इसके लिये राज्य सरकार भी दोषी है फरीदाबाद (म.मो.) केवल सात वर्ष पूर्व जब एनएच तीन स्थित ईएसआई अस्पताल पुरानी बिल्डिंग से निकल कर दस मंजिला नई बिल्डिंग में शिफ्ट हुआ था तो शायद सबको लगता था कि इतनी बड़ी बिल्डिंग की क्या जरूरत थी? पुरानी बिल्डिंग में मात्र 200 बिस्तर, एक टूटी-फूटी बाबा आदम के जमाने की एक्सरे मशीन होती थी। ऑपरेशन थियेटर भी किसी काम का न था। नई बिल्डिंग में करीब 700 बिस्तरों के साथ अत्याधुनिक ऑपरेशन थियेटर, अनेकों एक्सरे व अल्ट्रासाऊंड मशीनों के अलावा एमआरआई व सीटी स्कैन आदि की सुविधायें उपलब्ध हैं। हर तरह के हजारों टैस्ट करने के लिये अत्याधुनिक लैबोरेट्री भी हैं। डॉक्टरों व स्टाफ की संख्या पहले की अपेक्षा करीब दस गुणा अधिक हो गई है। इसके बावजूद आज लगता है कि यह सब कुछ बहुत कम है।
चार तलों पर चलने वाली ओपीडी की हर तल पर मरीज़ों की भयंकर भीड़ रहती है। पंजीकरण काऊंटरों व दवाईयां लेने वाली खिड़कियों पर हर वक्त सैंकड़ों की भीड़ लगी रहती है। पुरानी बिल्डिंग में जहां दो खिड़कियों से दवा वितरीत होती थी वहीं अब 12 खिड़कियों से दवा वितरण होने के बावजूद भीड़ का बुरा हाल है। ओपीडी में डॉक्टर को दिखाने के लिये मरीज़ घंटों लाइन मेें खड़े रहने के बाद बैरंग घर लौटने को मजबूर हैं।
एक महिला मरीज़ किरण बाला ने बताया कि इसकी कमर में सख्त दर्द था जिसके लिये वह सुबह 9 बजे पहले अपनी डबुआ डिस्पेंसरी गई जहां से पर्ची बनवा कर वह इस अस्पताल में आई तो 12 बजे उसे यह कह कर चलता कर दिया कि आज के 250 टोकन पूरे हो चुके हैं, कल आना; यानी उसका तो भाड़ा खर्च करके आना-जाना बेकार हो गया। इसी तरह एक अन्य मरीज़ ने बताया कि वह भी हड्डी विशेषज्ञ को अपनी टांग दिखाना चाहता था लेकिन मरीज़ों की संख्या अधिक होने के चलते उसका नम्बर नहीं आया। एक अन्य मरीज़ ने बताया कि नेफ्रॉलॉजी विभाग में कोई स्थाई डॉक्टर है ही नहीं। केवल एक डॉक्टर आधा पौना घंटे के लिये बैठते हैं, शायद वे ठेके पर हैं। वे केवल दस मरीज ही देख पाते हैं जबकि मरीज़ों की संख्या कहीं ज्यादा होती है। दरअसल समस्या जितनी बड़ी बना दी गई है उतनी बड़ी थी नहीं। इस मेडिकल कॉलेज अस्पताल में बेशक अभी कई तरह के स्टाफ व उपकरणों की कमी है जिसे दूर किया जाना जरूरी है। लेकिन इसके साथ-साथ दूसरी बड़ी समस्या हरियाणा सरकार द्वारा सीधे चलाया जा रहा सेक्टर 8 का अस्पताल व उससे जुड़ी दसियों डिस्पेंसरिया हैं। इस अस्पताल व तमाम डिस्पेंसरियों में न तो पर्याप्त स्टाफ है और न ही कोई दवायें व उपकरण आदि हैं। इसके परिणामस्वरूप डिस्पेंसरी स्तर के मरीज़ों को भी इस मेडिकल कॉलेज अस्पताल में आना पड़ता है। जाहिर है इससे यहां कार्यभार अत्यधिक बढ़ जाता है। यदि छोटे-मोटे इलाज व दवाईयां डिस्पेंसरियों में ही उपलब्ध हो जायें तो हर मरीज़ को यहां आना न पड़े। ऐसे में हरियाणा सरकार को चाहिये कि वह या तो अपने आधीन चलने वाली ईएसआई चिकित्सा सेवा को सही ढंग से चला ले अथवा इससे पूरी तरह हाथ झाड़ कर इसे कार्पोरेशन के हवाले कर दे। दूसरी ओर मज़दूरों से वसूली करने वाली कार्पोरेशन मज़दूरों के प्रति अपना दायित्व समझते हुए हरियाणा सरकार के साथ सख्ती से निपटते हुए बाध्य करे कि वह या तो ठीक से काम करे वर्ना सारा काम कार्पोरेशन के हवाले कर दे।