ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज का केन्द्रीय मंत्री ने किया दौरा

ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज का केन्द्रीय मंत्री ने किया दौरा
August 15 18:44 2022

रामेश्वर तेली के आने से सुपर स्पेशलिटी को लगेंगे पंख
फरीदाबाद (म.मो.) मंगलवार दिनांक 9 अगस्त को केन्द्रीय श्रम तथा पेट्रोलियम राज्यमंत्री रामेश्वर तेली ने एनएच तीन स्थित मेडिकल कॉलेज अस्पताल का दौरा किया। करीब पांच घंटे संस्थान में रह कर हर चीज़ को बारीकी से देखा व समझा। सर्वप्रथम फेकल्टी की ओर से डीन डॉ. असीम दास तथा डिप्टी डीन डॉ. अनिल कुमार पांडे ने प्रेजनटेशन देते हुए सन् 2009, यानी जब से संस्थान की आधारशिला रखी गई तब से आज तक का इतिहास प्रस्तुत किया।

करीब ढाई घंटे चली इस बैठक में मंत्री महोदय को स्लाइडों द्वारा दिखाया गया कि किस तरह से एकेडमिक व रिसर्च के साथ-साथ मेडिकल कॉलेज अपने मरीजों को बेहतरीन चिकित्सा सेवायें उपलब्ध करा रहा है। ‘मज़दूर मोर्चा’ पहले भी कई बार प्रकाशित कर चुका है कि हरियाणा के तमाम मेडिकल कॉलेजों के मुकाबले यहां के परीक्षा परिणाम सबसे बेहतरीन होते हैं। रिसर्च के क्षेत्र में भी यहां के प्रोफेसरों के सर्वाधिक शोध पत्र प्रतिष्ठित राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। छोटे से जीवन काल में यहां स्नातकोत्तर (पीजी) यानी एमबीबीएस के बाद की पढ़ाई शुरू करा दी गई है। बीते वर्ष जहां 19 ब्रांचों में यह पढ़ाई शुरू की गई थी, वहीं इस साल 22 ब्रांचों में इसे शुरू किया जा रहा है।

फेकल्टी की ओर से मंत्री महोदय को बताया गया कि दो वर्ष के लिये यह अस्पताल सरकार द्वारा कोविड मरीजों के लिये समर्पित कर दिया गया था। इसके बदले अस्पताल को इनाम तो क्या मिलना था, दंड स्वरूप पीजी की आधी सीटें काट दी गईं। इस बाबत उनसे अनुरोध किया गया कि वे केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से सम्पर्क करकेे उनकी काटी गई सीटें उन्हें वापस दिलाएं। इससे न केवल यहां के मरीजों का भला होगा बल्कि विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपलब्धता भी बढ़ेगी।

संस्थान एक के बाद एक सुपर स्पेशलिटी सेवायें पूरी कामयाबी के साथ बढाता जा रहा है। इसके बावजूद यहां आवश्यक कर्मचारियों की संख्या नहीं बढाई जा रही। अव्वल तो यहां स्वीकृत पद ही आवश्यकता से बहुत कम हैं और कोढ़ में खाज की तरह इनमें से भी अधिकांश पद रिक्त पड़े हैं। जाहिर है इसके चलते मरीजों को दी जाने वाली सेवाओं का प्रभावित होना तय है। मंत्री का ध्यान, संस्थान में चल रही ठेकेदारी प्रथा की ओर भी दिलाया गया। उन्हें समझाया गया कि इस प्रथा के तहत काम करने वाले कर्मचारियों का न तो संस्थान पर भरोसा रहता है और न ही संस्थान का उन पर चाय बगान ट्रेड यूनियन से निकले मंत्री महोदय ने सुपर स्पेशलिटी तथा कुछ अन्य वार्डोंं का भी दौरा किया। इस दौरान उन्होंने मरीज़ों से काफी देर तक खुल कर बातचीत करके, मिल रहे इलाज के बारे में जानकारी प्राप्त की। लगभग सभी मरीज़ संतुष्ट पाये गये। इसी दौरान उन्होंने कर्मचारियों खास कर सफाईकर्मियों से भी बातचीत करके उनकी स्थिति को समझा। सभी कर्मचारियों ने ठेकेदारी प्रथा के प्रति असंतोष प्रकट किया।

संस्थान की विस्तार आवश्यकता को भी समझा
फिलहाल जो महत्वपूर्ण सुपर स्पेशलिटी का काम हो रहा है वह सेकेंडरी चिकित्सा के लिये निर्धारित खंड में हो रहा है। यानी जो ऑपरेशन थियेटर तथा वार्ड इत्यादि सेकेंडरी चिकित्सा के लिये बनाये गये थे। उन्हीं में यह सुपर स्पेशलिटी भी चलाने का प्रयास किया जा रहा है। जाहिर है आगे चलकर इसका दुष्प्रभाव सेकेंडरी मरीजों पर तो पड़ेगा ही, सुपर स्पेशलिटी वाले भी इससे बच नहीं पायेंगे। हाल-फिलहाल तो 10,20,30 मरीज़ों को ही सुपर स्पेशलिटी सेवायें प्रदान की जा रही हैं; लेकिन जिस तरह से पूरे हरियाणा व दिल्ली एनसीआर से मरीजों का आगमन बढता जा रहा है उसके लिये अलग से एक सुपर स्पेशलिटी खंड का शीघ्रातिशीघ्र बनाया जाना अति आवश्यक है।

इस खंड में कम से कम 10 ऑपरेशन थियेटर तथा 500 बेड की आवश्यकता होगी। इसके लिये संस्थान के इसी परिसर में खंडहर पड़ी पुरानी बिल्डिंग वाले स्थान पर एक बहुमंजिला इमारत बनाई जा सकती है। वैसे तो इस प्रोजेक्ट के बारे में केन्द्रीय श्रम मंत्री भूपेन्द्र सिंह यादव, जब पिछले दिनों यहां आये थे, को विस्तृत रूप से समझाया गया था जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया था। वही सब बातें इस दौरे पर श्रम राज्यमंत्री तेली को भी समझाई गई हैं। उन्होंने इस प्रोजेक्ट को कापोरेशन के एजेंडे पर रखने का भरोसा दिया है।

एमबीबीएस में 100-150 छात्र हो गये, पीजी में 49 छात्र पिछले वर्ष तथा 60 छात्र इस वर्ष आ जायेंगे और इतने ही अगले वर्ष भी आ जायेंगे। लेकिन दूरदर्शिता के अभाव में यहां केवल 100 छात्रों के लिये ही छात्रावास बनाया गया है जबकि आज यहां 600 छात्रों के लिये छात्रावास की आवश्यकता है। विदित है कि मेडिकल की पढ़ाई ऐसी है जिसमें छात्र और खास कर पीजी के छात्र अस्पताल से दूर नहीं रह सकते।

लेकिन छात्रावास के अभाव में उन्हें अस्पताल से करीब 10 किलोमीटर दूर सूरज कुंड रोड पर बनाये गये एक अस्थायी छात्रावास में रहना पड़ रहा है। वास्तव में इसे एनएचपीसी के फ्लैटों को किराये पर ले कर बनाया गया है। छात्रों को वहां से लाने-ले जाने के लिये डीलक्स बसों की व्यवस्था की गई है। इस पर करोड़ों रुपया तो खर्च हो ही रहा है साथ में छात्रों का कीमती वक्त भी बर्बाद हो रहा है। जल्दी से जल्दी नये हॉस्टल का निर्माण कराने के लिये मंत्री महोदय को एनएच पांच स्थित ईएसआई की वह डिस्पेंसरी भी दिखाई गई जहां पौने दो एकड़ जगह खाली पड़ी है। इसके साथ-साथ उन्हें तीन एकड़ के प्लॉट में खंडहर हुई पड़ी वह डिस्पेंसरी भी दिखाई गई जिसे अर्बन ट्रेनिंग सेंटर के लिये मेडिकल कॉलेज के हवाले किया जा चुका है। ततारपुर वाले ग्रामीण ट्रेनिंग सेंटर की योजना भी उनके समझ में आ गई।

एनएच पांच नम्बर में प्लॉट देखने गये तो डिस्पेंसरी भी दिख गई
विदित है कि मेडिकल कॉलेज अस्पताल को तो कॉर्पोरेशन खुद चला रही है जबकि शहर की तमाम डिस्पेंसरियों व सेक्टर आठ के अस्पताल को चलाने का जिम्मा खट्टर सरकार के पास है। इन तमाम डिस्पेंसरियों व उस अस्पताल की दुर्दशा का विवरण ‘मज़दूर मोर्चा’ लगातार देता आ रहा है। करीब ढाई बजे प्लॉट देखने पहुंचे मंत्री अचानक उस डिस्पेंसरी में भी जा पहुंचे। कम्प्यूटर पर बैठे एक कर्मी से कुछ पूछा तो उसने बताया कि वह तो ट्रेनी है, उसे कुछ पता नहीं। इसके बाद मंत्री महोदय पास वाले एक अन्य कमरे में गये तो वहां मौजूद एक फार्मासिस्ट से जब उन्होंने, एक साधारण व्यक्ति की तरह कुछ जानना चाहा तो उसने बड़बड़ाते हुए कहा कि यहां किसी चीज़ का कोई इंतजाम नहीं है, कोई सफाईकर्मी नहीं है। फर्श पर बिखरे कागज के टुकड़ों इत्यादि की ओर ध्यान दिलाते हुए मंत्री ने पूछा तो उसने बड़े तल्ख लहजे में कहा कि यह सफाई करना उसका काम नहीं है।

इसी बीच उन्होंने कुछ मरीजों से भी दर्द भरी दास्तानें सुन ली थी। इसी आठ-दस मिनट के दौरान वहां मौजूद एक डॉ. वंदना को पता चल गया कि पूछ-ताछ करने वाला कोई साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि केन्द्रीय मंत्री हैं। बस फिर क्या था, तमाम स्टाफ की चक्रघिन्नी बंध गई। सिविल सर्जन डॉ. अनिता खुराना जिनका दफ्तर भी वहीं है, जो अपने घर पर आराम फरमा रही थी दौड़ी-दौड़ी डिस्पेंसरी पहुंची तो सही लेकिन तब तक मंत्रीजी की गाड़ी गेट की ओर बढ़ चुकी थी। यानी कि डॉ. अनिता का दौड़ कर आना भी किसी काम न आया।

गौरतलब है कि उक्त डिस्पेंसरी तो वह है जहां खुद सिविल सर्जन का दफ्तर भी है। जब उस डिस्पेंसरी की यह दुर्दशा है तो शेष 14 डिस्पेंसरियों का तो भगवान ही मालिक हैं। डिस्पेंसरियों की इस दुर्दशा के चलते प्राइमरी व सेकेन्डरी हेल्थ केयर के वे मरीज़ भी सीधे मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचते हैं जिनका इलाज डिस्पेंसरियों तथा सेक्टर आठ के अस्पताल में हो जाना चाहिये। जाहिर है इसके चलते जिस मेडिकल कॉलेज को सुपर स्पेशलिटी सेवाओं की ओर बढना है वह प्राइमरी मरीजों में उलझ कर रह जाता है।

मेडिकल कॉलेज की ओपीडी में औसतन 3500 मरीज़ रोजाना आते हैं। इनमें से करीब 2000 मरीज ऐसे होते हैं जिनका निपटारा डिस्पेंसरियों व सेक्टर आठ के अस्पताल में हो जाना चाहिये। वहां के अस्पताल में तमाम दवाईयां उपलब्ध हैं परन्तु वे डिस्पेंसरियों तक नहीं पहुंच पा रही। इसके परिणामस्वरूप मेडिकल कॉलेज में दवा लेने वालों की लम्बी लाइनें प्रात: 9 बजे से शाम के 6 बजे तक भी खत्म नहीं हो पातीं।

इन हालात में कार्पोरेशन को एक कड़ा नोटिस हरियाणा सरकार को जारी कर कहना चाहिये कि या तो वे अपनी तमाम डिस्पेंसरियों व अस्पताल को सुचारु ढंग से चला लें अथवा इन्हें कार्पोरेशन को सौंप दें। विदित है कि राज्य द्वारा चलाई जाने वाली ईएसआई सेवाओं के खर्च का सात बटा आठ कार्पोरेशन द्वारा दिया जाता है। केवल एक बटा आठ भाग ही राज्य सरकार द्वारा खर्च किया जाता है। तमाम तरह की भर्तियां व खरीद्दारी करने का अधिकार राज्य सरकार के पास है। लेकिन निकम्मेपन के चलते वह इसके प्रति पूर्णतया उदासीन है।

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Mazdoor Morcha
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