधि, 30 दिन में, उसने अपील करने की ज़हमत भी नहीं उठाई, क्योंकि लखानियों के अनुसार, देश की कोई अदालत, उनकी निजी अदालत से बड़ी नहीं है!! कड़वी हकीक़त ये है, कि ख़ुद श्रम कार्यालय के बड़े-बड़े अधिकारी, ये बात ज़ाहिर तौर पर, कबूल कर चुके हैं, “लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ और ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ की ही मेहरबानी है, कि लखानी के कारिंदे, अदालत आना सीखे हैं, वर्ना ये लोग तो अदालत के समन को भी, दो कौड़ी की क़ीमत नहीं देते थे. हमें बहुत बेईज्ज़ती लगती थी.”

प्रतिवादी द्वारा, कोई अपील दायर ना करने की स्थिति में, क़ानूनी प्रक्रिया के तहत, अदालत का हुक्म 10 जून को, वसूली के लिए, जि़ला कलेक्टर दफ़्तर पहुँच गया. अदालती आदेश, सरकारी गति से आगे बढ़ते हुए, 25 जून को जि़ला वसूली अधिकारी के दफ़्तर पहुंचा. ‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ के कार्यकर्ता, शिद्दत से, ये सुनिश्चित करते रहे, कि भले सरकारी कछुए की गति से ही क्यों ना हो, अदालती आदेश आगे बढ़ता रहे, किसी टेबल पर अटक कर ना बैठ जाए. जून के अंत में, डीसी से मिला गया, और उन्हें वसूली कराने के लिए, एक दरखास्त दी जिस पर, उन्होंने, डीआरओ, को आवश्यक निर्देश ज़ारी किए. जि़ला वसूली अधिकारी से मिला गया. उन्होंने संबंधित क्लर्क को आदेश दिया, ‘लखानी वाला मामला पुट अप करो’. जुलाई के पहले सप्ताह में, रिकवरी सर्टिफिकेट पर, जिला वसूली अधिकारी के बाद, जिला कलेक्टर के भी दस्तख़त हो गए, जिसे आर सी कटना कहा जाता है.

जुलाई की 6 तारीख से, हरियाणा सरकार के सभी क्लर्कों की हड़ताल शुरू हो गई. कटी कटाई, आर सी, अपने अंजाम तक नहीं पहुंची. फिर भी, जिला वसूली अधिकारी को, इस बात के लिए राज़ी कर लिया गया, कि वे व्हाट्सएप के माध्यम से, आदेश की तस्वीर, तहसीलदार के मोबाइल पर भेज दें. तस्वीरों से अगर वसूली हो जाए, तो वो कैसा सरकारी विभाग और कैसा सरकारी अधिकारी!! हड़ताल लम्बी खिंची. तहसीलदार को भी एक पत्र द्वारा, वसूली की प्रक्रिया को तेज़ करने की दरखास्त की गई. ‘लखानी से, मज़दूरों के पैसे की, सरकारी वसूली करो’, ये आदेश, बडख़ल तहसीलदार की टेबल से आगे बढ़ते हुए, अगस्त की 20 तारीख को, गौच्छी नायब तहसीलदार के पास जा पहुंचा. ‘काम करने के लिए, रीजऩेबल टाइम तो दिया करो’, इस सरकारी तकिया क़लाम का सम्मान करते हुए, सितम्बर की पहली तारीख को, नायब तहसीलदार से मिले. उन्होंने कहा, ‘मुझे एक सप्ताह का वक़्त दो, पुलिस लेकर जाऊंगा और लखानी से पैसे वसूलकर लाऊंगा’. दो सप्ताह के बाद भी, जब वसूली होती कहीं नजऱ नहीं आई, तो, हर सप्ताह, नायब तहसीलदार के दफ्तर के चक्कर लगाए गए. “साहब’ मीटिंग में हैं, पता नहीं कब आएँगे. हम आपको उनका मोबाइल नंबर नहीं दे सकते”, दफ़्तर के क्लर्क, अनमने ढंग से, ये जवाब, ‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ के कार्यकर्ताओं को देते गए. गौच्छी नायब तहसीलदार कार्यालय, एक मध्यकालीन हवेली जैसा नजऱ आता है. उस महत्वपूर्ण दफ़्तर में, जाने कितने ग्रामीण किसान, गऱीब-गुरबे सालों साल भटकते रहते हैं. कहीं कोई सुनने वाला नहीं. नायब तहसीलदार, अगर हर रोज़ ‘ज़रूरी मीटिंग’ में रहते हैं तो लोग, अपने ‘ग़ैर-ज़रूरी’ कामों के लिए किसके पास जाएं, किससे कहें, किससे लड़ें, ऐसी कोई व्यवस्था, उस दफ़्तर में मौजूद नहीं है. उस दफ्तर में, ‘अमृत काल’, जाने कब पहुंचेगा. हो सकता है, उसके पहुंचने से पहले, मज़दूरों का राज़ ही क़ायम हो जाए!!

लखानी के, लगभग 180 मज़दूरों की मेहनत के, ग्रेच्युटी, ओवरटाइम, छुट्टी का पैसा, बोनस, पी एफ़, ई एस आई सी के, लगभग 12 करोड़ रुपये की वसूली की, ये दर्दनाक दास्तां, सारे देश को बताई जानी ज़रूरी है, जिससे सब लोग जान सकें कि ‘लोकतंत्र की माँ’ वाले इस देश में, सारे का सारा शासन तंत्र, किस तरह, बेशर्मी के साथ, अमीरों-मालिकों-सरमाएदारों की खि़दमत करने के लिए, उन्हें लूट की छूट देने के लिए और गऱीबों को टरकाने के लिए, गुमराह करने के लिए और उनका हौसला पस्त करने के लिए, एक गिरोह की तरह काम करता है. इसे सुधारने की कोई गुंजाईश नहीं बची, इस जंजाल को तो बस, ध्वस्त किया जा सकता है. ‘औद्योगिक विवाद क़ानून, 1947’ के अनुसार, अगर किसी फैक्ट्री में 100 या उससे अधिक मज़दूर काम करते हों, तो फैक्ट्री मालिक, जब चाहे उनकी छंटनी नहीं कर सकता, ना सरकार की लिखित अनुमति के बिना फैक्ट्री बंद ही कर सकता है. लखानी की फैक्ट्री में, मज़दूरों की कुल तादाद, कभी भी 500 से कम नहीं रही. लेकिन, लखानी-बंधू, देश के किसी भी श्रम क़ानून का अनुपालन नहीं करते और अपनी इस हिमाक़त को छुपाते भी नहीं बल्कि अपनी एक विशिष्ट ख़ासियत की तरह छाती ठोककर कहते हैं. ऐलान से कहते हैं, ‘हमने अपनी कंपनियों में, कभी किसी मोर्चे को नहीं आने दिया, ये क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा कहाँ से पैदा हो गया?’ लखानियों की ये ज़ुर्रत, हमेशा ऐसी रही है, चाहें कांग्रेस का राज़ हो या चौटालाओं का. भूपेन्द्र हुड्डा ने तो उन्हें ‘उद्योग श्री’ के तमगे से नवाज़ा था. लेकिन मोदी-खट्टर राज में, मालिकों की नंगई और सम्बंधित सरकारी अधिकारियों का निकम्मापन, अभूतपूर्व है.

2021 की मई-जून में, जब कोरोना क़हर ढा रहा था, तब केसी लखानी ने, लगभग 200 मज़दूरों की छंटनी की, धूर्ततापूर्ण तरक़ीब भिड़ाई. मज़दूरों के वेतन आदि के भुगतान में विलम्ब करना शुरू कर दिया. मज़दूरों को कहना शुरू कर दिया, कि कंपनी की आर्थिक सेहत ठीक नहीं है. छोटा भाई, पी डी लखानी, भयंकर घोटाले कर, बैंकों, सरकारी इदारों और मज़दूरों के सैकड़ों करोड़ रुपये हड़पकर, ‘दिवालिया’ हो ही चुका है, मज़दूरों में असुरक्षा की भावना हावी होती गई. के सी लखानी ने, अपने कारिंदों की माफऱ्त, मज़दूरों में हडक़ंप जैसा मचवा दिया. ‘तुम लोग स्तीफे लिखाकर दो, तो तुम्हारा सारा भुगतान तुरंत हो जाएगा’, मज़दूरों के कान में, ये सूचनाएं धकेली जाने लगीं. मज़दूरों ने इस्तीफ़े देने शुरू कर दिए.
लखानी की असली धूर्त पैंतरेबाज़ी, उसके बाद शुरू हुई. ‘अगले महीने की 30 तारीख को आकर, पूरे पैसे का चेक ले जाना’, बार-बार ये कहकर, मज़दूरों को टरकाया जाने लगा. पैसे लेने, लखानी फैक्ट्री जाना, मतलब, एक दिन की दिहाड़ी गई. मज़दूरों का हौसला पस्त होने लगा. महीने भर, जूते और चप्पल बनाने के बाद, बा- मुश्किल 10,000/ रुपये पाने वाले और उसी पैसे से, अपने पूरे परिवार का, महीने भर का खर्च चलाने वाले, मज़दूर, ना अपना पैसा, लखानी से वसूल पाए और ना छोड़ पाए. गेट पर चीखने चिल्लाने के साथ-साथ, उन्होंने, पिछले साल, 22 अक्टूबर को, ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ से संपर्क किया. तब से 10 मई तक, कई मोर्चों, आक्रोश सभाओं, ज्ञापनों और हर तारीख पर, मुक़दमे की पैरवी के परिणामस्वरूप ही, अदालत के ये आदेश हांसिल हुए हैं. इन्हें ही अगर लागू नहीं कराया जा सकता, तो फिर, किसी भी मुक़दमे का क्या मतलब है?

इसीलिए, ‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ ने फैसला लिया है कि अगर, प्रशासन, 15 अक्टूबर तक, अदालत के हुक्म को लागू नहीं करा पाया, तो 16 अक्टूबर को डी सी कार्यालय पर आक्रोश मार्च और सभा कर, डी सी से अनुरोध किया जाएगा, कि वे इस मामले में दख़ल दें. फिर भी, अगर वसूली नहीं हुई तो, डी सी कार्यालय पर धरने/ भूख हड़ताल का फैसला लिया जाएगा. लगभग, 100 मज़दूरों के ग्रेच्युटी, वेतन, ओवरटाइम, बोनस के मामलों में ऐसे ही आदेश प्राप्त होने वाले हैं, क्योंकि मज़दूरों के दावे, ठोस सच्चाई और दस्तावेज़ी सबूतों पर आधारित हैं. लखानी का कोई भी वकील, कंपनी द्वारा ही ज़ारी ठोस दस्तावेज़ों को कैसे नकार सकता है? यह विवाद, तो दरअसल विवाद है ही नहीं. यह तो मालिक द्वारा, मज़दूरों से ठगी, हेराफ़ेरी और बेईमानी का मसला है, देश के क़ानूनों के खुले और सचेत उल्लंघन का मामला है. जैसा कि संविधान में लिखा है, अगर मालिक और मज़दूर, क़ानून की नजऱ में बराबर होते, तो, लखानी जेल में होता और मज़दूर, लखानी की फैक्ट्री में काम कर रहे होते, या मज़दूरों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति को राज़ी किया जाता, जिसकी एवज़ में उन्हें भारी-भरकम रक़म मिलती.

एक और सरकारी इदारा, इस मामले में क़सूरवार है, जिस पर कार्यवाही होनी चाहिए. ‘लखानी फुटवेयर प्रा लि’, एक कंपनी है, जो कम्पनीज एक्ट 1956; ‘संशोधित कम्पनीज एक्ट 2013’, के अंतर्गत, ‘रजिस्ट्रार ऑफ़ कम्पनीज’ में पंजीकृत है. इस क़ानून के अनुसार, किसी भी कंपनी को, अपनी बैलेंस शीट में, अपने सभी कर्मचारियों को मिलने वाली, ग्रेच्युटी की रक़म का प्रावधान करना पड़ता है. अर्थात उतनी ही रक़म सुरक्षित रखनी होती है, जिससे ग्रेच्युटी के भुगतान की अवधि, स्तीफे के 30 के अंदर, सारा भुगतान करने की शर्त का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके. लखानी ने ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया. ग्रेच्युटी का कुल भुगतान, 10 करोड़ तक जाने वाला है, जिसके लिए, कई सौ मज़दूरों को, पिछले ढाई साल से टरकाया जा रहा है. ‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ के मज़दूर ही नहीं, बल्कि फऱीदाबाद में कार्यरत, सभी मज़दूर कार्यकर्ता जानते हैं, कि यदि ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ ने, इन हताश और मायूस हो चुके, मज़दूरों को संगठित कर, संघर्ष के लिए तैयार करने का कष्ट साध्य काम ना किया होता, तो के सी लखानी, मज़दूरों को भुगतान करने वाला ही नहीं था. सारा पैसा, वह डकार गया होता.

आंदोलन के रास्ते पर आगे बढऩे के मामले को, ‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ द्वारा, फऱीदाबाद के पुलिस आयुक्त के संज्ञान में भी लाया जा चुका है. मज़दूरों के वेतन से, पीएफ़ के नाम पर, के सी लखानी के मालिकाने की यह कंपनी, 1.15 करोड़ रुपये काट कर, उसे सरकारी खाते में जमा करने की बजाय, निगल चुकी थी, जिसके विरुद्ध, तीखा आंदोलन छेड़ा गया था. पी एफ़ विभाग को, लखानी के विरुद्ध, अमानत में खय़ानत का अपराधिक मामला, फऱीदाबाद सेंट्रल पुलिस थाने में दजऱ् कराना पड़ा था. पुलिस आयुक्त ने, इस मामले में बहुत सकारात्मक दख़ल दिया था. सम्बंधित, सहायक भविष्य निधि आयुक्त और के सी लखानी को, उन्होंने अपने दफ़्तर में तलब किया था. के सी लखानी को, उन्होंने, उसी भाषा में समझाया था, जो उसे समझती है; “लखानी जी, मैं जानता हूँ कि आप, अपने बेटे की मौत के रंज में हैं. उसमें हम भी शरीक़ हैं, लेकिन, मज़दूरों का पैसा काटकर, आपने, सरकारी खाते में, जमा ना करने का अपराध किया है. आपके खि़लाफ़, नाम-दजऱ् एफ़ आई आर है. अगर आपने, तुरंत पैसे नहीं भरे, तो मुझे आपको गिरफ्तार करना पड़ेगा.

लखानी की आंखें, तुरंत खुल गई थीं, क्रोनोलोजी समझने में, उसने बिलकुल देर नहीं लगाई. अगले ही दिन, 1.15 करोड़ का ड्राफ्ट, पी एफ़ कार्यालय में जमा करा दिया. हालाँकि, उसे कंपनी द्वारा दी जाने वाली, इतनी ही रक़म और उस पर ब्याज-दंड, अभी और भरना है. उसके लिए प्रयास लगातार ज़ारी हैं. पी एफ़ विभाग ने, उक्त जानकारी देते हुए, यह भी बताया था कि फऱीदाबाद में, मज़दूरों के पी एफ़ के पैसे हड़पने वाला, बेईमान कारखानेदार, लखानी अकेला नहीं है. हर तरफ़ लूट मची हुई है. पी एफ विभाग द्वारा दी जानकारी के अनुसार, मज़दूरों के वेतन से काटकर, हड़प जाने वाले, महा-चोर, ठग कारखानेदारों, जिनकी पी एफ के देनदारी रु 20 लाख से अधिक है, के नाम इस तरह हैं; एस डी इनिनियर टेक 55, चौधरी इंटरप्राइजेज 45, फ्रेंड्स ऑटो 42, गोल्ड फील्ड हॉस्पिटल 40, हनुमंत फाउंडेशन 36, पैंथर सिक्यूरिटी 32, औरा एन्कोर्पोरेटेड 28, ओम इंटरनेशनल 23, ओ एस एस प्रोजेक्ट्स 20. लखानी के सबक़ सीखते ही, इन बेईमान मालिकों ने भी बक़ाया रक़म का भुगतान करना शुरू कर दिया है.

‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ द्वारा एक साल से, चलाए जा रहे इस आंदोलन का, एक और सुखद परिणाम हुआ है. यह आंदोलन, पी एफ़ विभाग के सर्वोच्च अधिकारीयों को, यह बताने में, क़ामयाब रहा कि फऱीदाबाद के उद्योगों में, मज़दूर, बहुत गंभीर उत्पीडऩ और मालिकों की ठगी झेलने को मज़बूर हैं. किसी नियम क़ायदे का पालन नहीं हो रहा, और अगर यही दस्तूर रहा तो, मज़दूर आक्रोश का भयंकर विस्फोट हो सकता है. इसीलिए, भविष्य निधि विभाग ने, निकम्मे और बेईमान अधिकारियों की जगह, अपनी सबसे कुशल और ईमानदार अधिकारी की नियुक्ति, फऱीदाबाद में की है. साथ ही, मज़दूरों के प्रति संवेदनशील और जि़म्मेदार, एक सहायक आयुक्त को, जिन्हें गुडग़ांव ट्रान्सफर किया जा चुका था, कार्यमुक्त करने से रोक दिया है.

लखानी के मज़दूर, अभी भी, यह उम्मीद कर रहे हैं कि उनके खून-पसीने से अर्जित रक़म का भुगतान करने के, माननीय श्रम अदालत के हुक्म की तामील, फऱीदाबाद प्रशासन, जल्दी से जल्दी कराएगा. साथ ही, वे जान चुके हैं कि संघर्ष करने, अपने हक़ों के लिए लडऩे की तयारी, उन्हें हमेशा रखनी पड़ेगी. मज़दूरों के लिए लडऩा, उतना ही ज़रूरी है, जितना काम करना, रोटी खाना. वे, अगर, मायूस हो गए, लडऩा भूल गए तो, कारखानेदार, उनकी मज़दूरी के छोटे से हिस्से का जो भुगतान कर रहे हैं, वह भी नहीं करेंगे. सारे का सारा हड़प जाएँगे. अपनी फ़ौलादी एकता अटूट रखते हुए, वर्ग चेतना से लैस हो, अगर लड़ते रहे, तो कोई भी कि़ला फतह करना मुश्किल नहीं. वे ना सिफऱ्, मग़रूर और बेईमान मालिकों को, उनका सम्मान करना सिखा देंगे, बल्कि वह मंजि़ल भी हांसिल कर लेंगे, जब, उनके उत्पादन का मालिकाना, उनके अपने हाथ में होगा.

फैज़ अहमद फैज़ की इस नज़्म से, हुकूमत सबक़ ले तो बेहतर है;
यूँ ही हमेशा उलझती रही है ज़ुल्म से खल्क
न उनकी रस्म नई है, न अपनी रीत नई
यूँ ही हमेशा खिलाए हैं हमने आग़ में फूल
न उनकी हार नई है, न अपनी जीत नई.

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Mazdoor Morcha
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