एक बार फिर अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज चलाने का खट्टर छलावा

एक बार फिर अटल बिहारी मेडिकल  कॉलेज चलाने का खट्टर छलावा
March 21 12:52 2022

बल्लबगढ़ (म.मो.) गांव मोठूका स्थित एक बने-बनाये मेडिकल कॉलेज पर खट्टर सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम का फट्टा तो दो साल पहले ही लगा दिया था, लेकिन इससे आगे करने-धरने को कुछ नहीं। बीते वर्ष कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अप्रैल 2021 में जब सरकार पर जन स्वास्थ्य सेवा का दबाव पड़ा तो खट्टर महोदय ने इसे दो दिन में चालू करने की घोषणा कर डाली थी। इतना ही नहीं नौटंकी करने के लिये खुद भी यहां चले आये थे और उनके बाद स्थानीय सांसद एवं विधायकों ने यहां हवन आदि की ड्रामेबाजी भी खुल कर की। इसके बावजूद न तो कॉलेज और न ही अस्पताल आज तक चल पाया।

जनता को भ्रमित करने के लिये खट्टर सरकार ने एमसीआई जिसे अब एनएमसी कहते हैं, में आवेदन करके इस कॉलेज को शुरू करने की अनुमति गत वर्ष भी मांगी थी और इस वर्ष भी मांगी है। सरकार के आवेदन पर एनएमसी ने बीते वर्ष इसे शुरू करने की स्वीकृति दे दी थी जबकि यहां पर न तो अस्पताल चल रहा था और न ही कॉलेज के लिये आवश्यक फैकल्टी थी। केवल सरकार के आश्वासन पर एनएमसी ने यह स्वीकृति प्रदान कर दी थी।

इस वर्ष फिर से सरकार द्वारा आवेदन किये जाने पर एनएमसी की टीम ने संस्थान का निरीक्षण किया तो फिर से वहां पाया वही निल बटा सन्नाटा। नियमानुसार एनएमसी की टीम इस निरीक्षण के एवज में तीन लाख रुपये फीस लेती है, लेकिन सरकारी होने के चलते खट्टर सरकार को यह फीस नहीं देनी पड़ती। फिर भी देखा जाय तो यह खर्चा किसी न किसी के सिर पर तो पड़ ही रहा है।

हरियाणा सरकार के नये बजट में इस संस्थान के लिये मात्र 55 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इसमें से 45 करोड़ कॉलेज को चलाने के लिये तथा 10 करोड़ बिल्डिंग की मरम्मत आदि के लिये रखे गये हैं। समझने वाले समझ सकते हैं कि यह रकम ऊंट के मुंह में जीरे के समान है, इतनी छोटी रकम से मेडिकल कॉलेज नहीं चला करते। लेकिन यहां मेडिकल कॉलेज चलाना कौन चाहता है? जब घोषणाओं से ही काम चल जाये तो चलाने की जरूरत ही क्या है?

संदर्भवश सुधी पाठक जान लें कि किसी भी मेडिकल कॉलेज का प्रथम सत्र चालू करने के लिये कम से कम 100 करोड़ का खर्चा होता है। इसके लिये फैकल्टी के साथ-साथ 300 बेड का चालू हॉस्पीटल जरूरी है। विदित है कि अस्पताल एक-दो दिन में तो चल नहीं जाता। इसके लिये जनता का, संस्थान के प्रति विश्वास का होना जरूरी है जो एक दिन में नहीं बन सकता। आगामी सत्र के लिये जून-जुलाई में कॉऊंसलिंंग शुरू करके छात्रों को दाखिला दिया जायेगा।

इन तीन-चार महीनों में फैकल्टी को भर्ती करना व अस्पताल को चलाना, हथेली पर सरसों उगाने जैसा है। इसलिये सुधी पाठक किसी भ्रम में न रहकर सरकारी छलावे को समझ लें।

भारी-भरकम बजट के बावजूद लचर शिक्षा व चिकित्सा सेवा
हरियाणा के 2020-21 के बजट में चिकित्सा सेवाओं पर 3870 करोड़ रुपये खर्च हुए। 21-22 के बजट में 6142 करोड़ खर्चने का अनुमान है, 22-23 के बजट में 6835 करोड़ खर्च करने का प्रस्ताव है, खर्च कितने होंगे इसका पता अप्रैल 2023 में चलेगा।

अब आइये शिक्षा पर। 20-21 में 11686 करोड़ खर्चे गये। 21-22 में 17173 करोड़ खर्च करने का प्रस्ताव रखा था जिसे बाद में घटा कर 15186 कर दिया गया। जानकार मानते हैं कि वास्तविक खर्चा इससे भी कम किया जायेगा। वर्ष 22-23 के लिये 18074 करोड़ प्रस्तावित किया गया है। लेकिन जानकार मानते हैं कि यह खर्च 15 हजार करोड़ तक ही समेट दिया जायेगा।

सुधी पाठक इस आंकड़ेबाजी से भली-भांति समझ सकते हैं कि इतने भारी-भरकम बजट में से खट्टर सरकार शिक्षा व चिकित्सा सेवाओं पर कितना खर्च करने जा रही है। वास्तव में किसी भी कल्याणकारी राज्य के लिये चिकित्सा व शिक्षा ही सबसे सर्वोपरि दायित्व होने चाहिए।

 

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Mazdoor Morcha
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