कहानी/ हैदर रिज्वी
(कहानी हमारी, आपकी है, यानी उस गाँव में रहने वाले लोगों की) गाँव सुबह से शाम मेहनत करता और रात हँसी-ख़ुशी एक दूसरे का दु:ख-दर्द पूछ थकान भरी गहरी नींद ले सो जाता…. तभी उस गाँव में उदय हुआ एक गुंडे का…. शुरू में तो गुंडे को ख़ुद को दादा कहलवाने भर से ही संतोष मिल जाता था, लेकिन धीरे-धीरे उसने गुंडागर्दी के अवसरों को पहचान्ना आरम्भ कर दिया…. गाँव में जिसके घर से अच्छी ख़ुशबू आती, उसके आँगन में जाके बैठ जाता, शर्मा-शर्मी में घर का मालिक उसे भी खाना खिलाता…. महीने भर गाँव वालों के पकवान खा-खा के गुंडा और तगड़ा हो गया…. अब उसे जब ज़रूरत होती किसी का भी घोड़ा बैल अपने कामों के लिए खोल ले जाता, कोई चूँ भी न कर पाता…. फिर गाँव वालों के बकरे-मुरगे बिना पूछे काट के खाने लगा….आखऱिकार गाँव वालों की हिम्मत जवाब दे गयी, और गुप्त मीटिंग की गयी .. जन नेता ने फुसफुसाते हुए एक ओजस्वी भाषण दिया
“भाइयों बहनो! हम न गुंडे हैं, और न कभी इससे पहले गुंडा गर्दी देखी… हम्मे से ज़्यादातर किसान, धोबी, नाई, परचून वाले लोग हैं, भला हम क्या मुक़ाबला करेंगे इन गुंडों का… और घर में बहू-बेटियाँ हैं सो अलग….. इतिहास गवाह रहा है कि गुंडे का मुक़ाबला उससे बड़ा गुंडा ही कर सकता है” भाषण बहुत पसंद किया गया और जनता गुंडे का विकल्प ‘और बड़ा गुंडा’ तलाशने में लग गयी… और एक दिन फिर ऐसी ही एक गुप्त मीटिंग में फ़ैसला लिया गया कि हलकू पहलवान को विकल्प चुना जायगा…..
गुंडा हलकू पहलवान के एक दाँव तक न झेल पाया और हफ़्ते भर में ही गाँव छोड़, जाने कहाँ ग़ायब हो गया… गाँव वालों ने अपने फ़ैसले पे गर्व किया, जन-नेता सहित सबने प्रयास किया कि विकल्प चुन्ने वाला क्रेडिट उसे ही मिले…कि तभी अचानक पहलवान के दो लौंडे आए और हरिया से कहा कि आज पहलवान के घर मेहमान आरहे हैं कहीं से भी 5 बकरे और एक बोरा गेहूँ का जुगाड़ करो…. सारे गाँव वाले एक-दूसरे का मुँह देखते रह गए….
अब तो ये रोज़ का रूटीन बन गया, गाँव वालों के रोज़ पाँच से छ: जानवर मुफ़्त में ज़बह होने लगे….बैल उनके होते, जुतते पहलवान के खेत में…. अलग से पहलवान उनसे उनकी सुरक्षा के बदले अनाज और लेलेता….
फ़ाइनली गाँव वाले रोते गिड़गिड़ाते फिर से निकले विकल्प की तलाश में, और पहुँचे गाँव से दूर एक ईंट भट्टा मालिक के पास … भट्टा मालिक को गाँव वालों पे तरस आगया और उसने गाँव वालों के साथ चार रायफलधारी भेज दिए
अब भाई बंदूक़ों के सामने घंटा मुगदर चलता…. पहलवान को भी वही रास्ता पकडऩा पड़ा जिस रास्ते से पहला वाला गुंडा ग़ायब हुआ था… गाँव में ख़ुशहाली लौटी… सुबह-सुबह ख़ुशहाल हरिया अपने बैल हंकाता गाना गाता खेतों पे पहुँचा तो क्या देखता है कि उसके खेत की जगह एक तालाब है…..
पूरा गाँव भागा-भागा पहुँचा तो पता चला के मिट्टी तो रात में खोद के भट्टे जा चुकी है…. गाँव वाले हाथ जोड़े भट्टा मालिक के पास पहुँचे…. भट्टा मालिक उदास हो गया…. “भाई मेने बिना मतलब अपना सब कुछ तुम्हें देदिया.. अपने लोग अपने हथियार ताकि तुम लोग ख़ुशहाल रह सको, क्या तुम मुझे बदले में मिट्टी भी न दे सकते… आखिर मिट्टी का मोल क्या होता है… मिट्टी!! तुम लोग ऐसे एहसानफऱामोश कैसे निकाल सकते हो….”
गाँव वाले थोड़े से कनफ्य़ूज हुए और थोड़े से शर्मिंदा…. बात तो सही थी, मिट्टी ली थी उनकी ज़मीन थोड़ी, और ख़ुशहाली भी तो लौटाई थी इसी ने धीर-धीरे वो गाँव पहले एक बड़ा तालाब बना और फिर पहली ही बारिश में वो गाँव नही बल्कि एक झील नजऱ आने लगा….
गाँव वाले भागे-भागे राजा के पास पहुँचे और सारा किस्सा सुनाया…. राजा ने कहा भाई मुझसे क्यूँ कहते हो, अगर मुझे सही विकल्प चुन्ने आते होते तो मैं तीन-तीन बार ग़लत विकल्प से ब्याह रचाता??? रानियों के पास गाँव वाले पहुँचे, रानियों ने जवाब दिया कि भाई अगर हमें सही विकल्प चुनना आता तो हम ऐसे नाकारा आदमी से शादी करते? अब गाँव वाले अपना सा मुँह लेके लौटने लगे (जिसका जैसा भी रहा होगा)… रास्ते में उन्हें वही बूढ़ा लकड़हारा दिखा, जिसका इस कहानी से कोई वास्ता नही था…. लकड़हारे ने उनकी बात बड़े ध्यान से सुनी फिर मुस्कुराता हुआ बोला “भाई ये बताओ तुम्हें ये राय किसने दी थी कि गुंडे का विकल्प उससे बड़ा गुंडा होता है? किसने तुम्हें ये सिखाया कि धूर्त को हराने के लिए और धूर्त बनो, किसने कहा कि सिर्फ़ बकैती करने वाले का विकल्प उससे अच्छी बकैती करने वाले लेके आओ?”
गाँव वालों ने एक-दूसरे का मुँह देखा और आँखों-आखों में समझने की कोशिश की कि आखिर ये विचार उनके दिमाग़ में आया ही क्यूँ… और अगर आ भी गया तो इसमें ग़लत क्या था? बूढ़े ने उनके कनफ्य़ूजड भाव देख आगे बोलना शुरू किया “भाई ये बताओ रावण का संहार करने के लिए और बड़ा राक्षस गया या पुरुषों में सर्वोत्तम को भेजा गया??? कौरवों के सामने भगवान सैनिक बन पहुँचे या बिन हथियार सारथी बन???? अंगुली माल को बुद्ध ने उससे बड़ा डाकू बनके परास्त किया या साधू बनके???? क्या कुछ नही सीखा तुमने अपने धर्म ग्रंथों से आज तक जो इतने बड़ी मूर्खता कर बैठे???”
अब गाँव वाले दुविधा में पड़ गए “कभी भी बुरे का विकल्प उससे बुरा नही हो सकता, बुरे का विकल्प अच्छा होता है, सूखे का विकल्प बारिश होती है, भूख का विकल्प रोटी होती है, बड़बोले का विकल्प धीर-गम्भीर मौन होता है, लालची का विकल्प दानी होता है, झूठे का विकल्प सच्चा होता है….. तुमने सही किया कि विकल्प चुना, तुमने सही किया कि गाँव की ख़ुशहाली के लिए ये सब किया, लेकिन तुम्हारी विकल्प की परिभाषा ही ग़लत थी”
हरिया हाथ जोड़े बोला “फिर अब हम क्या करें बाबा, अब तो गाँव भी न बचा हमारा” बूढ़े ने अपना कुल्हाड़ा उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा… “मेरे साथ लकडय़िाँ काटो और शहर में बेच के आओ… हमारी यही सज़ा है, क्यूँकि मेने भी जवानी में एक बार ऐसे ही बुरे का विकल्प और बुरा चुन लिया था”