एसीएस के आदेश और बेहतर सुविधा के बावजूद पोस्टमार्टम कार्य ईएसआई मेडिकल कॉलेज को नहीं मिल रहा

एसीएस के आदेश और बेहतर सुविधा के बावजूद पोस्टमार्टम कार्य ईएसआई मेडिकल कॉलेज को नहीं मिल रहा
March 20 02:16 2023

रीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) संदिग्ध मृत्यु मामलों में शवों का पोस्टमार्टम, पुलिस द्वारा कराया जाना अनिवार्य है। जि़ले भर में होने वाले इस तरह के करीब 1600 पोस्टमार्टम प्रति वर्ष बीके अस्पताल में किये जाते हैं। इस काम के लिये आने वाले शवों को रखने के लिये यहां कुल 12 डीप-फ्रीजर लगाये गये हैं। इनमें से आठ बीते कई सालों से खराब पड़े हैं। जाहिर है ऐसे में शवों का सडऩा स्वाभाविक है। इसके अलावा यहां डॉक्टरों व अन्य स्टाफ की भी भारी कमी रहती है। इसके अलावा शवों की फॉरेंसिक जांच के लिये उन्हें रोहतक मेडिकल कॉलेज भी भेजा जाता था जो अब दो फॉरेंसिक डॉक्टरोंं की तैनाती के बाद से बंद हो गया है।

पोस्टमार्टम के इस भारी-भरकम काम के लिये, स्टाफ की कमी के चलते, परिजनों के साथ-साथ पुलिस को भी काफी लम्बा इंतजार करना पड़ता है। काम को जल्दी निपटवाने के लिये सम्बन्धित कर्मचारियों द्वारा घूसखोरी के चर्चे भी अक्सर सुनने को मिलते रहते हैं। दूसरी ओर बगल में ही बने ईएसआई मेडिकल कॉलेज के छात्रों के लिये पोस्टमार्टम करना उनके पाठ्यक्रम का एक अहम हिस्सा है। इसके लिये छात्रों को करीब दो किलो मीटर का चक्कर काट कर बीके अस्पताल में आना पड़ता है। ऐसे में छात्रों को केवल खानापूर्ति के लिये यदा-कदा ही लाया जाता है।

प्रशासनिक बुद्धिमत्ता, यदि किसी में होती तो स्वत: ही पोस्टमार्टम के इस काम का कुछ भाग मेडिकल कॉलेज को दे दिया गया होता। परन्तु यहां तो मामला पूरी तरह से बुद्धिमता के खिलाफ चल रहा है। मेडिकल कॉलेज वालों ने प्रशासन को प्रार्थना पत्र भेज कर इस काम में हाथ बंटाने की गुहार लगाई। वर्षों तक कागज इधर से उधर भटकते रहे तब कहीं जाकर एसीएस (अतिरिक्त मुख्य सचिव) मेडिकल शिक्षा, डॉ. जी अनुपमा ने इस बाबत स्वीकृति प्रदान करते हुए सिविल सर्जन फरीदाबाद को पत्र लिखा।

सिविल सर्जन ने एसीएस के पत्र का हवाला देते हुए स्थानीय पुलिस आयुक्त विकास अरोड़ा को पत्र लिखा क्योंकि पोस्टमार्टम तो पुलिस के द्वारा ही कराये जाते हैं। पुलिस आयुक्त से अपेक्षा थी कि वे इस काम के लिये कुछ थानों को मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध कर देते। परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया।

अतिरिक्त मुख्य सचिव तथा सिविल सर्जन के पत्रों को लेकर मेडिकल कॉलेज के एक वरिष्ठ प्रोफेसर सीपी के पास पहुंचे तो उन्होंने पत्रों का कोई लिखित उत्तर देने की बजाय जबानी तौर पर कहा कि मेडिकल कॉलेजों में पोस्टमार्टम थोड़े ही होते हैं वहां तो छात्र पढ़ाई करते हैं। यह भी कहा कि इसके लिये उन्हें गृह सचिव का आदेश चाहिये। अब भला कौन समझाये कि पोस्टमार्टम भी मेडिकल छात्रों की पढ़ाई का ही हिस्सा है। यदि हर इस तरह के फैसले गृह सचिव को ही लेने हैं तो यहां इतने बड़े अधिकारी को बिठाने की क्या जरूरत है?

इस बाबत मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डीन को फोन लगाया गया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एके पांडे से पूछा गया तो उन्होंने ऐसी किसी खबर की जनकारी से इनकार कर दिया।

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Mazdoor Morcha
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