सत्यवीर सिंह मोदी सरकार की मज़दूर-विरोधी, जन-विरोधी एवं राष्ट्र-विरोधी नीतियों के विरुद्ध, मज़दूरों का एक दिवसीय, अखिल भारतीय सम्मलेन, 30 जनवरी को नई दिल्ली के कांस्टीटयूसन क्लब में संपन्न हुआ. 10 केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों, INTUC, AITUC,HMS CITU,AIUTUC,LPF, UTUC तथा देश भर में स्वतन्त्र रूप से काम कर रहे, अनेकों मज़दूर संगठनों, मोर्चों ने इसमें शिरक़त की. ये जानते हुए, कि मोदी सरकार, देश की सारी सम्पदा को चुनिन्दा कॉर्पोरेट को अर्पित करने के अपने एजेंडे से अब पीछे नहीं हटने वाली, इन मानवद्रोही नीतियों का पूरी ताक़त से विरोध करते हुए, देशभर में आक्रोशपूर्ण जन-आंदोलनों की लहर खड़ी करने का, ब्लू प्रिंट तैयार किया गया.
सम्मलेन को, अशोक कुमार सिंह (INTUC), अमरजीत कौर (AITUC), हरभजन सिंह (HMS), तपन सेन (CITU), राजिंदर सिंह (AIUTUC), के इन्दू प्रकाश मेनन (TUCC), सोनिया जॉर्ज (SEWA), राजीव डिमरी (AICCTU), षणमुगम (LPF) तथा अशोक घोष (ञ्जष्ट) ने संबोधित किया.
1991 से पूंजी को खुलकर खेलने की छूट देने का, ये ही अंजाम होना था. एक सिरे पर, पूंजी के चंद हाथों में इकठ्ठा होते जाने, पूंजी के पहाड़ खड़े होने और दूसरे छोर पर, अधिकाधिक, के व्यापक कंगालीकरण, दरिद्रता और भुखमरी के महासागर में डूबते जाने की प्रक्रिया, अपने चरम पर पहुँच चुकी है. पूंजी की इस विनाश लीला को, अब पीछे धकेलना तो छोड़ दीजिए, इसी जगह रोककर रखना भी मुमकिन नहीं. ये बात सुकून देने वाली है कि मज़दूर नेता, इस हक़ीक़त से बे-ख़बर नहीं हैं. इसीलिए विरोध आंदोलनों को, फैक्ट्री स्तर से शुरू कर, शहर, जि़ला, राज्य और फिर, 9 अगस्त को ‘भारत छोडो आन्दोलन’ के दिन, देश स्तर पर राष्ट्र-व्यापी हड़ताल आयोजित करने की उल्लेखनीय योजना बनी. “लेबर कोड्स, निजीकरण, देश के सारे संसाधन, सार्वजनिक क्षेत्र निकायों को कॉर्पोरेट के हवाले करने, देश की संप्रभुता, आत्मनिर्भरता को ही अंतर्राष्ट्रीय पूंजी (साम्राज्यवादी पूंजी) के सामने गिरवीं रख देने वाली नीतियों को, बिलकुल बरदाश्त नहीं किया जाएगा”, इस संकल्प के साथ सम्मलेन संपन्न हुआ.
“हर मोर्चे पर नाकाम रहने वाली, ये सरकार, मज़दूरों-किसानों के आक्रोशपूर्ण आन्दोलनों से अपनी जान बचाने के लिए, मज़हबी नफऱत फैलाकर सामाजिक ध्रुवीकरण के ख़तरनाक अजेंडे पर तेज़ी से आगे बढ़ रही है और जीवन-मरण के मुद्दों से ध्यान भटका रही है. हर रोज़ जनवादी अधिकारों पर बुलडोजऱ चलाया जा रहा है. सरकार के इस विध्वंशक अजेंडे को नाकाम करना है”, सम्मलेन में ये प्रस्ताव भी पारित हुआ.
एक और अहम प्रस्ताव पारित हुआ, “जब हम पीछे मुडक़र देखते हैं, और 2014 से अब तक, भाजपा के साढे 8 सालों के शासन पर गौर करते हैं, तो समाज के अधिकांश भाग के बे-इन्तेहा तक़लीफ़ों, कंगाली और दमन में पिसने, उनकी रोज़ी-रोटी पर, बर्बर सरकारी हमले की वीभत्स तस्वीर नजऱ पड़ती है. भयानक बेरोजग़ारी और लोगों के रोजग़ार छिनने की परिस्थितियां तेज़ी से बढ़ रही हैं.” इसके साथ ही, सम्मलेन ने मांग की कि अर्थव्यवस्था की दयनीयता की असली स्थिति देश के सामने लाने के लिए, सरकार तुरंत एक ‘श्वेत पत्र’ ज़ारी करे.
मनरेगा योजना का न सिफऱ् बजट कम होता जा रहा है, बल्कि वह भी खर्च नहीं किया जा रहा. असलियत ये है कि ज़रुरतमंदों को, साल में, मात्र 50 दिन का ही रोजग़ार बमुश्किल मिल पा रहा है. ग्रामीण भाग में भुखमरी रोकने वाली इस योजना का बजट बढाया जाए, हर साल 200 दिन का रोजग़ार सुनिश्चित किया जाए, दिहाड़ी बढाई जाए. इसी तरह की योजना शहरी बेरोजग़ारों के लिए भी तत्काल शुरू की जाए. ‘बाज़ार-निर्धारित और निकृष्ट नई पेंशन योजना’ को पूरे देश से पूरी तरह समाप्त कर, पुरानी पेंसन योजना को, हर विभाग में लागू किया जाए. जिन लोगों को नई पेंसन मिल रही है उन्हें कम से कम 8,000/ रु महीना ज़रूर मिले, ये फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को लागू कराने के लिए भी आन्दोलन करने पड़ेंगे, मोदी सरकार का आज, ये चरित्र हो गया है. मतलब, सम्मलेन ज़मीनी हक़ीक़त से बेख़बर नहीं था.
इससे पहले 22 जनवरी को, ‘सेना, बिजली और रेलवे विभाग के निगमीकरण (CORPORATIZATION) के परिणाम और सबक़’ विषय पर, ‘निजीकरण के विरुद्ध अखिल भारतीय मंच’ (ALL INDIA FORUM AGAINST PRIVATIZATION, AIFAP) द्वारा आयोजित वेबिनार, बहुत सुंदर नारे के साथ शुरू हुई—्रATTACK ON ONE IS ATTACK ONAALL ‘एक पर हमला, सभी पर हमला है’. इस वेबिनार का विषय था, ‘सरकार की मज़दूर-विरोधी, जन-विरोधी नीतियों के विरोध में 23 एवं 24 फऱवरी को देश-व्यापी हड़ताल और आगे का रास्ता’. इस वेबिनार में रेलवे, आर्डिनेंस, बिजली विभाग तथा बैंकिंग क्षेत्र में काम कर रहीं अनेकों यूनियनों ने भाग लिया. प्रमुख भाषण ्रढ्ढञ्जष्ट की नेता अमरजीत कौर ने दिया. उन्होंने बताया कि सभी मज़दूर यूनियनों ने ‘संयुक्त किसान मोर्चे’ के ऐतिहासिक आन्दोलन का ना सिफऱ् समर्थन किया था, बल्कि उसमें शिरक़त भी की. आगे के आन्दोलन में, और भी सशक्त रूप से शिरक़त करेंगे. उन्होंने ख़ुशी ज़ाहिर की कि संयुक्त किसान मोर्चे ने 23 व 24 फरवरी की हड़ताल में शामिल होने का फैसला किया है. एसकेएम ने बिजली क़ानून को वापस करने की मांग को अपनी प्रमुख मांगों में शामिल भी कर लिया है.